- अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर को लेकर भी गैर भाजपा दल अत्यंत विचलित हैं। इन दलों को लग रहा है कि राम मंदिर बन गया तो इसका पूरा श्रेय और लाभ भाजपा ले लेगी। राम मंदिर के निर्माण की विश्वसनीयता संदिग्ध करने के उद्देश्य से आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के नेता जन्मभूमि के निकट खरीदे गए एक भूखंड के सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों की छवि खराब करने का असफल प्रयास कर रहे हैं। साथ ही कुछ लोग यह भी सवाल खड़ा कर रहे हैं कि हमारे देश में मंदिर से ज्यादा जरूरत अस्पतालों की है।
अगरबत्ती खरीदें या सैनिटरी नैपकिन?
इन लोगों से मेरा काउंटर सवाल है कि क्या इस बात पर भी देश में बहस होनी चाहिए कि घरों में अगरबत्तियां जरूरी हैं या महिलाओं के सैनिटरी नैपकिन ? मुझे लगता है कि यह दोनों मुद्दे अलग-अलग हैं और इन्हें मिलाकर नहीं देखा जाना चाहिए। दोनों का अपना महत्व है। ध्यान दिला दूं कि अस्पतालों का निर्माण करना मूलतः राज्य सरकारों का काम है और इस काम में हाथ बंटाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार भी एम्स जैसे कुछ अस्पताल बनाती है। राम जन्मभूमि मंदिर और ऐसे अन्य मंदिर सरकार नहीं बनवाती है बल्कि करोड़ों श्रद्धालु अपने खून पसीने की कमाई से योगदान देकर इन्हें बनवाती है। यह बात अलग है कि कई जगह मंदिर के ट्रस्ट भी अस्पताल बनाकर चला रहे हैं लेकिन फिर भी यह काम सरकार का ही है। ऐसे में अस्पताल और मंदिर की तुलना असंगत है। ( राज्य सरकारें चाहे तो मंदिर ट्रस्टों को अस्पताल के लिए निशुल्क भूमि आवंटित कर सकती हैं ताकि मंदिर स्वेच्छा से अपने स्वामित्व और देखरेख में अस्पतालों का निर्माण कर उन्हें चला सकें।)
हमारे देश में हर मुद्दे को राजनीति से जोड़ने का प्रचलन है
हमारे देश में लोगों के रोजगार का बड़ा हिस्सा धार्मिक टूरिज्म से आता है। करोड़ों लोग इस रोजगार पर निर्भर हैं। आप अजमेर का ही उदाहरण ले लें तो यहां के मुस्लिम समुदाय का बहुत बड़ा हिस्सा ख्वाजा साहब की दरगाह से होने वाली प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष आय पर निर्भर है। इसी तरह हिंदुओं और ईसाइयों के बहुत सारे धर्म स्थल हैं, जिनसे करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है।
उत्तर प्रदेश में राम मंदिर बनने के बाद देश-विदेश से प्रतिदिन करोड़ों पर्यटक यहां आएंगे और यहां की अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुंचाएंगे। हाँ, राम मंदिर निर्माण में जनसहयोग से जो चंदा आया है, उसका कुछ भाग स्कूल, कॉलेज और अस्पताल बनाने में भी खर्च किया जाना चाहिए ताकि इसकी प्रत्यक्ष सामाजिक उपयोगिता हो और अनावश्यक बकवास करने वाले लोगों का मुँह भी बंद हो जाए। वैसे, अस्पताल बनाना सरकार की जिम्मेदारी है और मंदिर-मस्जिद लोग अपनी आस्था के आधार पर बनाते हैं।
यह भी आश्चर्य का विषय है की हमारा कोई मुस्लिम भाई कभी किसी मस्जिद की उपयोगिता या कोई ईसाई भाई किसी गिरजाघर की उपयोगिता पर सवाल नहीं उठाता लेकिन हमारे तथाकथित अति बुद्धिजीवी और फर्जी सोशल एक्टिविस्ट बार-बार मंदिरों पर सवाल उठाते हैं। जब वे इस विषय पर चर्चा करते हैं तो सारे धर्म स्थलों की उपयोगिता और आय के सदुपयोग पर भी बात होनी चाहिए, केवल मंदिरों पर नहीं।
चलते-चलते
दुर्भाग्य से राम मंदिर न्यास द्वारा जमीन की खरीद में घोटाले का आरोप वे लोग लगा रहे हैं जिन्होंने इस कार्य के लिए चार आने का चंदा भी नहीं दिया। आरोप लगाने वाले लोग खुद घोटाले करते रहे हैं इसलिए वे मानकर चलते हैं कि यदि करोड़ों अरबों रुपये की लागत से मंदिर बन रहा है तो यह संभव ही नहीं है कि इसमें कोई हेरा फेरी ना हो। जिस भूखंड को 18 करोड़ रुपये में खरीदने पर सवाल उठाए जा रहे हैं, वह यदि मुंबई के किसी भूमाफिया का होता तो वह राजनीतिज्ञों और माफिया वाले ‘भाइयों’ की मदद से मंदिर ट्रस्ट को ब्लैकमेल करके कम से कम 50 करोड़ रुपये में देता!
राम मंदिर न्यास से जुड़े हुए लोग वे हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन नि:स्वार्थ भाव से राम मंदिर के निर्माण पर लगा दिया। इन लोगों पर कीचड़ फेंकना आसमान की ओर मुंह करके थूकने जैसा है। यह है थूक और भ्रष्टा, झूठे आरोप लगाने वाले संजय सिंह जैसे लोगों के मुंह पर ही आकर गिरेगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)