बैंगलुरु । भारत एक कृषि आधारित देश है। यहां की लगभग आधी जनसंख्या, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, कृषि क्षेत्र में कार्यरत है। किन्तु इस क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान मात्र 17.5% के लगभग ही है। इससे भी ज़्यादा चिंताजनक विषय यह है संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रति वर्ष करीब 14 बिलियन डालर ( ₹1 लाख करोड़ से अधिक) मूल्य का भोजन व्यर्थ जाता है।
40% से भी अधिक कृषि उत्पाद उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो भारत का कुल कृषि उत्पादन इसकी संपूर्ण आबादी को खिलाने के लिए पर्याप्त है। किन्तु कृषि उत्पाद उपभोगता के हाथों तक न पहुँच पाने के कारण लगभग 19.4 करोड़ लोग प्रतिदिन भूखे सोते हैं।
यदि हमें इस समस्या का निवारण करना है तो हमें खाद्य प्रसंस्करण को अत्यधिक महत्व देना होगा। कृषि उत्पादन में अग्रणी देशों में से एक होने के बावजूद खाद्य प्रसंस्करण में भारत अत्यधिक पिछड़ा है। आजादी के 72 साल बाद भी देश में कुल कृषि उत्पादन का मात्र 2% ही संसाधित किया जा रहा है।
खाद्य प्रसंस्करण खाद्य पदार्थों के पोषक तत्वों को संरक्षित रखने में मदद करता है, जिससे यह अधिक समय तक ताज़ा रह सकते हैं । फॉरटिफिकेशन द्वारा खाद्य पदार्थों के पोषक तत्वों में सुधार के साथ ही उपभोक्ताओं को एक व्यापक विकल्प प्रदान करता है।
आम धारणा के विरुद्ध, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मात्र डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों की बिक्री नहीं है। यह उद्योग मात्र खाद्य पदार्थों के क्रय विक्रय से नहीं पनपता, अपितु इस उद्योग के बढ़ते पैमाने के साथ इसे अपने आधार, यानि कि कृषि क्षेत्र, में उत्पादकता बढ़ाने के लिए भारी निवेश करना पड़ता है। इस प्रकार यह उद्योग कृषि क्षेत्र और अंतिम उपभोक्ता के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन सकता है।
इस उद्योग की मदद से खाद्य उत्पादन की छंटाई के लिए बेहतर तकनीक का इस्तेमाल हो सकता है जिससे की समय व पैसे की बचत हो सकती है व अधिकतम उत्पाद को काम में लाया जा सकता है। सीधे उद्योगों द्वारा खरीदे जाने पर किसानों को भी उनकी फसल का बेहतर मूल्य मिल सकता है। इस उद्योग की बढ़ती भूमिका के साथ खाद्य पदार्थों के भंडारण व उनकी आपूर्ति श्रृंखला में अधिक निवेश किए जाने की संभावना है जिससे कृषि उत्पादन की बर्बादी में कमी आएगी।