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ब्लैक लिस्ट करने के बजाए अधिकारी दे रहे काम में सुधार के निर्देश

जयपुर। जयपुर नगर निगम के इतिहास में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है, इसके बावजूद निगम अधिकारी इस कंपनी का काम बंद कर इसे ब्लैकलिस्ट करने के बजाए अभी भी काम कराकर सरकारी राजस्व को चूना लगा रहे हैं। न जाने अधिकारियों ने अपनी आंखों पर कैसी पट्टी बांध रखी है कि उन्हें इस काम में कहीं भी झोल नजर नहीं आ रहा है।

डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण का कार्य कर रही बीवीजी कंपनी के खिलाफ शिकायतों का अंबार लगा होने के बावजूद अधिकारी लगातार कंपनी पर मेहरबानी बनाए हुए हैं। इसका नजारा मंगलवार को निगम आयुक्त के दौरे में देखने को मिला।

जयपुर ग्रेटर नगर निगम के आयुक्त दिनेश कुमार यादव ने डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण व्यवस्था का जायजा लेने के लिए कचरा संग्रहण स्टेशनों का दौरा किया। इस दौरान सबसे पहले न्यू आतिश मार्केट के पास बने कचरा ट्रांस्फर स्टेशन पर हूपरों की आवाजाही के रिकार्ड में गड़बड़ी पकड़ में आई। इस पर कार्रवाई के बजाए कंपनी को निर्देश दे दिए गए कि वह व्यवस्था में सुधार करें।

यादव ने निर्देश दिए कि शहर में निश्चित स्थानों पर बनाए गए कचरा ट्रांस्फर स्टेशन पर कचरा ज्यादा देर तक इकट्ठा नहीं रहना चाहिए। कचरा फैले नहीं, इसके लिए ट्रांस्फर स्टेशनों के चारों ओर बाउंड्री कराई जाए। इसके लिए यह जमीनें आवासन मंडल और जेडीए से आवंटित कराई जाएं।

डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण में वर्षों से चल रहे भ्रष्टाचार पर निवर्तमान पार्षद अनिल शर्मा का कहना है कि नवनियुक्त आयुक्त को कंपनी के कार्यों की जांच करने से पहले इसके खिलाफ लगे शिकायतों के अंबार को भी देख लेना चाहिए था।

कंपनी ने आज तक अनुबंध की एक भी शर्त को पूरा नहीं किया है। अधिकारियों की मिलीभगत से कंपनी लगातार राजस्व को चूना लगा रही है। न कंपनी के पास पूरे संसाधन है और न ही यह सॉलिड वेस्ट नियमों के अनुसार काम कर रही है।

कंपनी डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन करने के बजाए ओपन डिपो से कचरा उठाकर पैसा उठा रही है। कचरे का सेग्रिगेशन नहीं हो रहा है। आयुक्त ने हूपरों में गड़बड़ी पकड़ी तो उन्हें यह भी जांच लेना चाहिए कि क्या कंपनी के पास पूरे हूपर हैं? शहर में 6 लाख मकान और बाजार हैं। एक हजार घरों पर एक हूपर के हिसाब से शहर में 700 हूपरों की आवश्यक्ता है, जबकि कंपनी के पास इसके एक चौथाई हूपर भी नहीं है।

कचरा ट्रांस्फर के लिए कंपनी के पास आरसी नहीं है और ट्रेक्टरों के जरिए कचरा ट्रांस्फर किया जा रहा है। कंपनी को शहर में काम करने से पूर्व संसाधनों के लिए करीब सवा सौ करोड़ रुपए का खर्च करना था, क्या तीन सालों में कंपनी ने यह पैसा खर्च किया?

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