जयपुर

भाजपा की यह कैसी चाल? भाजपा पार्षदों के वोट से महापौर बने विष्णु लाटा और चेयरमैनों को पार्टी से निष्कासित किया, अब कांग्रेस सरकार की ओर से बनाई गई महापौर शील धाभाई पर कोई कार्रवाई नहीं

धरम सैनी

भाजपा अपने आप को चाल, चरित्र ओर चेहरे वाली पार्टी कहती है, लेकिन जयपुर नगर निगम ग्रेटर में भाजपा की महापौर के निलंबन और सरकार की ओर से नियुक्त महापौर के मामले में भाजपा की चाल बिगड़ी हुई दिखाई दे रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी के गलत निर्णण के खिलाफ जाकर विष्णु लाटा और उनके साथ बने चेयरमैनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन अब पार्टी की बिना सहमति के महापौर बनी शील धाभाई के खिलाफ भाजपा कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है? क्या यह भाजपा की मौकापरस्ती वाली चाल है?

सियासी हलकों में भाजपा की इस नई चाल के काफी चर्चे हैं। जानकार बता रहे हैं कि पूर्व भाजपा बोर्ड में महापौर अशोक लाहोटी के इस्तीफे के बाद विष्णु लाटा ने तब पार्टी के निर्देशों के खिलाफ जाकर महापौर पद पर चुनाव लड़ा और भाजपा के करीब 30 पार्षदों के समर्थन से वह महापौर चुन लिए गए।

लाटा ने कमेटियां बनाकर काम करना शुरू कर दिया, लेकिन भाजपा ने उन्हें व करीब 8 से अधिक चेयरमैनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया। पार्टी की इस कार्रवाई के बाद लाटा और कुछ चेयरमैन कांग्रेस में शामिल हो गए और भाजपा के हाथ से बोर्ड निकल गया। लाटा के खिलाफ यह कार्रवाई तब हुई, जबकि बोर्ड भी भाजपा का था और लाटा भी भाजपा में ही थे।

अब सौम्या गुर्जर के निलंबन के बाद बोर्ड तो भाजपा का ही है, लेकिन सरकार ने शील धाभाई को महापौर पद पर नियुक्त किया है। नियुक्ति के अगले दिन धाभाई ने कार्यभार ग्रहण कर लिया, लेकिन उनके साथ पार्टी की सहमति नहीं है। भाजपा पार्षद उनसे दूरी बनाए हुए हैं।

ऐसे में सियासी जानकार भाजपा पर सवाल खड़ा कर रहे हैं कि भाजपा ने लाटा का निष्कासन क्यों किया? यदि लाटा पर कार्रवाई सही थी, तो फिर अब संगठन की सहमति के बिना महापौर का पद संभालने वाली शील धाभाई पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? क्या यह भाजपा का दोहरी चाल और चरित्र नहीं है? क्या भाजपा एक ही तरह के दो मामलों में कार्रवाई के लिए अलग-अलग पैमाने रखती है?

विष्णु लाटा के समय भाजपा से निष्कासित हुए पूर्व चेयरमैन भगवत सिंह देवल का कहना है भाजपा में आजकल सांगानेर की ही चर्चा है। कहा जा रहा है कि जो भी सांगानेर में राजनीति करने की कोशिश करेगा, उसका बुरा हाल होगा, चाहे वह विष्णु लाटा हो, सौम्या गुर्जर हो या अन्य कोई। हमारे ऊपर बेवजह कार्रवाई की गई, अब हम देखेंगे कि भाजपा और उसके मातृ संगठन की किरकिरी कराने वालों पर क्या कार्रवाई होती है?

एक अन्य निष्कासित पूर्व चेयरमैन प्रकाश चंद गुप्ता का कहना है कि कि लाटा तो 30 भाजपा पार्षदों के सहयोग से महापौर बने थे, लेकिन शील धाभाई को तो कांग्रेस ने महापौर नियुक्त किया है, फिर भाजपा इनका निष्कासन क्यों नहीं कर रही है? भाजपा को बताना चाहिए कि वह मेयर सौम्या गुर्जर को रखेंगे या शील धाभाई को। नैतिकता की बात करने वाली भाजपा का असली चरित्र और दोहरी नीतियां जनता के सामने आ चुका है।

विधायकों से संगठन नाराज
भाजपा सूत्रों का कहना है कि पहले सौम्या गुर्जर का निलंबन और बाद में सौदेबाजी के ऑडियो-वीडियो वायरल होने के बाद भाजपा अपने विधायकों से नाराज हो गई है। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि एक विधायक ने तो अपने फायदे के लिए मातृ संगठन पर ही सवालिया निशान लगा दिए हैं, वहीं एक अन्य विधायक कांग्रेस की ओर से बनाई गई महापौर को साथ-साथ लिए घूम रहे हैं।

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