अदालतदिल्ली

मॉक पोल में ईवीएम से भाजपा के पक्ष में अतिरिक्त वोट के आरोपों को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष किया खारिज, बताई सारी प्रक्रिया..

हमेशा की तरह चुनाव के साथ-साथ ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ यानी ईवीएम पर सवाल खड़े होने लगे हैं। दरअसल में गुरुवार को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की तरफ से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि ऐसी खबरें हैं कि ईवीएम ‘मॉक पोल’ के दौरान एक अतिरिक्त वोट दिखा रही थी। इस आरोप को के बाद सर्वोच्च न्यायालय चुनाव आयोग के वकील को भूषण के आरोपों को देखने पर जवाब पेश करने को कहा। इसी मामले में वरिष्ठ चुनाव अधिकारी ने सर्वोच्च न्यायालय में ईवीएम पर अपना पक्ष रखते हुए आरोपों को खारिज कर दिया।
आयोग की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ निर्वाचन उप आयुक्त नीतेश कुमार पेश हुए। उन्होंने ईवीएम में गड़बड़ी के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए अदालत को बताया कि केरल के कासरगोड में वोटिंग के अभ्यास के दौरान ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (ईवीएम) में कथित तौर पर एक अतिरिक्त वोट दिखने के आरोप बिल्कुल झूठे हैं। उन्होंने कहा, ‘ये खबरें गलत हैं। हमने जिलाधिकारी से आरोपों की पड़ताल की है और यह बात सामने आई है कि ये गलत हैं।’
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जिनमें ईवीएम के माध्यम से डाले गए वोट का ‘वोटर वेरिफियेबिल पेपर ऑडिट ट्रेल’ (VVPAT) से पूरी तरह मिलान करने का अनुरोध किया गया था। इस मामले में गुरुवार को सुनवाई पूरी हो गई और जस्टिस संजीव खन्ना तथा जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने याचिकाओं पर चुनाव आयोग का जवाब सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाकर्ताओं ने वीवीपैट मशीनों पर पारदर्शी कांच को अपारदर्शी कांच से बदलने के आयोग के 2017 के फैसले को पलटने की भी मांग की है, जिसके जरिए कोई मतदाता केवल 7 सेकंड के लिए रोशनी चालू होने पर ही पर्ची देख सकता है।
मॉक पोल के दौरान ईवीएम में एक्स्ट्रा वोट के आरोपों को लेकर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ निर्वाचन उप आयुक्त नीतेश कुमार व्यास ने अदालत से कहा, ‘ये खबरें गलत हैं। हमने डीएम से आरोपों की पड़ताल की है और यह बात सामने आई है कि ये गलत हैं। हम अदालत में विस्तृत रिपोर्ट जमा करेंगे।’ व्यास शीर्ष अदालत में यह बताने के लिए पेश हुए कि आखिर ईवीएम कैसे काम करती है। इससे पहले दिन में शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह से इस मुद्दे पर विचार करने को कहा था। वकील प्रशांत भूषण ने इस मुद्दे को उठाया था।
याचिकाकर्ता एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ की ओर से भूषण ने अदालत से कहा कि इस तरह की खबरें हैं कि ईवीएम ‘मॉक पोल’ की कवायद के दौरान एक अतिरिक्त वोट दर्शा रही थीं। उन्होंने कहा, ‘केरल के कासरगोड में मॉक पोल हुआ जिसमें 4 ईवीएम और वीवीपैट में बीजेपी के लिए एक अतिरिक्त वोट दिख रहा था। मनोरमा ने इस रिपोर्ट को किया है।’ इस पर बेंच ने चुनाव आयोग के वकील से कहा, ‘मिस्टर मनिंदर सिंह, प्लीज इसे क्रॉसचेक कीजिए।’
ईवीएम बनाने वाली कंपनी को ही पता नहीं होता कि किस बटन से किस पार्टी को वोट दिया जाएगा
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने ईवीएम में कथित गड़बड़ी के आरोपों को खारिज करते हुए विस्तार से बताया कि आखिर ये कैस काम करती है। अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को बनाने वाली कंपनी को यह नहीं पता होता कि किस बटन को किस राजनीतिक पार्टी को दिया जाएगा या किस मशीन को किस राज्य या क्षेत्र में भेजा जाएगा। ईवीएम और उनके VVPAT इकाइयों के काम करने के तरीके के बारे में सवालों का जवाब देते हुए, आयोग के वरिष्ठ अधिकारी ने यह भी बताया कि वोटिंग यूनिट में एक बैलट यूनिट, कंट्रोल यूनिट और एक वीवीपीएटी यूनिट होता है, जो मूल रूप से एक प्रिंटर है।
नीतेश कुमार ने बताया कि वोटिंग से 7 दिन पहले, उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में वीवीपीएटी मशीन की 4 एमबी फ्लैश मेमोरी पर चुनाव चिन्हों की तस्वीरें अपलोड की जाती हैं। अधिकारी ने बताया कि बैलट यूनिट उम्मीदवारों या चुनाव चिन्हों के प्रति असंवेदनशील होती है। इसमें सिर्फ वही बटन होते हैं जिनके सामने पार्टी के चुनाव चिन्ह चिपकाए जाते हैं। जब कोई बटन दबाया जाता है, तो यूनिट कंट्रोल यूनिट को एक संदेश भेजती है, जो वीवीपीएटी यूनिट को सतर्क करती है, जो बदले में दबाए गए बटन से जुड़े चुनाव चिन्ह को प्रिंट करती है।
ध्यान दिला दें कि अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें ईवीएम के वोटों का उनकी वीवीपीएटी पर्चियों के साथ 100 फीसदी सत्यापन की मांग की गई है। फिलहाल, हर विधानसभा क्षेत्र में रैंडम रूप से 5 ईवीएम का वीवीपीएटी पर्चियों के साथ मिलान किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से ये बताने के लिए कहा कि वीवीपैट मशीनों को कैसे कैलिब्रेट किया जाता है, उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों को इसमें शामिल करने की प्रक्रिया क्या है और यह सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय किए जाते हैं कि ईवीएम से कोई छेड़छाड़ न हो।
जस्टिस दत्ता ने कहा, ‘यह चुनाव प्रक्रिया है। पवित्रता होनी चाहिए। किसी को यह आशंका न हो कि जो अपेक्षित है, वह नहीं किया जा रहा है।’ प्रक्रिया को समझाते हुए, चुनाव आयोग के अधिकारी ने कहा कि चुनाव चिह्नों को वीवीपैट इकाई पर लोड करने के बाद, यह जांचने के लिए इसे प्रिंट करने का कमांड दिया जाता है कि सही चुनाव चिह्न लोड किए गए हैं। उन्होंने कहा कि रिटर्निंग ऑफिसर और उम्मीदवार इस बात की पुष्टि के लिए हस्ताक्षर करते हैं, उन्होंने यह भी कहा कि लगभग 17 लाख वीवीपैट मशीनें हैं।
उन्होंने बताया कि मतदान की तारीख से पहले ही मशीनों को स्ट्रॉन्ग रूम्स में रख दिया जाता है और उन्हें एकतरफा नहीं खोला जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि आम तौर पर हर विधानसभा क्षेत्र के लिए एक स्ट्रॉन्ग रूम होता है। अधिकारी ने बताया कि मशीनों को एक मॉक पोल के जरिए परखा जाता है और उम्मीदवारों को इसके लिए 5 प्रतिशत मशीनों को बेतरतीब ढंग से चुनने की इजाजत दी जाती है। उन्होंने कहा कि वोटिंग के दिन भी मॉक पोल कराए जाते हैं और वीवीपैट पर्चियों को निकालकर गिना जाता है और उनका मिलान किया जाता है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण और वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन पेश हुए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की आलोचना और मतपत्रों के जरिए चुनाव की लौटने की मांग की निंदा करते हुए कहा था कि भारत में चुनावी प्रक्रिया एक ‘बहुत बड़ा काम’ है और ‘व्यवस्था को खराब करने’ का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए।

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