हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं। पिछले दिनों उसने 19 फीचर्स का नाम चीनी भाषा में रखा है। इसके अलावा अलग चीन के रिसर्च और सर्वे जहाज अक्सर इस क्षेत्र में गश्त करते ही रहते हैं। ये जहाज 90-डिग्री वाले क्षेत्र में नजर आते हैं और इसके आसपास ही काम करते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो चीन का मकसद ऐसा करके हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आने वाले समय में अपनी पनडुब्बियों के लिए समुद्र का नक्शा तैयार करना है। 13 अप्रैल को चीन के रिसर्च और सर्वे जहाज है यांग शि यू 760 ने मलक्का स्ट्रेट्स को पार किया था। यह जहाज हिंद महासागर पर करीब चार महीने तक रहा।
चीन के बंदरगाह की तरफ निकला
मैरिन ट्रैफिक वेबसाइट के मुताबिक चीन का रिसर्च जहाज सिंगापुर के तट से रवाना हुआ और फिर चीन के बंदरगाह झांगझियांग की तरफ रवाना हो गया था। इंडोनेशिया के बंदरगाह बालीकपापन पर रसद और बाकी सामानों को जमा करने के बाद यह रवाना हुआ था। पिछले एक दशक में चीन के सर्वे और रिसर्च जहाज के साथ ही कई रणनीतिक सैटेलाइट ट्रैकिंग जहाज ने हिंद महासागर पर अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। चीनी नौसेना का मकसद लोम्बोक, ओम्बाई-वेटर स्ट्रेट जो इंडोनेशिया में है, वहां से एक वैकल्पिक रास्ता बनाना है ताकि दक्षिणी हिंद महासागर के जरिए पूर्वी अफ्रीका के तटों पर पहुंचा जा सके। पनडुब्बियों को गहरे पानी में रहना होता है इसलिए मलक्का और सुंडा स्ट्रेट के रास्ते पनडुब्बियों को हिंद महासागर में दाखिल होना पड़ेगा।
दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना
दिलचस्प बात है कि पीएलए की नेवी अब आकार और संख्या के लिहाज से सबसे बड़ी नौसैनिक शक्ति है। इसके बाद अब चीन समुद्री शक्ति के जरिए अपनी वैश्विक ताकत को बढ़ाने की कोशिशों में लगा हुआ है। विशेषज्ञों को चिंता है कि चीन की कैरियर स्ट्राइक फोर्स साल 2025 तक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में गश्त शुरू कर सकती है।
क्या है चीन का मकसद
चीन का मकसद बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के तहत दुनियाभर के समुद्रों पर अपना कब्जा करना है। इस पहल के तहत चीन अफ्रीका के पूर्वी तट का शामिल करना चाहता है। अफ्रीका के पूर्वी समुद्र तट पर बसे देश-दक्षिण अफ्रीका से जिबूती तक-चीनी कर्ज के नीचे दबे हैं। ऐसे में हिंद प्रशांत की सुरक्षा और अहम हो जाती है। पड़ोसी देश श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, कंबोडिया और लाओस जैसे देशों के अलावा इंडोनेशिया जैसे देशों में भी आर्थिक स्थितियां काफी गंभीर हैं और ये भी चीन के युआन के अधीन हो चुके हैं। इसके अलावा, मिडिल ईस्ट में शिया-सुन्नी शक्तियों के साथ चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। इस स्थिति में भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसी लोकतांत्रिक शक्तियों के लिए तटों की सुरक्षा काफी कमजोर होती नजर आ रही है।