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‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’ ऐतिहासिक सिसोदिया रानी बाग में 5 साल से फाउंटेन बंद, फाउंटेन की मोटर को किया चबूतरे में दफन

राजधानी के स्मारकों में मनमानी से हो रहा संरक्षण कार्य, एडमा के इंजीनियर कलात्मक कार्य तो दूर साधारण काम भी नहीं करा पा रहे

धरम सैनी
जयपुर। भारत के कई शहरों में रियासत काल, मुगल काल और उससे भी पहले के बाग-बागीचे बने हुए हैं। इन ऐतिहासिक बाग-बागीचे की एक सबसे बड़ी समानता उनमें लगे फव्वारे होते हैं, जिनसे इन बागों की सुंदरता में चार-चांद लगते हैं, लेकिन राजस्थान का पुरातत्व विभाग और उसकी कार्यकारी एजेंसी आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) राजधानी जयपुर के ऐतिहासिक बाग ‘सिसोदिया रानी बाग’ के फव्वारों को खत्म करने में जुटा है। कारण यह कि विभाग इन फव्वारों का सही से प्रबंधन नहीं कर पा रहा है। एडमा के इंजीनियर स्मारकों में कलात्मक काम कराना तो दूर साधारण काम कराने में भी फेल होते जा रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि ‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’ कहावत राजस्थान के पुरातत्व विभाग और उसकी एजेंसी एडमा पर बिलकुल सटीक बैठती है, क्योंकि जो काम इंजीनियरों से नहीं हो पा रहे हैं, उन्हें दफन किया जा रहा है।

जानकारी में आया है कि अकसर पर्यटक शिकायत करते हैं कि विभाग टिकट का पूरा पैसा वसूल कर रहा है, तो फिर बाग में फव्वारों को क्यों नहीं चलाया जा रहा है। हकीकत है कि अक्सर बाग में फव्वारों को नहीं चलाया जाता है, लेकिन यहां लगे फव्वारों में एक फव्वारा ऐसा भी है जो पिछले करीब पांच साल से बंद पड़ा है।

बारादरी के बाहर फव्वारे का कुंड, जिसे अब दफन कर दिया गया

पुरानी फोटो ने खोली पोल
सिसोदिया रानी बाग में भूतल से नीचे के तल पर एक छोटा फव्वारा बना हुआ है, जिसके पूर्व और पश्चिम में बारादरियां बनी हुई है। इनमें एक बारादरी के नीचे इस फव्वारे को चलाने के लिए पानी का कुंड बना हुआ था ओर इसी में मोटर लगी थी। कहा जा रहा है कि पिछले पांच साल में हुए संरक्षण कार्यों के दौरान इस कुंड को दफन कर दिया गया और इसकी जगह पक्का चबूतरा बना दिया गया। एक पुरानी फोटो ने पुरातत्व विभाग और एडमा के अधिकारियों की इस कारगुजारी की पोल खोलकर रख दी है। इस फोटो में बारादरी के नीचे कुंड साफ दिखाई दे रहा है।

अधिकारी अपनी गलतियों को इतिहास में दफन करने में जुटे
इस बंद किए गए फव्वारे के संबंध में जब एडमा के अधिशाषी अभियंता (अतिरिक्त प्रभार-कार्यकारी निदेशक कार्य) बीपी सिंह एडमा की इस भयंकर गलती को इतिहास में दफन करने में जुट गए। सिंह ने कहा कि इस फव्वारे को एक दशक पूर्व बंद किया गया होगा, अभी तो इसे बंद नहीं किया गया है। जबकि पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि पिछले चार-पांच सालों में ही इस फव्वारे को बंद किया गया है।

पांच तलों के इस बाग में हर तल पर बने हुए हैं फव्वारे
सिसोदिया रानी बाग जयपुर में रिसासत समय पर विकसित किया गया बाग है। झालणा की पहाडिय़ों के बीच बने इस बाग को मुगल गार्डनों की तर्ज पर बनाया गया था। चार से पांच तल में बने इस बाग हर तल पर फव्वारों का निर्माण किया गया था, जो इसकी सुंरदता में चार चांद लगाते थे, लेकिन पुरातत्व विभाग और एडमा के ना-काबिल अधिकारी इन फव्वारों की सही देखभाल नहीं कर पा रहे हैं, जो इस बाग के मूल स्वरूप से खिलवाड़ है।

ऐसे आता था पानी
सिसोदिया रानी बाग के प्रथम तल पर महल बना हुआ है। महल के पश्चिम में स्थित पहाड़ी के नीचे एक टैंक बना हुआ है। इस टैंक से बारिश के समय में सिकोरों की एक नाली के जरिए महल के नीचे से होते हुए प्रथम तल पर बने फव्वारे में पानी आता था। यहां से यह पानी नीचे के तलों में जाता था और उन तलों के फव्वारे भी इसी पानी से चलते थे। सबसे नीचे के तल से यह पानी नहर में चला जाता था, जो शायद पुराने समय में बागीचे की सिंचाई के उपयोग में लिया जाता था। पुरातत्व विभाग ने करीब एक दशक पूर्व पानी के लिए बनाई गई सिकोरों की लाइन की मरम्मत भी कराई थी, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे लगभग सभी फव्वारों में पानी की लाइनें डाल दी गई और उन्हें पम्प से जोड़ दिया गया।

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