अदालत

सुप्रीम कोर्ट में गैर-मांस उत्पादों की हलाल प्रमाणन पर केंद्र की आपत्ति: ‘सीमेंट और लोहे की छड़ों तक हलाल प्रमाणन’

नयी दिल्ली। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में गैर-मांस उत्पादों जैसे लोहे की छड़ें और सीमेंट पर हलाल प्रमाणन का मुद्दा उठाया। उन्होंने पूछा कि गैर-विश्वासियों को हलाल प्रमाणित उत्पादों के लिए अधिक कीमत क्यों चुकानी चाहिए। यह दलील उस समय दी गई जब शीर्ष अदालत उत्तर प्रदेश में हलाल प्रमाणन वाले खाद्य उत्पादों के निर्माण, भंडारण, बिक्री और वितरण पर रोक लगाने वाली अधिसूचना के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी।
हलाल प्रमाणन का विवाद
मेहता ने न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और अगस्तीन जॉर्ज मसीह की पीठ को बताया कि मांस के मामले में हलाल प्रमाणन पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन यह चौंकाने वाली बात है कि सीमेंट और लोहे की छड़ों तक हलाल प्रमाणित होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हलाल प्रमाणन एजेंसियां शुल्क ले रही हैं और इस प्रक्रिया से एकत्रित राशि करोड़ों में हो सकती है।
उन्होंने सवाल किया कि गेहूं का आटा और बेसन जैसे उत्पाद हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं का पक्ष
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि यह सब स्वैच्छिक है और किसी पर इसे थोपने की कोशिश नहीं की जा रही है। उन्होंने इसे जीवनशैली से जुड़ा मामला बताया।
केंद्र का रुख
केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं की शिकायत उत्तर प्रदेश के खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन आयुक्त द्वारा 18 नवंबर 2023 को जारी अधिसूचना से संबंधित है, जो पूरी तरह से राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है। केंद्र ने कहा कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का इस अधिसूचना से कोई लेना-देना नहीं है।
केंद्र के हलफनामे में यह भी बताया गया कि वाणिज्य विभाग और एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) ने मांस और मांस उत्पादों के हलाल प्रमाणन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए “भारत अनुरूपता आकलन योजना (i-CAS)-हलाल” विकसित की है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है और याचिकाकर्ताओं को चार सप्ताह में अपना प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए कहा है। मामले की सुनवाई अब 24 मार्च के सप्ताह में होगी।
व्यापक संदर्भ
हलाल प्रमाणन का मुद्दा केवल धार्मिक या आर्थिक पहलू तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उपभोक्ता अधिकार, विकल्प, और व्यापारिक पारदर्शिता जैसे व्यापक सवाल खड़ा करता है। केंद्र और राज्य सरकारों के रुख, अदालत की सुनवाई, और विभिन्न पक्षों के बीच यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और व्यापारिक महत्व भी रखता है।

Related posts

यूट्यूबर ध्रुव राठी के बिना सबूतों के वीडियो को रीट्वीट किया था..अब अदालत के कहने पर माफी मांगनी पड़ गयी दिल्ली सीएम अरविन्द केजरीवाल को..

Clearnews

भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को सुधारने की सख्त ज़रूरत: हरीश साल्वे

Clearnews

अंतरिम जमानत पर छूटे केजरीवाल की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रहीं, तिहाड़ पहुंचते ही उन्हें मिला अदालत का ये आदेश..

Clearnews