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किंग कोबरा, रैट स्नेक, करैत वेनम…जहरीले नशे के बाजार में नई नहीं है यह सनक

किंग कोबरा के काटने के बाद अगर सही समय पर इलाज न मिले तो मौत तय है लेकिन कुछ लोग जानबूझकर अपनी जीभ पर कोबरा से कटवाते हैं। उसके बाद भी उनकी मौत नहीं होती उलटे नशा हो जाता है। आखिर क्या है इसके पीछे की साइंस, आइए जानते हैं।
एल्विश यादव मशहूर यूट्यूबर हैं। हाल ही में उन्होंने बिग बॉस जीता है। यूट्यूब पर उनके 15 मिलियन सब्सक्राइबर हैं। फिलहाल वह नोएडा में आयोजित एक रेव पार्टी की वजह से चर्चा में हैं। इस पार्टी में वन विभाग ने छापा मारा और 9 सांप बरामद किए। इनमें से कुछ तो बेहद जहरीले किंग कोबरा जैसे सांप भी थे। आरोप है कि इन सांपों का इस्तेमाल नशे के लिए किया जाता था। पहली बार तो यकीन नहीं होता कि सांप के जिस जहर से भारत में हर साल 64 हजार लोगों की मौत होती है कोई जानबूझ कर उसे नशे के लिए कैसे इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन असलियत यह है कि सांप के जहर का इस्तेमाल नशे के लिए बहुत लंबे समय से किया जाता रहा है। आइए समझते हैं पूरे खेल को।
सांप के जहर का इस्तेमाल दवाओं में हो रहा है। ये दर्द निवारक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा और भी बीमारियों में इसके इस्तेमाल पर काम हो रहा है। लेकिन नशे के रूप में इसके इस्तेमाल पर बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन दूसरी तरफ विरोधाभासी तथ्य यह है कि भारत के कई इलाकों में, खासकर राजस्थान के उत्तर पश्चिमी इलाके में ऐसी जनजातियां हैं जो इसे सस्ते नशे के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं। दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी ऐसा सुना गया है।
डॉक्टरों के पास भी जानकारी नहीं
लेकिन असल समस्या यही है कि डॉक्टरों और विशेषज्ञों के पास ऐसे केस बहुत ज्यादा नहीं आए हैं, जहां सांप के जहर का नशा करने वाले शख्स की हालत खराब हो गई हो या मौत हुई हो। कुछ मामले सामने आए जिनके आधार पर सांप के नशे के बारे में जानकारी मिली है।
राजस्थान से लेकर तमिलनाडु तक
सांप के जहर का नशा करने वाले निम्न आय वर्ग से हैं, जो महंगा नशा नहीं कर सकते। इसलिए ये लोग सपेरों के पास जाकर सांप के जहर को नशे के विकल्प के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। सांप के जहर से नशा करने वाला दूसरा वर्ग हाई सोसायटी का है। रेव पार्टियां खासकर सांप के जहर से नशा करने वालों के लिए बदनाम हैं। उत्तरी भारत से लेकर, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु तक ऐसे मामले सामने आए हैं।
बहुत पुराना इतिहास है विष कन्याओं का
अगर इतिहास की ओर देखें तो ऐसा कहा जाता है कि ईसा से करीब 400 साल पहले गुप्त साम्राज्य में चाणक्य ने विष कन्याओं की फौज तैयार की थी। ये विष कन्याएं बहुत छोटी उम्र से सांप और दूसरे विष के संपर्क में लाई जाती थीं। धीरे-धीरे इन पर जहर बेअसर हो जाता था लेकिन अगर कोई दूसरा व्यक्ति इनके नजदीकी संपर्क में आए तो उसकी जहर से मौत हो जाती थी। शत्रुओं को मौत की नींद सुलाने के लिए इनका इस्तेमाल होता था। इसी तरह गुजरात में एक मशहूर विष पुरुष हुआ है, महमूद बेगड़ा। इसका जन्म सन 1445 में हुआ था। उसे भी बचपन से इतना जहरीला बनाया गया कि उसके शरीर पर बैठने वाले मक्खी, मच्छर तक मर जाते थे।
आखिर क्यों करते हैं सांप के जहर का नशा
अब सवाल उठता है कि आखिर नशेड़ियों के सामने सांप का नशा करने की मजबूरी क्या है। इसका जवाब यह है कि पारंपरिक तौर पर जनजातीय लोग शराब वगैरह की तुलना में इसे सस्ता मानते थे इसलिए करते थे। हालांकि, अब सांप के जहर की दवा मार्केट में बहुत मांग है। इसलिए आसानी से उपलब्ध नहीं है। दूसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जिन पर शराब से लेकर भांग, अफीम, गांजा, चरस और ड्रग्स का नशा बेअसर होने लगा है। डॉक्टरों के पास जो मरीज आए उनका कहना था कि सांप के जहर का नशा करने के बाद उन्हें कई बार हफ्तों तक नशे की तलब नहीं लगती। दूसरी तरफ, इसका इस्तेमाल करने के बाद उन्हें दूसरे नशों की तुलना में बेहतर लगता था।
जहर का नशा करने के दो तरीके हैं
अब अगला सवाल है कि ये लोग सांप के जहर से कैसे नशा करते हैं। अभी तक की जानकारी यह है कि यह दो तरह से किया जाता है। पहले तरीके में सांप के जहर को संपेरे निकाल लेते हैं उसके बाद इसे इंजेक्शन के जरिए नशेड़ी अपने शरीर में इंजेक्ट करते हैं। दूसरा तरीका ज्यादा जोखिम वाला है, इसमें नशेड़ी खुद को सांप से डंसवाता है। वह या तो अपने पैर में या फिर अपनी जीभ के अगले हिस्से में सांप को डंसने पर मजबूर करता है।
फिर भी मौत क्यों नहीं होती?
लेकिन यह जानकर डॉक्टर और दूसरे विशेषज्ञ हैरान है कि ऐसा करने के बाद भी ये लोग मरते क्यों नहीं। सांप का जहर दो किस्म का होता है, न्यूरो टॉक्सिक जो हमारे नर्वस सिस्टम को बेकार कर देता है, दूसरा हीमो टॉक्सिक जो हमारे खून के जमने की नेचुरल प्रक्रिया को गडबड़ा देता है और शरीर में अनियंत्रित खून का रिसाव या हैमरेज शुरू हो जाता है।
यह हो सकती है वजह
लेकिन नशा करने वाले इन लोगों को ऐसा क्यों नहीं होता। इस बारे में दो तीन तरह की बातें कही जाती हैं। पहली बात तो यह कि रेव पार्टियों में सांप के जहर को प्रोसेस करके उसे हल्का बना लेते हैं। यह जहर ऐसा होता है कि नशा तो हो लेकिन उसका दुष्प्रभाव शरीर पर न हो। दूसरा तरीका, जिसमें सांप से जबरन खुद को कटवाया जाता है, उसमें कहा जाता है कि सांप को इस तरह पकड़ा जाता है कि वह बहुत ज्यादा जहर शरीर में न छोड़े। ऐसे डसने को ड्राई स्नेक बाइट कहते हैं। इससे नशेड़ी के शरीर में बहुत कम मात्रा में जहर जाता है। तीसरी वजह यह बताई जाती है कि लगातार जहर की खुराक लेते रहने से नशे के आदी शख्स के शरीर में एंटीबॉडी बन जाती हैं। ऐसे में सांपों का जहर उसपर बेअसर साबित होता है। बहरहाल, डॉक्टर और विशेषज्ञ दोनों मानते हैं कि सांप के जहर का नशा हर तरह से खतरनाक है। इसलिए इससे दूर ही रहा जाए तो बेहतर है।

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