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भविष्य में सम्बंध तनावपूर्ण (Tensional Relationship) ना रहें, इसके लिए जरूरी हो गया है विवाह पूर्व परामर्श (Pre-wedding Counselling)

मिताली और राजन के विवाह को छह माह ही हुए थे। मिताली का घर से अधिक ऑफिस के काम में समय देना, इस बात को लेकर छोटी-मोटी अनबन तलाक तक पहुंच गई। सुनीता और दीपक की शादी को सोलह साल हुए थे। चौदह और आठ साल की उनकी दो बेटियां भी है। पिछले तीन-चार वर्षों से दीपक का चिड़चिड़ापन बहुत बढ़ गया था। गुस्से में वह अपने आप पर काबू नहीं कर पाता था और सुनीता से मारपीट करता था। एक-दो बार उसने बच्चियों पर भी हाथ उठाया था। परिवार वालों द्वारा उसे कई बार समझाने पर भी उसके व्यवहार में बदलाव नहीं आया था। आखिर अपनी और बेटियों की सुरक्षा को देखते हुए सुनीता ने तलाक के लिए अर्जी दे दी।

कोरोना संक्रमणकाल में बढ़े तलाक के मामले

इसी तरह निखिल और साक्षी के विवाह को भी तीन साल हुए थे। उनका एक साल का बेटा भी है। ससुराल वाले कभी उसके काम की प्रशंसा नहीं करते, हमेशा उसकी तुलना जेठानी से करते हैं, ऐसा साक्षी का मानना था। निखिल का कहना था कि साक्षी के घरवाले जरूरत से ज्यादा ही उनके वैवाहिक जीवन में दखलंदाजी करते हैं। इसी बात को लेकर दोनों तलाक तक पहुंच गए। ऐसी घटनाएं हमें अपने आस-पड़ोस, परिवार के नजदीकी सदस्यों में देखने को मिल रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में तलाक के मामले बढ़ गए हैं। विशेषत: कोविड-19 के संक्रमण काल में तलाक तथा वैवाहिक संबधों की अनबन कुछ ज्यादा ही उजागर हुई है। वैवाहिक संबधों के बीच पनपे तनावों के लिए कोरोना को जिम्मेवार ठहराना उचित नहीं होगा। आज कोरोना है, तो कल कोई और विषाणु तथा विषम परिस्थितियां होंगी।

पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में तलाक के मामले कम

पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में जनसंख्या अधिक होने के उपरान्त भी तलाक की संख्या कम ही दिखाई देती हैं। सांख्यिकी के अनुसार भारत में सौ में से एक विवाह तलाक तक पहुंचता है। शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र में कम तलाक होते हैं। इसका प्रमुख कारण हमारी संयुक्त परिवार की परंपरा में दिखाई देता है। दो विभिन्न घर, संस्कृति तथा परिवेश में जन्मे, पले- बढ़े, स्त्री-पुरुष विवाह-संस्कार द्वारा दाम्पत्य जीवन अनुगृहीत करते है। वैवाहिक सम्बंध सफलतापूर्वक निभाया जाये, इसके लिए स्वयं दम्पति तथा उनके परिवार वाले विशेष प्रयास करते हैं।

भारत में विवाह निजी मामला नहीं

 भारतीय परिप्रेक्ष्य में विवाह निजी मामला नहीं है। इसे एक संस्कार, जिम्मेवारी माना गया है। यह ना केवल दो व्यक्तियों को बल्कि दो परिवारों तथा दो समाजों को जोड़ता है। बदलते समाज के साथ, धीरे-धीरे हम भी एकल परिवार की ओर बढ़ते जा रहे है। हर व्यक्ति अधिकाधिक आत्मकेंद्रित होता हुआ दिखाई दे रहा है। समायोजन क्षमता और साझीदारी की भावना के अभाव में वैवाहिक जीवन में कई समस्याएं आती है। वस्तुत: हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है। कुछ लोग अकेले रहना पसंद करते है। उनको लोगों के साथ ज्यादा घुल-मिल जाना अच्छा नहीं लगता। किताबें पढ़ना, वेब सीरीज देखना, बागबानी करना जैसे निजी कार्यों में उनको आनंद मिलता है। उससे वह उर्जावान महसूस करते हैं।

समायोजन कौशल होना जरूरी

 कुछ लोगों को अपने मित्र-परिवार वालों से मिले बिना अच्छा नहीं लगता। दिन में कम से कम चार-पांच मित्रों से/परिवार वालों से बात करना, हफ्ते में एक-दो बार उनसे मिलना, उनकी उर्जा का स्त्रोत होता है। इसी प्रकार कुछ लोग योजनाबद्ध तरीके से रहते है। कुछ लोग हमेशा उलझन में रहते हैं। कुछ लोग बहुत ज्यादा सोचते हैं, तो कुछ लोग बिना सोचे-समझे निर्णय ले लेते हैं। पैसों के मामले में कुछ व्यक्ति अनावश्यक खर्च करते है, तो कुछ बहुत कंजूस होते हैं। भिन्न प्रकृति और व्यक्तित्व के लोग विवाह के नाते में बंध जाते है। समायोजन का कौशल विभिन्न स्वभाव के व्यक्तियों का वैवाहिक जीवन आसान बनाने में मदद करता है। आज के समय में समायोजन इसलिए कठ़िन हो गया है कि व्यक्ति का अहं बहुत ज्यादा बढ़ गया है। जिसका परिणाम वैवाहिक सम्बधों में तनाव के रूप में दिखाई देता है।

विवाह निश्चित करते समय वर्षों से पारंम्परिक बिंदुओं पर रिश्ते परखे जा रहे हैं। आज भी समाचार पत्र में विवाह के संदर्भ में जो विज्ञापन आते हैं, उसमें जाति, गोत्र, कद, रंग, शिक्षा, पेशा-नौकरी, सांपत्तिक स्थिति आदि बिंदुओं को ही अधोरेखीत किया जाता है। विवाह रचाने में सहायक संस्थाएं (मेट्रोमोनिअल) तथा वेबसाइट पर भी यही चित्र दिखाई देता है। परिणामस्वरूप कभी-कभी विवाह के मामले में धोखाधड़ी के मामले भी हो जाते है।

जीवनसाथियों के भिन्न स्वभाव

 ऐसा नहीं हैं कि केवल जीवनसाथियों के स्वभाव ही भिन्न होते है। परिवार के सदस्यों के, कार्यालय में सहकर्मियों के, कॉलेज में मित्रों के स्वभाव भी भिन्न पाये जाते हैं। लेकिन, जीवनसाथी जीवन का वह महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं जो आपके पूरे व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है। आपका शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य, आपके कार्यक्षेत्र में आपका प्रभावी रूप से योगदान, बच्चों की परवरिश यह सारी चीजें वैवाहिक जीवनसाथी से जुड़ी हुई होती है। इसलिए जीवनसाथी का चयन करते समय विवाहपूर्व परामर्श (प्रि-मरायटल काउन्सलिंग) बहुत जरूरी है। कुछ अनुभवी लोग कहेंगे कि हमारे समय यह सब नहीं था फिर भी हमने निभा ही लिया। परंतु बीते हुए कल में और आज के समय में बहुत अंतर आया है।

विवाह के लिए खुलकर की जाये बात

आज के समय में विवाहोच्छुक पुरुष तथा स्त्री को अपने रक्त समूह के बारे में जानकारी होना जरूरी हो गया है। कोई अनुवांशिक बीमारी हो तो उसके बारे में भी खुलकर बात करनी चाहिए। ताकि आने वाली संतान में कोई दोष निर्माण ना हो। इसी तरह दोनों व्यक्तियों ने अपना करिअर, रुचि, सोच, अरमान तथा अपनी आकांक्षाएं, जीवनदृष्टिकोण इन चीजों को भी आपस में जान लेना चाहिए। एक-दूसरे की खामियां समझते हुए वैवाहिक जीवन का पथ सुगम बनाने के लिए जो बदलाव आवश्यक हैं, उसके लिए दम्पति को प्रयास करने होंगे। स्वयं के व्यक्तित्व को बारीकी से परखना होगा। विवाहपूर्व परामर्श प्रक्रिया में इन सारे बिंदुओं पर विचार-विमर्श होता है। बीमार न पड़ने के लिए अथवा बीमारी का असर कम होने के लिए जैसे टीकाकरण प्रभावकारी रहेता है। उसी प्रकार वैवाहिक जीवन में तनाव का स्तर ना बढ़े और वैवाहिक जीवन संतोषजनक व्यतित होने के लिए विवाहपूर्व परामर्श मददगर साबित होता है।

गोवा में किया गया था विवाहपूर्व परामर्श अनिवार्य

 कुछ दिन पूर्व गोवा जैसे छोटे से राज्य ने कोरोनाकाल में बढ़ते हुए तलाकों की संख्या देखकर, विवाहपूर्व परामर्श अनिवार्य करने का निर्णय लिया था। बाद में विरोध के कारण यह निर्णय स्थगित करना पड़ा। गोवा राज्य द्वारा लाया गया प्रस्ताव निश्चित रुप से अभिनंदन करने योग्य था। आनेवाली पीढ़ी स्वस्थ, संतुलित हो इसलिए ‘विवाहपूर्व परामर्श’ पर विचारपूर्वक निर्णय लेने का समय आ गया है। शादी में जितना समय हम गहने, कपड़े खरीदने में, रीति-रिवाजों का पालन करने में व्यतीत करते है, उतना ही समय मर्यादा और सभ्यता के साथ स्त्री-पुरुष तथा उनके परिवारवालों ने विवाहपूर्व परामर्श के लिए देना आवश्यक है। परिवारों के बुजुर्गों के साथ यह प्रक्रिया ‘प्रि-वेडिंग’ जितनी ही मज़ेदार बन सकती है। कपड़े, फैशन तक सीमित रहने वाली आधुनिकता हमारी सोच और जीवन व्यवहार का भी हिस्सा बननी चाहिए। स्वस्थ परम्पराओं के निर्वहन के साथ, जीवनदायी दृष्टिकोण दाम्पत्य जीवन को मधुर और अनुरागी बनाने में निश्चित रूप से मददगार साबित होगा। 


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