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दिल्ली हाई कोर्ट ने बीकानेर हाउस किराया विवाद पर फैसला सुरक्षित रखा

नयी दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने महाराजा डॉ. करनी सिंह के उत्तराधिकारियों द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। याचिका में केंद्र सरकार से बीकानेर हाउस पर कब्जे के लिए 1991 से 2014 तक का बकाया किराया मांगा गया है।
मामले के मुख्य बिंदु:
1. किराये के बकाए की मांग:
याचिकाकर्ता दावा कर रहे हैं कि केंद्र ने 1991 में महाराजा करनी सिंह के निधन के बाद किराया देना बंद कर दिया, जबकि 2014 तक संपत्ति का उपयोग जारी रखा।
2. 1951 की अनुग्रह व्यवस्था:
महाराजा के उत्तराधिकारियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील श्रीहर्ष पीचारा ने तर्क दिया कि 1951 में केंद्र ने इस संपत्ति को अनुग्रह (एक्स ग्रेशिया) व्यवस्था के तहत लिया था। इस व्यवस्था के अनुसार:
o एक-तिहाई किराया महाराजा को दिया जाता था।
o दो-तिहाई किराया राजस्थान सरकार को दिया जाता था।
सितंबर 1991 तक भुगतान हुआ, लेकिन महाराजा के निधन के बाद इसे रोक दिया गया।
3. केंद्र का पक्ष:
o केंद्र का दावा है कि महाराजा करनी सिंह बीकानेर हाउस के कानूनी मालिक नहीं थे।
o 1951 की व्यवस्था को केंद्र ने केवल एक सद्भावना कदम बताया और इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी अनुबंध मानने से इनकार किया।
o केंद्र ने इसे “अनुग्रह राशि” बताया, जिसकी राशि लगभग ₹6 लाख थी।
o केंद्र ने कहा कि भुगतान तब रोका गया, जब राजस्थान सरकार से अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) मांगा गया, जो संपत्ति विवाद के कारण नहीं मिला।
4. अदालत की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति दत्ता, जो इस मामले की सुनवाई कर रहे थे, ने कहा कि अनुग्रह भुगतान नैतिक दायित्व होते हैं, न कि कानूनी।
आगे की प्रक्रिया:
दिल्ली हाई कोर्ट का सुरक्षित फैसला यह तय करेगा कि इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद का क्या समाधान होगा, जिसमें कानूनी पहलुओं के साथ-साथ बीकानेर हाउस के ऐतिहासिक संदर्भ भी शामिल हैं।

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