जयपुर

पुरातत्व विभाग राजस्थान सोता रहा, कल्कि मंदिर में होते रहे अवैध निर्माण

जयपुर। विश्व के एकमात्र प्राचीन कल्कि मंदिर में धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुंचाने वाले निर्माण के खुलासे के बाद सामने आया है कि इसके लिए केवल देवस्थान विभाग ही नहीं बल्कि पुरातत्व विभाग भी जिम्मेदार है। पुरातत्व की घोर लापरवाही, अंधेरगर्दी और कामचोरी के कारण ही इस प्राचीन मंदिर में यह अवैध निमार्ण हो पाए हैं।

कल्कि मंदिर पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित प्राचीन स्मारक है, लेकिन विभाग के अधिकारियों ने यहां सिर्फ संरक्षित स्मारक होने का नीला बोर्ड लगाकर मंदिर को भगवान के भरोसे छोड़ दिया। यह मंदिर पुरातत्व मुख्यालय से सिर्फ दो किलोमीटर और वृत्त कार्यालय से मात्र पांच सौ मीटर की दूरी पर है, इसके बावजूद विभाग के अधिकारियों ने कभी इस मंदिर की सुध लेने की कोशिश नहीं की।

देवस्थान विभाग ने संरक्षित मंदिर के परिक्रमा मार्ग को रोका, गर्भगृह के नीचे टॉयलेट बना दिए, मंदिर से सटाकर पुजारियों के रहने के लिए आवास बना दिए, चौक में टीनशेड लगा दिए और मंदिर के बेसमेंट में अवैध कब्जे हो गए, लेकिन कभी पुरातत्व ने इस नियमविरुद्ध निर्माण के लिए देवस्थान विभाग को नहीं टोका।

यदि पुरातत्व अधिकारी सतर्क होते और स्मारकों का समय-समय पर निरीक्षण करते तो शायद यह निर्माण नहीं हो पाता। हकीकत भी यही है कि पुरातत्व विभाग ने प्रदेश में हजारों प्राचीन संपत्तियों पर संरक्षित होने के बोर्ड तो लगा रख हैं, लेकिन न तो उनकी सुरक्षा के लिए कोई निगरानी की व्यवस्था है और न ही विभाग के अधिकारी कभी इन स्मारकों का दौरा करते हैं। स्मारकों के संरक्षण का काम तो दूर की कौड़ी है।

पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को इन संरक्षित स्मारकों की तब याद आती है, जबकि यहां कोई दुर्घटना हो जाए, या फिर कोई स्मारकों को नुकसान पहुंचा दे। हाल ही में स्मार्ट सिटी की ओर से दरबार स्कूल प्रोजेक्ट के निर्माण के दौरान संरक्षित प्राचीन परकोटे को ढहा दिया गया था, उसके बाद विभाग के अधिकारियों को इसकी सुध आई और अपनी खाल बचाने के लिए पुरातत्व अधिकारियों की ओर से कहा गया कि कंपनी की ओर से कार्य के लिए एनओसी नहीं ली गई।

पुरातत्व के जानकारों का कहना है कल्कि मंदिर में गलत निर्माण का खुलासा होने के बाद अब पुरातत्व विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस निर्माण को हटवाने के लिए देवस्थान विभाग को नोटिस दे और यहां चल रहे जीर्णोद्धार कार्य के दौरान ही मंदिर में किए गए सभी नए-पुराने अवैध निर्माणों को हटवाए।

देवस्थान विभाग को ताकीद करे कि वह पुजारियों के रहने के लिए अलग से व्यवस्था करे, क्योंकि इस मामले में धार्मिक आस्थाएं आहत हो रही है। शहर के प्रमुख संतों-महंतों ने इस गलत निर्माण के खिलाफ आवाज बुलंद की है। इसलिए समय रहते इसमें सुधार नहीं किया तो यह विवाद दोनों विभागों को भारी पड़ सकता है।

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