अदालत

भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को सुधारने की सख्त ज़रूरत: हरीश साल्वे

नयी दिल्ली। भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और किंग्स काउंसिल हरीश साल्वे ने न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रणाली को सुधारने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। उन्होंने कहा कि जब तक न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली को दुरुस्त नहीं किया जाता, तब तक अदालतों द्वारा अतिक्रमण जैसे किसी भी समस्या का समाधान संभव नहीं है।
रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी के साथ एक विशेष बातचीत में, हरीश साल्वे ने अदालतों के कामकाज पर चर्चा करते हुए कहा कि न्यायिक प्रणाली कुछ हद तक उपेक्षित अवस्था में है और इसके दो प्रमुख कारण हैं।
पहला कारण यह है कि कानून के शासन (रूल ऑफ लॉ) के अनुसार न्यायिक उपाय (ज्यूडिशियल रेमेडीज़) की उपलब्धता अनिवार्य है, लेकिन यदि इसमें देरी होती है तो इसका कोई वास्तविक महत्व नहीं रह जाता।
हरीश साल्वे ने पूछा, “हम बड़े पैमाने पर लंबित मामलों का समाधान निकालने के लिए क्या करने को तैयार हैं, और इसे हल करने के लिए क्या हमारे पास कोई ठोस योजना है?”
आगे बोलते हुए साल्वे ने कहा, “क्या संसद इस मुद्दे पर साथ आकर समाधान निकाल सकती है? यह केवल कानूनों को संशोधित करने, उन्हें सरल बनाने, या उनका नया नामकरण करने से नहीं होगा। बल्कि हमें यह तय करना होगा कि क्या न्यायिक प्रणाली में अधिक संसाधनों का निवेश करना आवश्यक है? इसका उत्तर है- हां।”
साल्वे ने आगे कहा, “दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली को दुरुस्त करना होगा। जब तक इसे सुधारा नहीं जाएगा, अदालतों के अतिक्रमण समेत आपकी किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा।”
उन्होंने कहा, “यह प्रणाली गंभीर रूप से खराब स्थिति में है… यह काम नहीं करती।”
हरीश साल्वे ने यह भी कहा, “यह ऐसे विषय हैं जिन पर ध्यान देने की ज़रूरत है। साथ ही, एक और अहम मुद्दा संघवाद (फेडरलिज़्म) है। इस पर निर्वाचित प्रतिनिधियों को गंभीरता से बैठकर बहस करनी चाहिए। मुझे यकीन है कि इस बहस में विरोधाभास होंगे, लेकिन यही तो किसी बहस का उद्देश्य होता है।”

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