जलदाय मंत्री महेश जोशी एवं महापौर मुनेश गुर्जर ने किया परकोटे संरक्षण के काम का शिलान्यास
जयपुर। राजधानी में परकोटे के संरक्षण का काम शुरू हो चुका है। जलदाय मंत्री महेश जोशी, हैरिटेज नगर निगम महापौर मुनेश गुर्जर व निगम आयुक्त विश्राम मीना ने गुरुवार को गंगापोल गेट पर परकोटे के संरक्षण के काम का शिलान्यास किया। हैरिटेज नगर निगम करीब 21.27 करोड़ रुपए खर्च कर चारदीवारी का संरक्षण करवाएगा, लेकिन इसके साथ ही सवाल खड़ा हो रहा है कि यह संरक्षण कार्य कितने वर्ष टिक पाएगा, क्योंकि पिछले करीब डेढ़ दशक में परकोटे में विरासत संरक्षण के नाम पर विभिन्न एजेंसियों की ओर से अरबों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन संरक्षण कार्य एक-दो वर्ष से ज्यादा नहीं टिक पाता है।
प्रथम चरण में 6344.27 मीटर दीवार के संरक्षण का काम किया जाएगा। इस पर निगम करीब 21.27 करोड़ रुपए खर्च करेगा। 6344.27 मीटर दीवार के संरक्षण काम में चूना-सुरखी से दीवार का प्लास्टर किया जाएगा। कंगूरा मरम्मत और मेहराब आदि का काम होगा।
शिलान्यास समारोह में जन स्वास्थ एवं अभियांत्रिकी मंत्री महेश जोशी ने कहा कि परकोटा का संरक्षण होने पर जयपुर संरक्षण होगा। जयपुर शहर एक विश्व विरासत शहर है इसका संरक्षण हम सबको मिलकर करना है। राज्य सरकार विश्व धरोहर के प्रति बहुत संवेदनशील है इसके संरक्षण के लिए 21 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए, जिसका अब काम शुरू हो रहा है। उन्होंने कहा कि हवामहल विधान सभा क्षेत्र में विकास के कार्यों में कोई कमी नहीं छोड़ी जायेगी, इसी वर्ष में 2 महाविद्यालय एवं 6 अंग्रेजी मीडियम स्कूल स्वीकृत किये गये है। इसी प्रकार 380 करोड़ के जर्जर पानी की पाइपलाईन बदलने एवं 263 करोड़ रुपए बीसलपुर योजना से पानी लाने के प्रोजेक्ट स्वीकृत किये गये है।
इस अवसर पर महापौर मुनेश गुर्जर ने कहा कि परकोटा विश्व धरोहर है इसका संरक्षण करना हम सबकी जिम्मेदारी है। हैरिटेज क्षेत्र में विकास कार्यों की कोई कमी नहीं आने दी जायेगी। पार्षदों के सहायोग से विकास कार्यों को कराया जा रहा है।
तीन साल बाद आई याद
जयपुर को विश्व विरासत शहर घोषित हुए तीन वर्ष हो चुके हैं और सरकार को भी तीन वर्ष से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन सरकार को इन तीन वर्षों में धरोहर संरक्षण की याद नहीं आई। तीन सालों में शहर की विरासत को जबरदस्त तरीके से नुकसान पहुंचाया गया। पुरानी हवेलियों को तोड़कर कॉम्पलेक्स बना दिए गए। समार्ट सिटी के नाम पर भी धरोहरों का सत्यानाश किया गया, लेकिन मिलीभगत से सभी मामलों को दबा दिया गया और विरासत को नुकसान पहुंचाने वालों व जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।