जयपुर शहर कांग्रेस में गुटबाजी इतनी बढ़ चुकी है कि उनकी लड़ाइयां अब चौक-चौराहों पर जनता के समाने आने लगी है। ऐसी ही कुछ नगर निगम हैरिटेज के वार्ड 86 में घटा, जबकि कांग्रेसी पार्षद (councillor) के साथ कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी के विधायक (legislator) को काले झंड़े दिखाने आ डटे।
नगर निगम हैरिटेज की ओर से घाटगेट के अंसारी मोहल्ला और मोहल्ला महावतान में करीब ढाई माह पहले ठण्डे के लिए वॉटर कूलर लगाए गए थे, जिसका शनिवार को स्थानीय विधायक रफीक खान द्वारा लोकार्पण होना था। इस लोकार्पण कार्यक्रम से पहले ही वार्ड 86 में विवाद हो गया। स्थानीय लोगों और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने वार्ड पार्षद उमर दराज के नेतृत्व में काले झण्डे दिखाकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। विरोध की सूचना के बाद विधायक ने वार्ड 86 में अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया।
पार्षद उमर दराज ने आरोप लगाया है कि विधायक ने उन्हे बिना सूचना दिए ही कार्यक्रम तय कर लिया। वाडज़् 79, 80, 81 में भी कार्यक्रम हुए, लेकिन वहां के पार्षदों को एक दिन पूर्व सूचना दे दी गई, जबकि कार्यक्रम की सूचना मुझे ही नहीं दी गई। कार्यक्रम से कुछ घंटे पहले एक अनजान व्यक्ति आया और वह लोकर्पण का पत्थर मेरे ऑफिस में रख गया। मैंने जब कार्यक्रम एक दिन बाद करने की बात कही तो विधायक ने मना कर दिया। इससे क्षेत्र के कांग्रेसी कार्यकर्ता खासे नाराज हुए।
पार्षद उमरदराज का कहना है कि भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष के खिलाफ बयान दिया था। इसके विरोधस्वरूप उन्होंने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कुट्टी का पुतला दहन किया था। विधायक को इसी बात से नाराजगी थी, कि पुतलादहन कार्यक्रम के लिए उनसे इजाजत क्यों नहीं ली गई। उन्होंने विधायक रफीक खान पर शहर के अन्य विधायकों से मिलने नहीं देने का आरोप लगाया और कहा कि जब भी हम अपनी किसी बात को लेकर विधायक अमीन कागजी, महेश जोशी या प्रताप सिंह के पास जाते है तो विधायक रफीक खान उस में भी आपत्ति जताते है।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि विधायक रफीक खान और पार्षद उमरदराज के बीच अदावत की कहानी बड़ी पुरानी है। तीन बार के पार्षद उमरदराज इस बार हैरिटेज बोर्ड में उपमहापौर बनना चाहते थे, लेकिन बन नहीं पाए। इसके पीछे वह विधायकों की राजनीति को कारण मानते हैं। वहीं दूसरी ओर रफीक खान भी इस बार बिना पार्षदों के सहयोग के अपने दम पर विधायक बने हैं, जिसके चलते वह पार्षदों को ज्यादा भाव नहीं देते। दोनों के बीच अदावत के यही प्रमुख कारण हैं।