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शिक्षक रहस्यों का ज्ञाता और राष्ट्र का निर्माता: स्वामी चिदानन्द सरस्वती

राजस्थान की धरती हमेशा से ही वीरता और शौर्य की प्रतीक रही है। इस धरती ने वीर योद्धाओं को जन्म दिया है। महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, मीरा बाई, भामाशाह जैसे महान योद्धाओं की गाथाएं हमें आज भी प्रेरित करती हैं। राजस्थान की धरती वीरता, शूरता, शौर्य, शक्ति, भक्ति, दान, बलिदान और विविध संस्कृति की धरती है। यह भूमि महान योद्धाओं और संतों की भूमि है; शौर्य, सेवा, दान व बलिदान की भूमि है और यह मीरा बाई की धरती है। ये उद्गार हैं परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के।
स्वामी चिदानंद सरस्वती जी 5 सितंबर को जयपुर में शिक्षक दिवस के अवसर पर माहेश्वरी समाज (सोसायटी), जयपुर की शिक्षा समिति द्वारा आयोजित ‘शिक्षकों का सशक्तिकरण’ समारोह में विशेष रूप से आमंत्रित थे और इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपने ये उद्गार व्यक्त किये।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शिक्षक समाज के स्तंभ होते हैं। शिक्षकों को सशक्त बनाना एक महत्वपूर्ण कदम है, इससे शिक्षा की गुणवत्ता और प्रभावशीलता में विलक्षण परिवर्तन होगा। शिक्षकों को सशक्त बनाने का अर्थ है उन्हें आवश्यक संसाधन, प्रशिक्षण, और समर्थन प्रदान करना ताकि वे अपने छात्रों को बेहतर शिक्षा दे सकें। 
स्वामी जी ने कहा कि शिक्षक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे न केवल ज्ञान का प्रसार करते हैं बल्कि छात्रों के व्यक्तित्व और नैतिक मूल्यों के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। भारत में शिक्षा और समाज का शाश्वत संबंध रहा है। माहेश्वरी समाज ने तलवार छोड़कर तराजू धारण कर समाज में शिक्षा, उद्यमिता, और समाजसेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कई स्कूल, कॉलेज, और छात्रवृत्ति योजनाएं स्थापित कर समाज के सभी वर्गों में शिक्षा का दीप प्रज्वलित करने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहे हैं और उनके द्वारा संचालित स्कूल का आदर्श वाक्य “तमसो मा ज्योतिर्गमय” है, जिसका अर्थ है ’अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ो।’
इस अवसर पर साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि शिक्षा ही मनुष्य का आभूषण है जैसी शिक्षा होगी वैसे ही समाज का निर्माण होगा इसलिए धर्म व दर्शन सदैव ही भारतीय समाज का आधार रहा है। भारत, सदैव से ही शैक्षणिक स्तर पर समृद्ध रहा है। नालंदा व तक्षशिला की स्थापना, भारतीय शिक्षा व्यवस्था की समृद्ध परम्परा और विरासत का उत्कृष्ट उदाहरण है।
साध्वी जी ने कहा कि शिक्षा ही नहीं बल्कि बेहतर व उच्च शिक्षा तो विश्व के अनेक देशों में पढ़ाई जाती है परन्तु श्रेष्ठ चरित्र के माध्यम से राष्ट्र का निर्माण, संस्कार युक्त शिक्षा, शिक्षा के साथ दीक्षा केवल भारत में ही प्रदान की जाती है। शिक्षा में नैतिकता का समावेश एवं मानवीय मूल्यों के माध्यम से बच्चों के जीवन का विकास भारतीय शिक्षा का अभिन्न अंग है। 
भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति, भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली  राधाकृष्णन जी का जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन शिक्षकों के योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। शिक्षक भारतीय संस्कृति और दर्शन के संवाहक है। यह दिन उनके योगदान का स्मरण करने और शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करने का है।
इससे पूर्व परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, साध्वी भगवती सरस्वती जी और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा जी की जयपुर में दिव्य भेंटवार्ता हुई। सीएम भजन लाल शर्मा ने राजस्थान की धरती पर पूज्य स्वामी जी और साध्वी जी का गर्मजोशी से स्वागत अभिनन्दन किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने राजस्थान के मुख्यमंत्री जनलाल शर्मा जी को परमार्थ निकेतन गंगा आरती व कुम्भ मेला प्रयागराज परमार्थ निकेतन, शिविर में पधारने के लिए आमंत्रित किया।

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