जयपुर

तकनीकी नियमों की अनदेखी के कारण गिरे त्रिपोलिया बाजार में बरामदे, पट्टियों पर नहीं किया जा रहा खड़ंजा, खान से निकली पट्टियों के बजाए स्मूथ सरफेस पट्टियों का हो रहा इस्तेमाल

त्रिपोलिया बाजार में गिरे बरामदों के बाद एक बार फिर जयपुर स्मार्ट सिटी कंपनी के कामों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि कंपनी के इंजीनियर निर्माण इंजीनियरिंग की नई परिभाषाएं गढ़ने में लगे हैं, जो स्थापत्य के लिए विश्वप्रसिद्ध जयपुर पर बदनुमा दाग के समान है।

बारामदे गिरे हैं तो अब इसकी जांच भी होगी और कारण भी पता किए जाएंगे, लेकिन रिपोर्ट के बारे में कहा जा सकता है कि वह इंजीनियरों और ठेकेदार के पक्ष में ही आएगी और बरामदों के गिरने के असली कारणों को छिपा लिया जाएगा, लेकिन हम आपको बता रहे हैं कि बरामदे किस कारण गिरे।

परकोटे के बरामदों के जीर्णोद्धार कार्यों में मिलीभगत के खेल के चलते भारी गड़बड़ियाँ चल रही है और निर्माण के साधारण नियमों की अनदेखी की जा रही है। प्राचीन इमारतों के संरक्षण में राजस्थान प्रेक्टिस के अनुसार लोकल स्तर पर उपलब्ध निर्माण सामग्रियों का ही उपयोग होना चाहिए, जबकि स्मार्ट सिटी की ओर से बरामदों में टूटी पट्टियों को बदलने के लिए करौली की पट्टियों का उपयोग किया जा रहा है, जो सही नहीं है।

जानकारों का कहना है कि जयपुर की सभी प्राचीन इमारतों में ‘दणाऊ’ नामक स्थान की हरे रंग की पट्टियां इस्तेमाल की गई है, जिनमें तनाव झेलने की जबरदस्त क्षमता होती थी, लेकिन अब जो पट्टियां बरामदों में लगाई गई है, वह सैंड स्टोन की है और इनमें तनाव झेलने की बहुत कम क्षमता है और जरा सा वजन पड़ने पर यह टूट जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि करौली की पट्टियों की जगह यदि कोटा या जोधपुर की पट्टियों का उपयोग किया जाता तो वह ज्यादा मजबूत रहती और इस तरह बरामदा धराशाही नहीं होता।

स्मूथ पट्टियां लगाना तकनीकी रूप से बिलकुल गलत
अब यह पता नहीं स्मार्ट अधिकारियों की करौली के खान मालिकों से क्या मिलीभगत है कि स्मार्ट सिटी के अलावा पुरातत्व विभाग, आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण तक करौली के पत्थरों पर फिदा हैं, जबकि जयपुर के स्थापत्य में करौली के पत्थरों का उपयोग न के बराबर था।

पट्टियों की छत पर खड़ंजा और नीचे प्लास्टर किया जाता है, ऐसे में पटाव के लिए खान से निकली रफ पट्टियों का उपयोग किया जाता है, लेकिन स्मार्ट सिटी के अधिकारी बरामदों में मशीनों से स्मूथ सरफेस की पट्टियां लगवा रहे हैं, जो तकनीकी रूप से बिलकुल गतल है। स्मूथ पट्टियों पर न तो दड़ पकड़ कर पाता है और न ही प्लास्टर। पकड़ कमजोर होने के कारण बरामदे गिर सकते हैं।

नहीं किया पट्टियों पर खड़ंजा
स्मार्ट सिटी की ओर से दूसरी गड़बड़ी यह की गई कि पट्टियों पर खड़ंजा नहीं किया गया। निर्माण नियमों के अनुसार पट्टियों को मजबूती प्रदान करने के लिए उसपर पांच से छह इंच मोटा खड़ंजा किया जाता है, जिसमें मसाले के साथ पत्थर के पतले टुकड़ों को लगाया जाता है, उसके बाद उसपर पानी के ढ़लान के लिए दड़ किया जाता है। जबकि, स्मार्ट सिटी की ओर से पट्टियों को बदलने के बाद उसपर ईंट की रोडी और चूना मिलाकर सीधे दड़ कर दिया, जिससे यह बरामदे मजबूत नहीं हो पाए।

मेटिरियल में भी खामियां
बरामदों के जीर्णोद्धार कार्यों में तकनीकी खामियों के साथ-साथ मेटिरियल में भी खामियां है। ईंटों के बुरादे में कली मिलाकर जीर्णोद्धार किया जा रहा है, जिसे चूना कहते हैं, लेकिन चूना बनाने में कली का बहुत ही कम इस्तेमाल किया जा रहा है। ताजा भिगोई हुई कली का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे भी संरक्षण कार्यों को मजबूती नहीं मिल पाती। वहीं सबसे बड़ी बात यह कि चूने के निर्माण में उपयोग होने वाली अन्य सामग्रियां जैसे गुड़, गुग्गल, सन, व अन्य पदार्थ नहीं मिलाए जा रहे हैं, जिससे भी मसाला कमजोर बन रहा है और बरामदों को मजबूती नहीं मिल पा रही है।

हो सकते हैं बड़े हादसे
त्रिपोलिया बाजार में बरामदे सुबह के समय गिरे और गनीमत यह रही कि उस समय बरामदों में भीड़ नहीं थी, लेकिन बिना खड़ंजे के स्मूथ पट्टियां लगाने के कारण बरामदों से कभी भी बड़ी जनहानि हो सकती है। जयपुर में बंदरों की बड़ी समस्या है और वह मकानों, दुकानों और बरामदों पर कूदते-फांदते रहते हैं। गलत जीर्णोद्धार के कारण बरामदों में मजबूती नहीं है, ऐसे में कभी भी बंदरों के कूदने से भी पट्टियां टूट कर गिर सकती है।

वहीं दूसरी ओर शहर में तीज और गणगौर के समय सवारियां निकलती है और हजारों लोग इन बरामदों के नीचे और ऊपर से सवारी देखते हैं। ऐसे में भीड़ का वजन नहीं झेलने के कारण भी यह पट्टियां कभी भी टूट सकती है।

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