जयपुरराजनीति

सरकार चाहे बच जाये परन्तु पार्टी टूट गई

जयपुर। कुछ दिनों से राजस्थान का राजनीतिक घटनाक्रम देखने के बाद एक विचार जो बार बार मन में आता है क्या हम राजनीति में आये युवाओं के साथ संवेदना नहीं रखते। सचिन पायलट के परिपेक्ष में ये बात और भी महत्वपूर्ण है। सचिन अपने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस में जुड़े रहे और गत विधान सभा चुनावों में उनकी भागीदारी को बिलकुल भी कम नहीं आका जा सकता। 5 साल के कठिन परिश्रम के बाद पार्टी को जीत दिलाने में उनकी अहम् भूमिका रही।


ऐसे समय जब राजस्थान का नेतृत्व अशोक गहलोत के दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय प्रभार के कारण कमजोर सा प्रतीत होता था तब सचिन ही थे जिन्होंने अपने दम पर पार्टी की नैया पार लगाई। उसका परिणाम उनको उप मुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा। जो युवा अकेले के दम पर पार्टी खींचने का दम रखता हो क्या उसके लिए ये काफ़ी था, यह उससे किसी ने भी पूछना जरूरी नहीं समझी।


राज्य का नेतत्व अशोक गहलोत के पास आने से उन्हीं के वफादार विधायकों की एक बड़ी फौज होना स्वाभाविक है और सचिन का खेमा छोटा होने स्वाभाविक। इस दलील से कि युवा नेतृत्व अपने से अधिक अनुभव से सीख कर और परिपक्य होगा वर्तमान में पूरी तरह से संजीदा साबित नहीं होता। एक तो पार्टी के पास काम करने के लिए 5 साल होते हैं और उसमें से अधिकतर समय एक दूसरे को समझने समझाने में चला जाता है। दोनों खेमे के कार्यकर्ताओं व विधायकों के लिए भी असमंजस की स्थिति रहती है।


नतीजा यही होता है कि आपका युवा घुटन महसूस करता है और अपनी राह अलग कर लेता है। पार्टी में रहने पर कोई नहीं सुनता और अलग होने पर आप उसको मनाने के कोशिश करते हैं जो उसके द्वारा ठुकरा दी जाती है ओर एक कर्मठ कार्यकर्ता परिवार से अलग हो जाता है।

आज के परिपेक्ष में खिचड़ी सरकार चलाने से अच्छा हैं कि युवाओं को नेतृत्व में आगे आने दें। आज के दौर में राजनेता भी कॉर्पोरेट जगत के तरह अपनी बेहतरीन पारी 35 -50 साल में खेल सकता हैं। अब वो जमाना गया जब राजनेता धक्के खाकर या यो कहें सारी उम्र सीखकर तैयार होते थे।


सचिन जैसे कर्मठ कार्यकर्ता को तैयार होने में दो पीढ़ियां लगती हैं। उनको विरासत में मिला हुआ जनाधार उनको बाकियों से अलग पहचान देता है उनकी शिक्षा व युवा होना उनको युवाओं से सीधे संपर्क बिठाने में कारगर साबित होता है। ऐसे समय में जब कांग्रेस युवा चहरे वाली पार्टी की तरह स्थापित होना चाहती है सचिन का पार्टी से अलग होना एक बड़ा झटका हो सकता है।


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