धर्म

बांके बिहारी मंदिर के पुजारियों ने मुस्लिम कलाकारों द्वारा बनाए गए वस्त्रों के विरोध की मांग खारिज की

लखनऊ। वृंदावन स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के पुजारियों ने भगवान के लिए मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाए गए वस्त्रों के उपयोग पर रोक लगाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मंदिर की परंपराओं में धार्मिक भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है।
यह मांग श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष न्यास के प्रमुख दिनेश शर्मा द्वारा की गई थी। उन्होंने मंदिर प्रबंधन से आग्रह किया था कि भगवान श्रीकृष्ण के लिए केवल उन्हीं कलाकारों द्वारा वस्त्र बनवाए जाएं जो “धार्मिक शुद्धता” के सिद्धांतों का पालन करते हों।
हालांकि, मंदिर के पुजारियों ने इस मांग को “अव्यावहारिक” करार दिया और कहा कि अन्य समुदायों के पास इस स्तर की हस्तकला और कुशलता नहीं है जो इन वस्त्रों को बनाने में लगती है।
पुजारी ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी का बयान
पुजारी ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने कहा कि किसी कारीगर को उसके धर्म के आधार पर नहीं परखा जा सकता। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा, “अगर पापी कंस, भगवान कृष्ण के दादा उग्रसेन के वंश में जन्म ले सकता है और महान भक्त प्रह्लाद, राक्षस राजा हिरण्यकश्यप के कुल में जन्म ले सकते हैं, तो हम कैसे किसी कारीगर की भक्ति या सेवा को उसके धर्म से जोड़ सकते हैं?”
उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर में रोजाना दर्जनों अलंकृत पोशाकों की आवश्यकता होती है, और साल भर में हजारों वस्त्रों की जरूरत होती है।
ऐसे में सिर्फ एक समुदाय के कारीगरों पर निर्भर रहना व्यवहारिक नहीं है।
दिनेश शर्मा का दावा
शर्मा ने दावा किया कि करीब 80 प्रतिशत वस्त्र, मुकुट, और जरदोजी का काम मुस्लिम कारीगरों द्वारा किया जाता है।
उन्होंने पूछा, “जब लोहे की ग्रिल से लेकर मंदिर की रेलिंग तक भी वे ही बनाते हैं, तो हम कैसे हर कलाकार की व्यक्तिगत धार्मिक शुद्धता की जांच करेंगे?”
सामाजिक और ऐतिहासिक पहलू
पुजारी गोस्वामी ने आगे कहा कि यह केवल व्यावहारिक नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी अनुचित होगा। उन्होंने बताया कि वृंदावन में अधिकतर बारीक मुकुट और वस्त्र मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाए जाते हैं, और काशी में रुद्राक्ष की माला, जो भगवान शिव को चढ़ाई जाती है, मुस्लिम परिवारों द्वारा तैयार की जाती है।
उन्होंने यह भी बताया कि आज भी मुस्लिम समुदाय के संगीतकार विशेष अवसरों पर मंदिरों में ‘नफीरी’ बजाते हैं, और कई प्रमुख भजन गायक भी मुस्लिम समुदाय से आते हैं, जो भगवान कृष्ण को अपनी सेवा अर्पित करते हैं।
मंदिर प्रशासन का रुख
मंदिर के प्रशासक उमेश सारस्वत ने इस विवाद से दूरी बनाते हुए कहा कि भगवान की पोशाक और पूजा-पद्धति से जुड़े निर्णय मंदिर के पुजारी वर्ग द्वारा लिए जाते हैं, जबकि प्रशासन केवल मंदिर की व्यवस्थाएं संभालता है।

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