जयपुर। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा और एआईएमआईएम की ओर से खेले जा रहे हिंदु-मुस्लिम कार्ड से परेशान कांग्रेस ने ओबीसी जातियों पर दांव खेलने की रणनीति बनाई है। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी जातियां कांग्रेस का बेड़ा पार लगा सकती है, विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, जहां गुर्जर, माली व अन्य ओबीसी जातियां बहुतायत में है।
सूत्रों का कहना है कि पारंपरिक वोट बैंक के खिसकने के चलते कांग्रेस लंबे समय से उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार नहीं बना पाई है। कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में से अल्पसंख्यक वर्ग का झुकाव सपा की ओर व एससी-एसटी वर्ग का झुकाव बसपा की ओर हो गया था। ऊपर से भाजपा व एआईएमआईएम द्वारा ध्रुविकरण की राजनीति करने से परेशान कांग्रेस को इस बार नई रणनीति पर काम करना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोटबैंक बहुत बड़ा है। कांग्रेस का जोर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ओर सबसे ज्यादा रहेगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नोएडा, गाजियाबाद, सहारनपुर, मेरठ, बुलंदशहर, मुजफ्फर नगर, शामली, बिजनौर, आगरा, अलीगढ़, कानपुर, मुरादाबाद, रामपुर, मथुरा, एटा, फर्रूखाबाद, इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद में बड़ी संख्या में गुर्जर, माली मतदाता हैं। वहीं माली मतदाता तो पूरे उत्तर प्रदेश में भरे पड़े हैं।
भाजपा भी लंबे समय से उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए परेशान हो रही थी। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने सरकार बनाने के लिए यादवों को छोड़कर शेष बची ओबीसी जातियों को भाजपा के पक्ष में कर लिया था और प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई। ओबीसी में प्रमुख माली जाती को भाजपा के खेमे में लाने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया गया था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद महंत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया, जिससे प्रदेश में माली जाती भाजपा से खफा चल रही है।
भाजपा के इसी धोखे को भुनाने में कांग्रेस लगी हुई है और गुर्जर व माली मतदाताओं को रिझाने के लिए कांग्रेस राजस्थान की ओर देख रही है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में इन जातियों में कोई सर्वमान्य और बड़ा नेता नहीं है। इसी लिए सचिन पायलट को दिल्ली बुलाए जाने और उत्तर प्रदेश की कमान सौंपने की चर्चाएं कांग्रेस में चल रही है।
गुर्जर मतदाताओं को लुभाने के लिए सचिन पायलट को आगे किया जा सकता है, क्योंकि उनके पिता राजेश पायलट पूरे उत्तर प्रदेश में गुर्जर समाज के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता थे। सचिन ने भी गुर्जर समाज पर पिता की तरह ही छाप छोड़ी है। पायलट यहां कांग्रेस को बढ़त दिलाने में काफी कारगर सिद्ध होंगे। भाजपा से नाराज माली मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में लाने के लिए चुनावों से एन पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आगे किया जा सकता है, क्योंकि वह भी उत्तर भारत के माली समाज के बड़े चेहरे हैं।
सूत्रों का कहना है कि गुर्जर-माली समीकरण के जरिए कांग्रेस उत्तर प्रदेश में भाजपा, सपा, बसपा और एआईएमआईएम की चुनावी रणनीति को तहस-नहस कर डालेगी, बशर्ते वह टिकट वितरण में यादव को छोड़कर अन्य ओबीसी जातियों को उचित प्रतिनिधित्व दे। ऐसा नहीं है कि अन्य पार्टियों की नजर इन जातियों पर नहीं है। राजस्थान में एक बार अपने विधायक गंवाने के बावजूद बसपा सुप्रीमो मायावती ने दोबारा यहां कांग्रेस सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन दिया था। यह समर्थन इसी लिए था कि वह अशोक गहलोत और पायलट के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माली और गुर्जर मतदाताओं को साधने की कोशिश में थी।
वहीं दूसरी ओर सपा की भी नजर पश्चिम उत्तर प्रदेश की ओर लगी है और वह यहां से बढ़त बनाना चाहती है। सपा चाहती है कि यादवों के साथ-साथ मुस्लिम और गुर्जर मतदाता उनके पक्ष में आ जाएं तो उन्हें फिर से सरकार बनाने में बड़ी सहायता मिलेगी। उधर भाजपा की भी एक बार फिर पुरानी रणनीति दोहरा सकती है, ताकि पिछली विधानसभा के परिणामों को दोहराया जा सके। ऐसे में यदि कांग्रेस पहल करती है तो वह सबसे ज्यादा फायदे में रहेगी।