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किसान आंदोलन के 21 वें दिन भी प्रदर्शनकारी टस से मस होने को तैयार नहीं

दिल्ली और उसके आसपास के राज्यों से लगती सीमाओं पर ठंड लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में भी नये कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े किसान देश की राजधानी में प्रवेश की सीमाओं पर बैठे हैं। यद्यपि सरकार ने अब तक इन किसानों से सरकार ने छह दौर की वार्ता की है लेकिन स्थिति जस की तस है।

सरकार किसानों के लिए कानूनों में कुछ संशोधन के लिए तो तैयार है और 24 घंटे किसानों के हित में वार्ता करने के लिए तैयार रहने की बात भी करती है लेकिन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की बात नहीं करती। सरकार अगले दौर की बातचीत तो कर रही है किंतु इस अगले दौर की बातचीत की तारीख फिलहाल तय नहीं है।

पीएम मोदी के तेवरों से साफ कि कानून रद्द नहीं होंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 दिसम्बर को गुजराज के कच्छ पहुंचे और नवीकरणीय ऊर्जा पार्क के शिलान्यास कार्यक्रम में भी उन्होंने किसान आंदोलन और उनकी समस्याओं का जिक्र किया।

किसान आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात दौरे पर पहुंचे और मंगलवार 15 दिसम्बर को उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा पार्क का शिलान्यास किया। शिलान्यास कार्यक्रम के दौरान मोदी ने किसान आंदोलन का भी जिक्र करते हुए कहा कि कुछ लोग राजनीति कर रहे हैं और वे किसानों के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहे हैं लेकिन उन्हें देश का किसान परास्त करके रहेगा।

अपने गुजरात कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अनेक प्रतिनिधि मंडलों के साथ की गई मुलाकातों में सिख प्रतिनिधि मंडल से भी मुलाकात की और उनसे कृषि कानूनों के साथ दिल्ली मे चल रहे किसान आंदोलन पर भी चर्चा की। उन्होंने अपने तेवरों से साफ कर दिया कि वे कृषि कानूनों को रद्द करने के मूड में नहीं हैं।

उन्होंने तीनों नये कानून किसानों के हित में होने के बारे में विस्तार से जानकारी दी। प्रधानमंत्री मोदी ने कॉन्ट्रेक्ट खेती के संदर्भ में कहा कि यदि गुजरात में पशुपालक किसान दूध की डेयरी से समझौता करता है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उसने अपने पशुओंं को कंपनी के पास गिरवी रख दिया है या कंपनी पशुपालकों के पशुओं को हड़प जाती है। नए कृषि काननों में भी ऐसा ही है कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग के दौरान किसानों की जमीनों को कोई खतरा नहीं है।

रोजाना 3500 करोड़ रुपयों का नुकसान

उधर, किसानों ने सोमवार की भूख हड़ताल के बाद मंगलवार को आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श किया। जिला कलेक्टर कार्यालयों के बाहर धरने तो पहले से ही दिया जा रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का घेराव भी करने की कोशिशें चल रही हैं। मंगलवार को भी इसी तरह से किसानों से विरोध प्रदर्शन किया। किसान संगठनों के नेताओं ने 21 दिनों से चल रहे इस आंदोलन की आगे की रणनीति का खुलासा नहीं किया। उन्होंने केवल यह आरोप लगाया कि सीमाओं पर कई किलोमीटर तक खड़े ट्रकों में बैठे किसानों को दिल्ली की ओर बढ़ने से रोका जा रहा है।

इस बीच उद्योग मंडलों की ओर से किसान संगठनों व केंद्र सरकार से आग्रह किया जा रहा है कि इस मुद्दे का जल्द से जल्द समाधान निकाला जाए। अन्यथा न केवल किसानों बल्कि देश के उद्योगों को जबर्दस्त आर्थिक हो रही है और जितने दिन अधिक देर होगी, यह हानि और अधिक बढ़ती चली जाएगी।

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) इस मामले मे पूर्व में अपील कर चुका है और उद्योग संगठन एसोचैम ने भी कहा कि किसान आंदोलन के कारण उद्योगों के लिए कच्चे उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला टूट गई है। केवल दिल्ली ही नहीं इसके आसपास के राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लिए ट्रकों में माल लदा खड़ा है और सीमाओं पर अटका हुआ है। इससे अर्थव्यवस्था को रोजाना 3000-3500 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।

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