जयपुर। राजस्थान के स्मारकों के संरक्षण और जीर्णोद्धार कार्यों में दोहरी नीतियां चलाई जा रही है। एक ओर केंद्र सरकार के अधीन आने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) की ओर से स्मारकों के संरक्षण कार्यों के लिए आयोजित होने वाली निविदाओं में दो वर्ष के अनुभव की शर्त हमेशा रखी जाती है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के पुरातत्व विभाग ने मिलीभगत के चलते अनुभव की शर्त हटा रखी है।
एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि जब से उनका विभाग बना है, तभी से अनुभव की शर्त लागू है और आज तक यह शर्त निविदाओं में बदस्तूर जारी है। एएसआई अपनी निविदाओं में किसी भी कीमत पर अनुभवहीन संवेदकों को स्मारकों पर काम करने की अनुमति नहीं देता है, क्योंकि यह स्मारकों की सुरक्षा का मामला है। यदि पुरातत्व विभाग राजस्थान ने इस शर्त को हटा रखा है, तो स्मारकों को होने वाले नुकसान के लिए विभाग के अधिकारी ही उत्तरदायी होंगे।
इसके पीछे सबसे प्रमुख कारण यह है कि अनुभवहीन संवेदक कभी भी गलत काम करके स्मारक को नुकसान पहुंचा सकता है, वहीं स्मारकों पर प्राचीन समय में किया गया कलात्मक कार्य चाहे वह निर्माण कार्य हो या फिर रंग-रोगन या चित्रकारी नया संवेदक उस काम को नहीं कर सकता है। अनुभवहीन संवेदक तो प्राचीन निर्माण कार्य से मिलती-जुलती निर्माण सामग्री भी तैयार नहीं कर सकता है, क्योंकि उन्हें सिर्फ सीमेंट से कार्य का अनुभव होता है, जबकि प्राचीन स्मारकों पर सीमेंट का उपयोग बिलकुल वर्जित है।
यह है एएसआई की शर्त
एएसआई की निविदा शर्त नम्बर 2 के अनुसार निविदा दाता को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, राजस्थान पुरातत्व विभाग में इस निविदा की प्रकाशन की तिथि से पिछले दो वित्तीय वर्ष में समान कार्य के संपादन का कार्यानुभव होना चाहिए और दो वर्ष के अनुभव से संबंधित दस्तावेज की सत्यापित प्रति संलग्न करना होगा अन्यथा निविदा प्रपत्र अमान्य होगा। जबकि पुरातत्व विभाग द्वारा अनुभव की शर्त को हटा दिया गया है, जिसके बारे में क्लियर न्यूज पहले ही आगाह कर चुका है। हद तो यह है कि विभाग ने अपनी निविदाओं में से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का नाम तक हटा दिया है।
अनुचित तोड़फोड़ से ध्वस्त हो जाएंगे स्मारक
पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि आने वाले एक दशक में राजस्थान में पुरातत्व विभाग के अधीन लगभग सभी प्राचीन स्मारक ध्वस्त होने की कगार पर आ जाएंगे। कारण यह कि विभाग के अधिकारी ठेकेदारों से मिलीभगत कर स्मारकों को स्लो पॉइजन देने में लगे हैं। स्मारकों पर बेवजह तोड़फोड़ कराई जा रही है, ताकि संरक्षण के लिए आए बजट को ठिकाने लगाया जा सके। संरक्षण कार्यों के जानकार ठेकेदारों को लगातार विभाग में काम नहीं दिए जा रहे हैं और अधिकारी अपने चहेते ठेकेदारों को दूसरे विभागों से बुलाने के लिए लगातार पुरानी शर्तों में हेरफेर कर रहे हैं।
ऐसे में कहा जा रहा है कि डामर की सड़क, नालियां, पाइपलाइन बिछाने व सीमेंट की इमारतें बनाने वाले संवेदक कभी भी स्मारकों के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं। इससे बुरे हाल विभाग की कार्यकारी एजेंसी आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) में भी है। यहां भी पुराने ठेकेदारों को परेशान करके भगाया जा रहा है और इंजीनियर अपने चहेते अनुभवहीन संवेदकों से प्राचीन स्मारकों पर वार्षिक रख-रखाव के नाम पर तोड़फोड़ करा रहे हैं।