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राजस्थान में पुरातत्व विभाग दशकों से स्मारकों और पुरा सामग्रियों का करवा रहा घटिया संरक्षण कार्य

राजस्थान-जयपुर। राजधानी में अगस्त के महीने में हुई अतिवृष्टि से केंद्रीय संग्रहालय अल्बर्ट हॉल में पानी भर गया और भारी मात्रा में बेशकीमती पुरा सामग्रियां बर्बाद हो गई। इसका खुलासा अब धीरे-धीरे हो रहा है।

पानी से खराब हुई सामग्रियों के संरक्षण का कार्य अभी तक शुरू नहीं हो पाया है, क्योंकि विभाग की प्रमुख शासन सचिव मुग्धा सिन्हा ने विभाग की ओर से पिछले डेढ़ दशक से कराए जा रहे संरक्षण कार्यों पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

एक विशेष बातचीत में सिन्हा ने बताया कि राजस्थान में कोई ऐजेंसी ऐसी नहीं है, जो पुरा सामग्रियों के संरक्षण का कार्य जानती हो। दिल्ली की सरकारी संस्था आईजीएनसी ही संरक्षण कार्यों के विशेषज्ञ रखती है, जो इस कार्य को अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए हमने आईजीएनसी को यह कार्य सौंपा है।

यह ऐसी विधा है, जिसकी जानकारी बहुत ही कम लोग रखते हैं, इसलिए इस काम में समय लग रहा है। हम किसी एनजीओ को काम नहीं दे सकते। इन एजेंसियों की प्रोजेक्ट रिपोर्ट मैने देखी है और ऐसी एनजीओ को किसी भी कीमत पर काम नहीं सौंपा जा सकता है। कोई सामान चोरी हो जाएगा तो किसकी जिम्मेदारी होगी। इन प्राइवेट एजेंसियों को कोई क्वालिफिकेशन नहीं है।

संरक्षण कार्यों पर उठे गंभीर सवाल

सिन्हा के इस बयान नेे पुरातत्व विभाग के संरक्षण कार्यों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि विभाग दशकों से प्राइवेट एजेंसियों से संरक्षण कार्य करवा कर हमारी धरोहरों का सत्यानाश करवा रहा है। पहली बार विभाग के किसी उच्चाधिकारी द्वारा प्राइवेट एजेंसियों पर सवाल उठाए जाने के बाद अब जरूरी हो गया है कि प्रमुख शासन सचिव खुद विभाग द्वारा दो-तीन दशकों में कराए गए गलत कार्यों की पूरी जांच कराए और दाषियों को दंडित करें।

तीन कंजर्वेशन फर्मों के ऑफर से मचा है बवाल

पुरा सामग्रियों के पानी में खराब होने के बाद विभाग के निदेशक पीसी शर्मा की ओर से संरक्षण कार्य करने वाली कुछ फर्मों से पुरा सामग्रियों को बचाने के लिए जानकारी मांगी गई थी। तीन फर्मों ने विभाग के निदेशक को बचाव के उपाय बताए, साथ ही ऑफर दिया कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इन संपदाओं को बचाने के लिए वह नि:शुल्क काम करने के लिए भी तैयार है।

बचाव के उपाय जानने के बाद विभाग ने इन फर्मों का ऑफर स्वीकार नहीं किया। अब सिन्हा की ओर से दिए गए बयान के बाद सवाल उठता है कि इन फर्मों से विभाग दशकों से काम क्यों कराता रहा है? क्या विभाग के अधिकारी अभी तक मिलीभगत से ही संरक्षण कार्य करवा रहे थे, या फिर मामला कोई दूसरा है।

नौकरी बचाने की कवायद

विभाग के सूत्रों का कहना है कि पहले संरक्षण कार्य करने वाली फर्मों से उपाय पूछा गया और नि:शुल्क कार्य करने के ऑफर के बाद भी काम नहीं कराने से साजिश की बू आ रही है, क्योंकि यही फर्में 15 वर्षों से विभाग में संरक्षण कार्य कर रही है। वर्ष 1990 के आस-पास भी अल्बर्ट हॉल में पानी भरा था और कई पुरा सामग्रियां खराब हो गई थी। कुछ को इन्हीं फर्मों ने संरक्षित किया। उस समय भी कई पुरा संपदाएं इतनी खराब हो चुकी थी कि उन्हें बचाया नहीं जा सका, लेकिन इस बार पानी का प्रकोप ज्यादा था। सूत्र कह रहे हैं कि अल्बर्ट हॉल के स्टोर में रखी 80 फीसदी पुरा सामग्रियां पानी से खराब हो गई।

धातु और पत्थर से बनी सामग्रियों के अलावा कोई भी पुरा सामग्री संरक्षण के योग्य नहीं बची है। इस बर्बादी के पीछे पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी है और विभाग अपने अधिकारियों को बचाने में लगा है। यदि यह काम प्राइवेट फर्मों को दे दिया जाता तो खराब हुई सामग्रियों की जानकारी बाहर आ जाती और अधिकारियों की नौकरी पर बन आती। अभी भी पुरा संपदाओं पर सवाल पूछने पर विभाग के उच्चाधिकारी भड़क पड़ते हैं। हमारा मकसद प्राइवेट फर्मों को प्रमोट करना नहीं है, बल्कि इसके जरिए हम यह बताना चाह रहे हैं कि अल्बर्ट हॉल में कुछ तो बहुत बड़ा हुआ है, जिसकी जानकारी विभाग के अधिकारी बाहर नहीं आने देना चाहते हैं।

स्मारकों पर तोड़फोड़ का हुआ नंगा नाच

सूत्रों के अनुसार पुरातत्व विभाग के स्मारकों पर संरक्षण कार्य कराने के लिए होने वाले टेंडरों में पहले ऐसी शर्त हुआ करती थी कि केवल संरक्षण कार्यों के जानकार संवेदक ही टेंडर ले पाते थे। ऐसे में अधिकारियों ने इन शर्तों को वर्ष 2015-16 के करीब हटा दिया। शर्तों के हटने के बाद अधिकारी और नए आए संवेदक स्मारकों पर तोड़फोड़ और घटिया निर्माण का नंगा नाच कर रहे हैं। सोचा जा सकता है कि यदि किसी सड़क बनाने या फिर पानी की लाइनें डालने वाले संवेदक से हवामहल, आमेर जैसे कलात्मक स्मारकों का काम दे दिया जाए, तो काम कैसा होगा।

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