जयपुर। करीब 5 महीने पहले जयपुर में हुई अतिवृष्टि ने राजस्थान के पुरातत्व विभाग की पोल खोल कर रख दी है। इस बारिश ने अधिकारियों के चेहरों पर ऐसा कीचड़ पोता है, जो धोए नहीं धुलेगा। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस बारिश से भीगी अमूल्य पुरा सामग्रियों का संरक्षण नहीं बल्कि अपलेखन करना होगा। सामग्रियों को नष्ट करना पड़ेगा और रिकार्ड में उन्हें नष्ट हुई दर्शा दिया जाएगा। ऐसे में अधिकारियों की देरी और लापरवाही के कारण प्रदेश अब अमूल्य धरोहरों से वंचित होने वाला है।
इस प्रकरण से साफ हो गया है कि विभाग में भारी गड़बड़ चल रही है। विभाग के अधिकारियों के लिए पुरा सामग्रियों और स्मारकों का संरक्षण जरूरी नहीं रहा, बल्कि अपनी नौकरी, कमीशनबाजी और सेटिंगबाजी जरूरी है। शर्म आती है ऐसे अधिकारियों पर जो पुरातत्व के नाम पर अपने और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं, लेकिन खराब हुई सामग्रियों के संरक्षण के बजाए अपनी नौकरी बचाने में लगे है। खुद की लापरवाही सरकार पर मढ़ने की कोशिशों में लगे हैं।
मगरमच्छ पर उग आए मशरूम
अधिकारियों की अंधेरगर्दी का आलम यह है कि पांच महीने होने को आए, अभी तक पानी से भीगी पुरा सामग्रियों को प्राथमिक उपचार तक नहीं मिल पाया है, जबकि जरूरी था कि तुरंत उनका प्राथमिक उपचार शुरू हो जाता। नतीजा यह रहा कि अब स्टोर में रखे दो प्राचीन मगरमच्छ, चमड़े की अन्य कलाकृतियों, कपड़े, कागज और लकड़ी से बनी बहुमूल्य कलाकृतियों पर कवक (मशरूम) उग आए हैं। संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी कीमत पर इन कलाकृतियों को नहीं बचाया जा सकता है।
अपलेखन हो गया जरूरी
पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि जिम्मेदार अधिकारियों की आपराधिक लापरवाही और देरी के कारण चमड़े, कपड़े, कागज और लकड़ी से बनी पुरा सामग्रियां इस हालत में पहुंच चुकी हैं, कि उनमें से अधिकांश को दोबारा संरक्षित नहीं किया जा सकता है। ऐसे में अब इन बेशकीमती पुरा सामग्रियों का अपलेखन करना होगा। इन्हें नष्ट कर रिकार्ड में इन्हें नष्ट हुई सामग्री दर्शाना पड़ेगा। इसके लिए एक विभागीय कमेटी का निर्माण करना पड़ेगा, जो देखेगी कि कौन सी सामग्री नष्ट हुई है और किन सामग्रियों को उपचार के बाद बचाया जा सकता है।
लेनी पड़ेगी सरकार से अनुमति
लेखा विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि यह सभी पुरा सामग्रियां अमूल्य है और संख्या मे भी हजारों में है ऐसे में विभाग अपने स्तर पर इनका अपलेखन नहीं कर सकता है। विभाग को खराब हुई पुरा सामग्रियों को नष्ट करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी।
इस लिए आपराधिक लापरवाही
पुरातत्व विभाग की ओर से सभी क्यूरेटर, संग्रहालय अधीक्षकों व अन्य अधिकारियों को पुरा सामग्रियों के संरक्षण की ट्रेनिंग कराई जाती है। विगत 17 वर्षों से जयपुर में जमे अल्बर्ट हॉल अधीक्षक राकेश छोलक के ट्रेंड होने के बावजूद उन्होंने सामग्रियों का प्राथमिक उपचार नहीं किया। सवाल यह भी उठता है कि अतिवृष्टि के डेढ़ महीने बाद तक विभाग की मुख्य रसायनवेत्ता ने सामग्रियों का प्राथमिक उपचार नहीं किया? जिम्मेदारियों का वहन नहीं करना भी आपराधिक लापरवाही की श्रेणी में आता है।
विभाग के निदेशक पीसी शर्मा और अल्बर्ट हॉल अधीक्षक को पता था कि सरकार से संरक्षण कार्य का फंड मिलने में देरी हो सकती है, तो फिर उन्होंने किसी इमरजेंसी फंड से प्राथमिक उपचार का निर्णय क्यों नहीं लिया? क्या विभाग में विशेष आपदाओं के लिए कोई इमरजेंसी फंड ही नहीं है? पांच महीने होने के बावजूद अभी वह किसी निर्णय की स्थिति में नहीं है और सरकार के भरोसे हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान को बहुमूल्य पुरा धरोहरों से वंचित होना पड़ रहा है।।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्राचीन ममी पानी की चपेट में आने से बच गई, लेकिन ममी के काफिन पर फंगस आ गई थी। ऐसे में जांच होनी चाहिए कि किसके निर्देशों पर ममी को बेसमेंट में शिफ्ट किया गया था। किसके निर्देशों पर बेसमेंट में प्राचीन सामग्रियों का स्टोर रूम बनाया गया, जबकि पुरातत्व अधिकारियों को पता था कि पूर्व में भी कई बार विभाग के मुख्यालय और अल्बर्ट हॉल में पानी भर चुका था। पूर्व में भी पानी से पुरा सामग्रियां बर्बाद हुई थी और उनको नष्ट कर उनका अपलेखन किया गया था। क्या यह इसी तरह से चलता रहेगा और अमूल्य धरोहरें ऐसे ही बर्बाद होती रहेगी।