नयी दिल्ली। पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव की नियुक्ति का कड़ा विरोध किया था। उनका मानना था कि न तो उनके पास पर्याप्त अनुभव है और न ही वह योग्यता, जो एक हाई कोर्ट जज बनने के लिए जरूरी है।
2018 में, जब तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 33 संभावित जजों की सूची पर राय मांगी, तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने केवल 6 नामों का समर्थन किया। उन्होंने जस्टिस यादव की नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए लिखा कि यादव एक औसत दर्जे के वकील हैं, उनके पास अपेक्षित अनुभव नहीं है, और उनके संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता से हैं। चंद्रचूड़ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यादव हाई कोर्ट के जज बनने योग्य नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के समर्थन में दिए गए अपने बयानों के कारण विवादों में हैं। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में उनके भाषण को लेकर राजनीतिक दलों ने कड़ी आलोचना की और कुछ विपक्षी सांसदों ने संसद में उनके खिलाफ महाभियोग चलाने का नोटिस दिया। सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने भी जस्टिस यादव को तलब कर फटकार लगाई और चेतावनी दी है।
जज नियुक्ति प्रक्रिया में विवाद
साल 2018 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दिलीप भोसले ने 33 वकीलों के नाम जज नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट को भेजे। चंद्रचूड़ ने इनमें से केवल 6 नामों का समर्थन किया और 22 नामों को खारिज कर दिया। चंद्रचूड़ ने यादव के आरएसएस से जुड़े होने और एक बीजेपी सांसद (अब केंद्रीय मंत्री) के साथ नजदीकी संबंधों को नियुक्ति के लिए बाधा बताया।
साल 2019 में सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले कोलेजियम ने चंद्रचूड़ की आपत्तियों को नजरअंदाज कर यादव की नियुक्ति की सिफारिश की। दिसंबर 2019 में यादव को इलाहाबाद हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में नियुक्त किया गया। मार्च 2021 में यादव को स्थायी जज बनाया गया।
वीएचपी कार्यक्रम में क्या था बयान
हाल ही में वीएचपी के लीगल सेल द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस यादव ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया। इस दौरान उन्होंने मुस्लिम समुदाय की चार शादियों की प्रथा को गलत बताया और हिंदू धर्म को अधिक सहिष्णु करार दिया। उन्होंने कहा कि “यह देश हिंदुस्तान है और बहुसंख्यकों के अनुसार चलेगा।”
जस्टिस यादव के विवादित बयानों और उनकी नियुक्ति प्रक्रिया ने न्यायपालिका और राजनीति दोनों में चर्चा का विषय बना दिया है। उनका कार्यकाल 15 अप्रैल 2026 को समाप्त होगा।