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गुड़ी पड़वा का त्योहार आखिर है क्या, क्यों और कैसे मनाते हैं..? जानिए सब कुछ…

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी मंगलवार को गुड़ी पड़वा मनाया गया। इस दिन चैत्र नवरात्रि का भी प्रारंभ होता है। गुड़ी पड़वा से नया संवत्सर प्रारंभ होता है। गुड़ी पड़वा को उगादी और संवत्सर पडवो भी कहते हैं। इसे मुख्यत: महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है। ये लोग गुड़ी पड़वा को नया साल के पहले दिन के रूप में मनाते हैं। इस दिन चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिन होता है और मां दुर्गा की पूजा के लिए घरों में कलश स्थापना किया जाता है, उसके बाद मां शैत्रपुत्री की पूजा करते हैं। गुड़ी पड़वा को महाराष्ट्र में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका और पड़वा का मतलब होता है चंद्रमा का पहला दिन। आइए जानते हैं.. गुड़ी पड़वा का महत्व और इसे कैसे मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा के त्योहार को हिंदू नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है। इस बार 09अप्रैल 2024 से नया हिंदू विक्रम संवत 2081 आरंभ हो रहा है । इसी दिन से चैत्र नवरात्रि भी शुरू हो जाते हैं।
क्या है गुड़ी पड़वा
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हर साल नया हिंदू वर्ष शुरू हो जाता है जिसे विक्रम संवत कहा जाता है। इस तिथि के बाद से नया विक्रम संवत 2081 शुरू हो जाएगा जबकि अंग्रेजी कैलेंडर का साल 2024 अभी चल रहा है। गुड़ी पड़वा का त्योहार महाराष्ट्र में मराठी समुदाय के लोग बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। वहीं देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंदू नववर्ष को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस चैत्र प्रतिपदा, गुड़ी पड़वा, नव संवत्सर उगादी, चेती चंड और युगादी के नाम से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा के पर्व पर घरों को विशेष रूप से सजाया जाता है। घर के मुख्य द्वार पर इस दिन स्वास्तिक और रंगोली से सजाया जाता है।
गुड़ी पड़वा का महत्व
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के त्योहार को हिंदू नववर्ष के शुभारंभ और विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र के लोग चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर अपने घरों में गुड़ी लगाते हैं. इस कारण से इसे गुड़ी पड़वा कहते हैं। इसमें मराठी समुदाय के लोग इस दिन बांस की लकड़ी को लेकर उसके ऊपर चांदी, तांबे या पीतल के कलश का उल्टा रखते हैं। इसमें केसरिया रंग का पताका लगाकर उसे नीम की पत्तियां , आम की पत्तियां और फूलों से सजाया जाता है फिर घर के सबसे ऊंचे स्थान पर लगाया जाता है।
गुड़ी पड़वा को देश अलग- अलग हिस्सों में कई नामों से जाना जाता है। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाता है। कर्नाटक में इस पर्व को युगाड़ी नाम से जाना जाता है। जबकि आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगाड़ी नाम से मनाते हैं। वहीं कश्मीर में रहने वाले हिंदू समुदाय के लोग इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं। मणिपुर में इस पर्व को सजिबू नोंगमा पानबा या मेइतेइ चेइरोबा से मनाते हैं। वहीं उत्तर और मध्य भारत में इस दिन से चैत्र नवरात्रि आरंभ हो जाती है।
गुड़ी पड़वा की मान्यताएं
ऐसी मान्यता है इस दिन पर ही ब्रह्मा जी ने इस दिन ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है।
मराठी समुदाय के लोग इस दिन को महान राजा छत्रपति शिवाजी की विजय को याद करने के लिए भी गुड़ी लगाते हैं।
इसी तिथि पर ही महान ज्योतिषाचार्य और गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी। इस तिथि पर चंद्रमा के चरण का पहला दिन होता है।
ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान प्रभु राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद वापस अयोध्या आए थे जिसकी खुशी में विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है।
मान्यता है इस दिन गुड़ी लगाने से घर में सुख और समृद्धि आती है।

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