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भाजपा के ब्रह्मास्त्र ने पलटी उत्तर प्रदेश की परिपाटी, अब राजस्थान की बारी

धरम सैनी

कभी-कभी अपना ही तीर अपने लिये ही गले की फांस बन जाता है। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस सबसे पहले हिंदुओं में दोफाड़ के साथ-साथ मुस्लिम तुष्टिकरण के रास्ते स्वयं के लिए सत्ता का मार्ग निकालती रही। फिर, उसकी देखा-देखी बहुत से क्षेत्रीय पार्टियों जैसे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, आदि ने भी इसी पैंतरे को आजमाना शुरू कर दिया। अब जब से भारतीय जनता पार्टी ने इसी बीज मंत्र को साधना शुरू किया तो ये सभी दल चित्त होने शुरू हो गये।

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम गुरुवार को सामने आ गए। इन चुनावों में सबसे ज्यादा नजर उत्तर प्रदेश के चुनावों पर थी। सपा और कांग्रेस की आक्रामक रणनीति, सोश्यल इंजीनियरिंग, मंत्रियों में भगदड़ के बाद सब जानना चाहते थे कि क्या भाजपा यहां फिर से अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो पाएगी या नहीं, लेकिन भाजपा ने एक बार फिर धार्मिक ध्रुवीकरण का पासा फेंक कर सभी कयासों पर लगाम लगा दी है और साबित कर दिया है कि यह भाजपा का बृह्मास्त्र है, जिसे अन्य राज्यों में भी प्रयोग किया जाएगा। ऐसे में अब एक-दो सालों में गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनावों में भी उत्तर प्रदेश जैसा ही माहौल देखने को मिल सकता है।

उत्तर प्रदेश का चुनावा भाजपा की ओर से 80-20 के फार्मूले पर लड़ा गया, जो अपने आप में धार्मिक ध्रुविकरण की ओर इशारा करता है और भाजपा ने यहां सिर्फ 80 फीसदी हिन्दु वोटों की तरफ की ध्यान केंद्रित किया, 20 फीसदी अल्पसंख्यकों को विपक्षी दलों के लिए खुला छोड़ दिया गया। इस दौरान भाजपा की ओर से लगातार अयोध्या में राम मंदिर और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की सफलता को भी सामने रखा, हालांकि उत्तर प्रदेश चुनावों में विकास, कानून व्यवस्था और केंद्र की योजनाएं भी मुद्दे बने, लेकिन भाजपा ने सबसे बड़ा कार्ड मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि का खेल दिया।

मथुरा ने विपक्ष के सभी मुद्दों को किया फेल
उत्तर प्रदेश चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के कई नेताओं ने अपने भाषणों में मथुरा का उल्लेख किया। भाजपा को इसका यह फायदा मिला कि पूरे उत्तर प्रदेश में धार्मिक ध्रुवीकरण का माहौल बन गया। किसान आंदोलन के कारण कहा जा रहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का सूपड़ा साफ हो सकता है, लेकिन कृष्ण जन्मभूमि मामले ने पूरी तस्वीर बदल कर रख दी। पश्चिम उत्तर प्रदेश की 97 सीटों में से भाजपा को 70 सीटें मिल गई। मथुरा की चारों सीटें भाजपा के खाते में गई। आगरा की सभी नौ सीटें भाजपा को मिली। यहां अखिलेश यादव और जयंत चौधरी का गठबंधन भी कोई प्रभाव नहीं दिखा पाया। यहां तक कि आस-पास के क्षेत्रों में भी भाजपा को अच्छी बढ़त मिल गई। पूर्वांचल में भाजपा को 71, बुंदेलखंड में 19 में से 16 सीटें भाजपा को मिली और किसान आंदोलन धरा का धरा रह गया।

मथुरा के ब्रह्मस्त्र से सकते में विपक्षी दल
भाजपा ने केवल उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए मथुरा का कार्ड नहीं खेला, बल्कि मथुरा रूपी ब्रह्मास्त्र का असर आने वाले चुनावों में अन्य राज्यों में भी देखने को मिलेगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के बाद अब भाजपा की ओर से मथुरा मामले को धीरे-धीरे सुलगाया जाएगा, जिससे उत्तर प्रदेश से सटे राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ में भी धार्मिक ध्रुवीकरण का माहौल बनेगा। इसके बाद भाजपा मथुरा मामले को ट्रंप कार्ड के रूप में पूरे भारत में इस्तेमाल करेगी।

राजस्थान में यह होगा असर
राजस्थान में पिछले ढाई दशक में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे एक के बाद एक बार मुख्यमंत्री बनते आए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार अब राजस्थान में यह चल रहा है कि यदि भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं बनाया तो भाजपा में तोडफ़ोड़ हो सकती है। अशोक गहलोत की सोच यह है कि इस तोडफ़ोड़ का फायदा उठाते हुए वह फिर एक बार मुख्यमंत्री बन जाएं। दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि राजे इस जोड़तोड़ में लगी हैं कि वह कांग्रेस में तोडफ़ोड़ करके खुद मुख्यमंत्री बन जाएं। हालांकि आज आये चुनाव परिणामों से वसुंधरा राजे सकते में होंगी इनके जन्मदिन पर शामिल विधायक भी गली तलाश रहे होंगे , क्योंकि चार राज्यो में भाजपा की बड़ी जीत के बाद राजे गुट में इतनी हिम्मत नहीं होगी कि वह केंद्रीय भाजपा से सीधे टक्कर ले सके। केंद्र से टक्कर लेना मतलब खुद के पांवों पर कुल्हाड़ी मारना होगा।

प्रदेश में बन रहे इन नए समीकरणों पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की भी पूरी नजर है। ऐसे में कहा जा रहा है कि इन समीकरणों को धता बताने के लिए एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य चेहरा बनाकर भाजपा चुनाव लड़ेगी, वहीं मथुरा के मुद्दे को लेकर योगी आदित्यनाथ चुनावी राज्यों में धूणा रमा सकते हैं। उत्तर प्रदेश में 80-20 हुआ तो राजस्थान में 90-10 के जरिए खेल किया जा सकता है, जिसकी काट न तो अशोक गहलोत के पास है और न ही किसी अन्य पार्टी में। भाजपा में टूट के जो कयास लगाए जा रहे हैं, उसकी भी भरपाई इन्हीं तरीकों से की जा सकती है। भाजपा की मथुरा वाली चाल से विपक्ष को होने वाले नुकसान को सबसेे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भांपा। यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री के साथ देशभर के मुख्यमंत्रियों की हुई एक वर्चुअल बैठक में धार्मिक ध्रुविकरण की राजनीति का मुद्दा उठाया था। इसके बाद से ही गहलोत इस नीति को लेकर भाजपा पर आक्रामक रहते हैं। अक्सर वह बोलते हुए सुने जाते हैं कि देश का सौहार्द्र का माहौल बिगड़ रहा है। देश को आखिर किस ओर ले जाया जा रहा है।

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