दिल्लीराजनीति

कैसे बचीं शेख हसीना? भारत ने 1975 से सीखा सबक

बांग्लादेश में मौजूदा स्थिति पर विदेश मंत्रालय नजर बनाए हुए है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि भारत हसीना की अंतिम मंजिल नहीं है। ऐसे में चुनौती यह है कि कैसे नई सरकार से नाराजगी के बिना हसीना को सुरक्षित रखा जाए।
पांच अगस्त को बांग्लादेश में हुई हिंसा के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना तब से भारत में हैं। हिंडन एयरफोर्स बेस पर लैंडिंग करने के बाद उन्हें हेलीकॉप्टर के जरिए एक सेफ हाउस पहुंचाया गया है। लेकिन शेख हसीना कब तक भारत में रहेंगी, इस पर कोई बात करने को तैयार नहीं है। लेकिन बांग्लादेश में डॉ. यूनुस के नेतृत्व में नई अंतरिम सरकार के गठन के बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिम सरकार को शपथ की बधाई दी है, उसके बाद कहा जा रहा है कि भारत नई सरकार के साथ संबंध बनाने का इच्छुक हैं। शेख हसीना का अंतिम पड़ाव क्या होगा, इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। हालांकि कहा ये जा रहा है कि अगर नई सरकार वहां चुनाव कराने का फैसला लेती है, तो शेख हसीना वापस बांग्लादेश लौट सकती हैं। बांग्लादेश के संविधान के मुताबिक, देश में तीन महीने में चुनाव होना चाहिए, लेकिन अभी इसके बारे में कुछ कहा नहीं गया है।
भारत में रहेंगी शेख हसीना!
बीते दिन शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद जॉय ने बयान दिया था कि शेख हसीना अभी कहीं नहीं जा रही है, वे अभी कुछ दिन भारत में ही रहेंगी। उन्होंने कहा था कि हसीना के भारत छोड़ कर जाने को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है।
अफवाह हैं राजनीतिक शरण लेने की बातें
इससे पहले कहा जा रहा था कि शेख हसीना ब्रिटेन में राजनीतिक शरण लेना चाहती हैं, लेकिन ब्रिटेन ने कुछ शर्तों का हवाला देकर कुछ स्पष्ट नहीं कहा, जिसके बाद कहा गया कि ब्रिटेन उन्हें शरण देने के लिए इच्छुक नहीं है। शेख हसीना के बेटे वाजेब ने यह भी कहा कि किसी ने भी अवामी लीग नेता शेख हसीना का वीजा रद्द नहीं किया है और न ही उन्होंने कहीं भी राजनीतिक शरण मांगी है और न ही उन्होंने कहीं भी राजनीतिक शरण के लिए आवेदन नहीं किया है। ये सब बातें अफवाह हैं।
नई सरकार को न हो आपत्ति
वहीं डॉ. मुहम्मद यूनुस के नेतत्व में नई अंतरिम सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखकर मोहम्मद यूनुस को शुभकामनाएं दीं। डॉ. मुहम्मद यूनुस के शपथग्रहण समारोह में ढाका में मौजूद भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने हिस्सा लिया। सूत्रों के मुताबिक अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के नई दिल्ली पहुंचने के बाद दिल्ली में सुरक्षा अधिकारियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को हसीना के भारत में रहने पर कोई आपत्ति न हो।
क्या भारतीय खुफिया एजेंसियां हुईं फेल?
सूत्रों ने बताया कि बांग्लादेश की स्थिति का आंकलन करने को लेकर भारत की खुफिया एजेंसियां फेल हुई हैं। उन्होंने आश्चर्य जताया कि बांग्लादेश में चल रहे इतने बड़े ‘विद्रोह’ की कोई जानकारी उन्हें कैसे नहीं मिली। जिस तरह से उन्हें आनन-फानन में भारत लाया गया, उससे भी लगता है कि भारत की एजेंसियां इस बदलते घटनाक्रम के लिए तैयार ही नहीं थीं। हसीना और नई दिल्ली में बांग्लादेशी अधिकारी उनके दूसरे देश में जाने और न जाने, दोनों पहलुओं पर विचार कर रहे हैं। साथ ही, नई दिल्ली में अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए तेजी से जुटे हैं कि भारत की धरती पर उनका बिताया गया समय सुरक्षित हो और अंतरिम सरकार के लिए परेशानी का सबब न बने।
भारत की कोशिश शेख हसीना का न हो प्रत्यर्पण
सूत्रों के अनुसार यदि भारत में शेख हसीना के प्रवास को आगे बढ़ाने का फैसला लिया जाता है, तो इसके लिए नई सरकार को इस फैसले में शामिल करना बेहद जरूरी है। साथ ही इस पर भी जोर दिया रहा है कि द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता और क्षेत्रीय सहयोग सुनिश्चित करने को लेकर कोई देरी न हो। भारत इस बात का भी ख्याल रखेगा कि किसी भी हालात में भारत पर शेख हसीना को प्रत्यर्पित करने का दबाव न डाला जाए। साथ ही, भारत शेख हसीना की तब तक मेजबानी करने के लिए तैयार है, जब तक वह यहां रहना चाहती हैं। क्योंकि 1975 में हुए इसी तरह के अनुभव के बाद वह दूसरी बार भारत आई हैं। लेकिन इस बार उनके भारत में उतरने से पहले ही बेहतर व्यवस्थाएं कर दी गईं थीं।
भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इस बार दिखाई तेजी
बांग्लादेश में हसीना की सरकार जाने के बाद भारत की कोशिश थी कि ढाका में गुस्साए प्रदर्शनकारियों के उनके आवास पर हमला करने से पहले हसीना को सुरक्षित निकाल लिया जाए। 50 साल पहले 1975 में यह कहानी बिलकुल अलग थी, जब 15 अगस्त, 1975 को तख्तापलट करने वालों ने हसीना के पिता और गणतंत्र के संस्थापक मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकांश लोगों की हत्या कर दी थी, और भारत सरकार कुछ नहीं कर पाई थी। हर मुश्किल परिस्थिति में अपने दोस्तों का साथ देना क्षेत्र और उसके बाहर किसी बड़ी शक्ति की साख का अहम हिस्सा होता है। लेकिन कोई भी देश अपनी किस्मत किसी एक व्यक्ति या पार्टी से नहीं जोड़ सकता। दिल्ली के लिए तत्काल चुनौती हसीना से खुद को दूर रखना और उनके विरोधियों से भिड़ना है।
हसीना का भारत में रहना क्यों बन सकती है समस्या?
वहीं, अगर भारत सरकार बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री को देश में रहने की अनुमति देती है, तो इससे ये संदेश जाएगा कि भारत एक अपदस्थ नेता का समर्थन कर रहा है। इसके अलावा, यह बांग्लादेश की नई सरकार के साथ संबंधों को मुश्किल बना सकता है। वहां भारत विरोधी लहर पैदा हो सकती है। अगर भारत पड़ोस में अपनी स्थिति को मजबूत रखना चाहता है, तो वह बांग्लादेश को अलग-थलग या नाराज नहीं कर सकता। खास तौर से तब जब चीन और पाकिस्तान नई सरकार पर गिद्ध की तरह नजरें गड़ा कर बैठे हों।
भारत की दोस्त रही हसीना
हालांकि, शेख हसीना और उनके परिवार के भारत के पुराने एतिहासिक संबंध हैं। जब 1975 में बांग्लादेश में अशांति के दौरान उनके परिवार की हत्या कर दी गई थी, तब इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें शरण दी थी। इसके अलावा, अपने 15 साल के कार्यकाल में, उन्होंने भारत के सुरक्षा हितों का सम्मान किया और बांग्लादेश का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होने दिया है। इसलिए दिल्ली के साथ उनके समीकरणों को देखते हुए, इस समय उन्हें छोड़ना भी आसान निर्णय नहीं होगा।
लाजपत नगर और पंडारा रोड में रहीं थी
1975 में बांग्लादेश में जब मुजीबुर रहमान नए मुल्क के पहले राष्ट्रपति चुने गए, तो देश की सेना ने बगावत कर दी। 15 अगस्त, 1975 की सुबह को कुछ हथियारबंद लड़ाके शेख हसीना के घर में घुसे और उनके माता-पिता और भाईयों समेत परिवार के 17 सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया। जिस वक्त राष्ट्रपति आवास पर यह सब हो रहा था, तब शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां और बहन शेख रिहाना के साथ यूरोप में थीं। 1975 से 1977 तक शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां के साथ भारत यहां रही थीं। शेख हसीना पहले रिंग रोड की इस कोठी में और फिर पंडारा रोड में शिफ्ट हो गई थीं। जिसके बाद उन्होंने लाजपत नगर-3 की कोठी नंबर-56 को किराए पर लिया गया था, जिसमें अब होटल डिप्लोमेट रिजेंसी चल रहा है।
मिस्टर एंड मिसेज मजूमदार बनकर रहे
उनके दिल्ली प्रवास को इतना गुप्त रखा गया था कि उनके पति वाजिद मियां, मिस्टर मजूमदार और शेख हसीना मिसेज मजूमदार बनकर रहीं। शेख हसीना ने भारत आने की बात इंदिरा गांधी को बताई थी, जिसके बाद भारत सरकार ने उनके रहने का प्रबंध किया था। हसीना के पति वैज्ञानिक थे, उन्हें नई दिल्ली में स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में नौकरी मिल गई। जहां उन्होंने सात साल तक काम किया। भारत में छह साल रहने के बाद 17 मई, 1981 को शेख हसीना अपने वतन बांग्लादेश लौट गई। उनके समर्थन में लाखों लोग एयरपोर्ट पहुंचे थे। बावजूद इसके उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल हुई। आखिरकार वे 1996 में सत्ता में आईं और पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं।

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