घोटालों की जांच दबाने से विभाग के उच्चाधिकारी आए सवालों के घेरे में
जयपुर। पुरातत्व विभाग में दो-दो टिकट घोटाले उजागर होने के बावजूद न तो विभाग की ओर से जांच कराई जा रही है और न ही जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या विभाग में घोटालेबाज अधिकारियों के तार ऊपर तक तो नहीं जुड़े हैं? विभाग में जिस तरह अधिकारियों और कर्मचारियों को अभयदान मिलता है, उसे देखकर लगता है कि ऊपर के अधिकारियों के वरदहस्त के कारण ही टिकटों में घोटाले कर राजस्व को चूना लगाया जा रहा था।
पुरातत्व विभाग में जयपुर में स्थित स्मारक टिकट घोटालों का प्रमुख केंद्र है। जयपुर स्थित विश्व विरासत स्थल आमेर और जंतर-मंतर, हवामहल, अल्बर्ट हॉल संग्रहालय और नाहरगढ़ में प्रदेश के सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं। प्रदेश के स्मारकों में सबसे ज्यादा टिकट दरें भी जयपुर के स्मारकों की है, ऐसे में पिछले एक दशक से जयपुर के स्मारक टिकटों में घोटालों के केंद्र बने हुए हैं।
आमेर महल मे देशी पर्यटकों के लिए टिकट दर 100 रुपए है, विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट दर 500 रुपए है। वहीं जंतर-मंतर में देशी पर्यटकों की टिकट दर 50 रुपए और विदेशी पर्यटकों की टिकट दर 200 रुपए है। प्रदेश के स्मारकों में सबसे ज्यादा टिकट दरें इन्हीं दो स्मारकों की है।
तबादलों में चहेते अधिकारियों पर मेहरबानी
टिकट घोटला सामने आने के एक वर्ष पूर्व विभाग के तत्कालीन निदेशक ने स्मारक अधीक्षकों के तबादले किए थे। वहीं घोटाले के उजागर होने के बाद विभाग के प्रमुख शासन सचिव ने फिर से अधीक्षकों के तबादले किए। यह तबादले सवालों के घेरे में आ रहे हैं। घोटाले से पूर्व किए गए तबादलों में अल्बर्ट हॉल अधीक्षक राकेश छोलक को हटाकर अन्य अधिकारी को अधीक्षक बनाया गया। जबकि आमेर अधीक्षक पंकज धरेंद्र को नहीं बदला गया। बाद में प्रमुख शासन सचिव ने तबादले किए तो अल्बर्ट हॉल में फिर से छोलक को लगाया गया जबकि उन्होंने भी आमेर अधीक्षक को बदलने की कोशिश नहीं की।
दशकों से जयपुर में क्यों जमे है अधिकारी
महालेखा परीक्षक की जांच में सामने आया था कि पिछले कुछ वर्षों में आमेर, जंतर-मंतर और अल्बर्ट हॉल के पर्यटकों की संख्या में काफी उतार-चढ़ाव आ रहा था। जंतर-मंतर में पर्यटकों की संख्या बढ़ी, जबकि आमेर और अल्बर्ट हॉल में पर्यटकों की संख्या में काफी कमी दर्ज की गई। ऐसे में साबित होता है कि यह घोटाले पिछले कई वर्षों से चल रहे थे। यदि प्रमुख शासन सचिव ने सजा के तौर पर अधिकारियों के तबादले किए तो फिर अल्बर्ट हॉल से हटाए गए अधीक्षक को फिर से वहीं क्यों लगाया? वहीं आमेर महल अधीक्षक का तबादला क्यों नहीं किया गया? यही वह अधिकारी हैं जिनमें से एक तो पिछले करीब 17 वर्षों से जयपुर में और एक दस वर्षों से आमेर महल में ही नियमविरुद्ध जमे हुए हैं।
विभागीय जांच भी सवालों के घेरे में
विभाग के सूत्रो का कहना है कि जब महालेखा परीक्षक की ऑडिट में पिछले कई वर्षों में पर्यटकों की संख्या में उतार चढ़ाव देखा गया था, तो फिर विभाग ने अपनी कमेटी से सिर्फ एक वर्ष की पर्यटकों की आवक और टिकटों की बिक्री की जांच ही क्यों कराई? विभाग ने पिछले पांच वर्षों की जांच क्यों नहीं कराई? ऐसे में साफ हो रहा है कि यदि किसी निष्पक्ष एजेंसी से अभी भी इन घोटालों की जांच कराई जाए तो विभाग के ऊपर के अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आ सकती है और यह घोटाला काफी बड़ा निकल सकता है।
छपे टिकटों की जांच भी दबाई
विभाग ने मशीनों से हुए टिकट घोटाले की तो दिखावे की जांच शुरू करवा दी, लेकिन पुख्ता सबूत मिलने के बावजूद विभाग आखिरकार छपे कंपोजिट टिकटों में कई वर्षों तक चले घोटाले की जांच कराने से क्यों कतरा रहा है। छपे हुए कंपोजिट टिकट घोटाले की जांच नहीं होना साबित कर रहा है कि इन घोटालों में विभाग के उच्चाधिकारियों की भी भूमिका हो सकती है। यदि छोटे स्तर के अधिकारी यह घोटाला करते तो कब की ही जांच हो जाती।