धरम सैनी
जयपुर से सटे हुए नाहरगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य में कई दशकों से लोगों की निर्बाध आवाजाही पर अब शिकंजा कसने वाला है। वन विभाग की ओर से अभ्यारण्य में जाने वाले सभी रास्तों पर जल्द ही चैकपोस्ट स्थापित कर बैरियर लगाए जाएंगे। इसके बाद लोग वन विभाग को शुल्क चुकाकर ही अभ्यारण्य में जा पाएंगे, वह भी सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक। सूर्यास्त के बाद कोई नाहरगढ़ के अंदर नहीं जा पाएगा।
सहायक वन संरक्षक वन्यजीव नाहरगढ़ रेंज गजनफर अली जैदी ने बताया कि चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन मोहन लाल मीणा ने नाहरगढ़ अभ्यारण्य में जाने वाले रास्तों पर चैकपोस्ट और बैरियर लगाने के लिए उप वन संरक्षक (वन्यजीव) चिड़ियाघर से प्रस्ताव मांगा था। चैकपोस्ट स्थापित करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है और सोमवार को चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को भेज दिया जाएगा।
प्रस्ताव में कहा गया है कि वाहनों के जाने वाले रास्तों में प्रमुख रूप से कनक घाटी, विद्याधर नगर में किशनबाग, आकेड़ा में धनुर्धारी हनुमान मंदिर, सुमन पुरा, बंध तलाब के पास पुराना दिल्ली गेट, छोटा व बड़ा सागर है। यहां चैकपोस्ट और बैरियर लगाकर अंदर आने-जाने वालों पर नियंत्रण किया जाएगा। शुल्क चुकानें के बाद ही वाहन अंदर जा पाएंगे।
सबसे पहले कनक घाटी से जयगढ़ और नाहरगढ़ फोर्ट जाने वाले रास्ते पर बैरियर लगाया जाएगा, क्योंकि यहीं से सबसे ज्यादा वाहन अभ्यारण्य में जाते हैं। वहीं पैदल जाने वाले रास्तों में नाहरगढ़ रोड़ से चढ़ने वाले रास्ते, गैटोर की छतरियों के पास से अंदर जाने वालों पर निगरानी के लिए भी चौकियां बनाई जा सकती है।
यह होगा फायदा
रात में लोगों की अभ्यारण्य में आमद-रफ्त पर रोक लगने का सबसे बड़ा फायदा वन्यजीवों को मिलेगा और वह रात में निर्बाध जंगल में घूम पाएंगे। वन्य अपराधों में कमी आएगी। चैकपोस्ट लगाने से वन विभाग को भी राजस्व मिलेगा, जो वन विकास में काम आएगा। वन नियमों के अनुसार वन विभाग अभ्यारण्य में जाने वाले लोगों से शुल्क वसूलने का अधिकार रखता है। पूरे देश में नाहरगढ़ ही अकेला ऐसा अभ्यारण्य है, जहां अभी तक अंदर जाने वाले लोगों से कोई शुल्क नहीं वसूला जाता है, जो वन विभाग की बड़ी नाकामी थी।
देर आयद, दुरुस्त आयद
बताया जा रहा है कि नाहरगढ़ अभ्यारण्य के रास्तों पर चैकपोस्ट स्थापित करने के लिए पूर्व में भी कई बार प्रस्ताव तैयार हुए, लेकिन पुरातत्व व पर्यटन विभाग के दबाव के कारण यह प्रस्ताव फाइलों में ही दब गए। अब जबकि अभ्यारण्य में लोगों की निर्बाध आवाजाही और वाणिज्यिक गतिविधियों के खिलाफ एनजीटी और लोकायुक्त के पास मामला पहुंच गया है तो वन अधिकारी भी सख्त कार्रवाई कर पुरातत्व और पर्यटन की मनमानी पर लगाम लगाने में जुट गए हैं। यदि इस समय यह निर्णय नहीं लिया जाता तो भविष्य में वन अधिकारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता था।
फोर्ट में नाइट ट्यूरिज्म और वाणिज्यिक गतिविधियों पर संकट के बादल
वन विभाग के इस फैसले से नाहरगढ़ फोर्ट में वन एवं वन्यजीव अधिनियमों की धज्जियां उड़ाकर चल रही वाणिज्यिक गतिविधियों पर संकट के बादल छा गए हैं। यदि रास्तों पर चैकपोस्ट लग जाते हैं तो पर्यटन विभाग की एजेंसी आरटीडीसी को फोर्ट के अंदर चल रहे अपने रेस्टोरेंट और बार को बंद करना पड़ेगा। वहीं फोर्ट में चल अन्य वाणिज्यिक गतिविधियां भी बंद हो जाएंगी, क्योंकि रेस्टोरेंट व बार में आने वाले अधिकतर लोग सूर्यास्त के बाद ही यहां पहुंचते हैं। पुरातत्व विभाग को नाहरगढ़ में शुरू किया गया नाइट ट्यूरिज्म भी बंद करना पड़ेगा।
पर्यटकों को होगा नुकसान
वन विभाग की इस कवायद से नाहरगढ़ और जयगढ़ जाने वाले पर्यटकों को नुकसान होगा, क्योंकि पहले उन्हें अभ्यारण्य में जाने के लिए वन विभाग को शुल्क चुकाना होगा, फिर फोर्ट घूमने के लिए शुल्क देना होगा। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए पुरातत्व विभाग ही जिम्मेदार है। विभाग के पास फोर्ट का मालिकाना हक नहीं है, इसके बावजूद वह दशकों से फोर्ट को कब्जाए बैठा है। यदि पुरातत्व विभाग वन और वन्यजीव अधिनियमों की धज्जियां उड़ाकर फोर्ट में वाणिज्यिक गतिविधियां शुरू नहीं करता तो शायद वन विभाग यह कार्रवाई नहीं करता।
परिवाद पेश हुआ तो होने लगी कार्रवाई
इस मामले में परिवादी राजेंद्र तिवाड़ी की ओर से लोकायुक्त में परिवाद पेश कर आरोप लगाया गया था कि उप वन संरक्षक (वन्यजीव) उपकार बोराणा की मिलीभगत से नाहरगढ़ फोर्ट में अवैध व्यावसायिक गतिविधियां संचालित हो रही है। विभागीय जांच रिपोर्ट में परिवादी के सभी आरोपों को सही पाया गया। इसके बावजूद अधिकारी जांच रिपोर्ट को दबाए बैठे रहे। फोर्ट को अतिक्रमण मुक्त कराने के प्रयास नहीं किए, जबकि यह सभी कार्रवाई नाहरगढ़ रेंज के अधिकार क्षेत्र में आती है।
उल्लेखनीय है कि क्लियर न्यूज ने सबसे पहले नाहरगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य में अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों का मामला उठाया और लगातार इस संबंध में खबरें प्रकाशित की। इसके बाद यह मामला एनजीटी और लोकायुक्त के पास पहुंचा और वन अधिकारियों पर दबाव बनना शुरू हो गया। इसी के बाद वन अधिकारियों को अपनी नौकरी पर संकट दिखाई देना लगा। उन्हें लगा कि अब यदि सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो उनकी जिम्मेदारियां निर्धारित होगी। ऐसे में अब वन अधिकारियों ने सख्त कार्रवाई की तैयारियां कर ली है।