जयपुर

जिन्हें पुलिस को सौंपना चाहिए था, उन्हें घर भिजवा दिया

नगर निगम में फर्जी नियुक्ति पत्र का मामला

जयपुर। नगर निगम में सोमवार फर्जी नियुक्ति पत्र लेकर ज्वाइनिंग लेने आए तीन युवकों का मामला अधिकारियों के लिए गले की फांस बन गया है। न उनसे निगलते बन रहा है और न ही उगलते। मामला संज्ञान में आने के बाद अधिकारियों ने जो कार्रवाई की, उससे उन पर ही सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।

नगर निगम मुख्यालय और जोनों में आज दिनभर फर्जी नियुक्ति पत्र का मामला चर्चा में रहा। अधिकारी-कर्मचारी दिनभर बतियाते और अपने-अपने कयास लगाते रहे। निगम सूत्रों का कहना है कि इस मामले में अधिकारियों पर ही शक जताया जा रहा है कि वह इस मामले को दबाने में लगे हैं।

निगम में कहा जा रहा है कि यह पूरा मामला सीधे-सीधे कूटरचित दस्तावेजों से धोखाधड़ी का बन रहा है। ऐसे में जिम्मेदार अधिकारियों को सीधे पुलिस की सहायता लेनी चाहिए थी और पकड़े गए आरोपियों को पुलिस को सौंपना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया और पकड़े गए तीनों युवकों का नाम-पता लिखकर उन्हें छोड़ दिया गया। अब अधिकारी नोटशीट लिखकर पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने का खेल कर रहे हैं।

होना तो यह चाहिए था कि जब युवक फर्जी नियुक्ति पत्र के साथ पकड़ में आ गए थे तो उपायुक्त कार्मिक या तो स्वयं पुलिस को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए थी, या फिर सतर्कता शाखा के माध्यम से पुलिस के पास मामला पहुंचाना चाहिए था। तभी फर्जी नियुक्ति पत्र बनाने वालों तक पहुंचा जा सकता था और यह पता चल सकता था कि वह अब तक कितने लोगों को फर्जी नियुक्ति पत्र दे चुके हैं। नगर निगम की सफाई कर्मचारी यूनियन भी यह आरोप लगा रही है कि पूर्व में भी ऐसे मामले हुए हैं, लेकिन ऐसा मामला पकड़ में पहली बार आया था।

निगम के जानकारों का कहना है कि सफाईकर्मियों के मामले में कई दशकों से निगम में बड़ा खेल चल रहा है। इसमें निगम के अधिकारी और कर्मचारी शामिल है। यह मामला भी निगम के इन्हीं कारिंदों का नया खेल हो सकता है। तभी तो अधिकारियों ने सीधे पुलिस को मामला नहीं सौंपा। इस मामले में एफआईआर कराने के लिए उच्चाधिकारियों से मंजूरी लेने की भी कोई बाध्यता नहीं थी, फिर भी अधिकारियों ने पकड़े गए लोगों को छोड़ दिया, जिससे ऐसा लगता है कि अधिकारी नहीं चाहते थे कि यह मामला ज्यादा तूल पकड़े।

सूत्रों का कहना है कि फर्जी नियुक्ति पत्र मामले में निगम में कोई रैकेट चल रहा है। यदि पकड़े गए युवकों से पुलिस पूछताछ होती तो इस रैकेट का खुलासा होता। युवकों को छोड़े जाने के बाद अब इनके फरार होने की पूरी संभावना है। अब यदि एफआईआर होती भी है तो यह युवक शायद ही हाथ आएं, ऐसे में मामला लंबे समय तक दब जाएगा।

सूत्रों का कहना है कि यह एक बड़ा घोटाला हो सकता है, इसलिए निगम के उच्चाधिकारियों को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए और शहर में तैनात सफाईकर्मियों की नियुक्तियों की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए।

Related posts

भिक्षावृत्ति मुक्त (Beggary free) बनेगा जयपुर, 7 सितम्बर से रेस्क्यू अभियान(Rescue campaign)

admin

3 साल की उपलब्धियों पर आयोजित प्रदर्शनी में बोले गहलोत, जनता समझ चुकी है बार—बार सरकार बदलने से रुक जाती हैं योजनाएं

admin

विजयादशमी पर सांगानेर महानगर मे स्वयंसेवक दिखाएंगे ‘पराक्रम’

Clearnews