जयपुर। कोरोना के पहले अनलॉक के दौरान किसी आवश्यक कार्य के सिलसिले में उत्तराखण्ड जाना पड़ा । पहली बार में पूरा प्रोग्राम बनने के बावजूद आखिरी समय में किसी कारणवश जाना न हो पाया । इस की तैयारी स्वरुप ऑनलाइन आवेदन उत्तराखण्ड सरकार के द्वारा बताए गये साइट पर किया था, जिसमें की मुख्य आवेदक का आधार कार्ड से पंजीकरण किया गया था । इस का आवेदन एक दिन पहले किया था व स्वीकृति एक दिन में प्राप्त हो गयी थी । यह देख कर बहुत अच्छा लगा की भारत की राज्य सरकारें किस मुस्तैदी से कार्य कर रही हैं । जब दूसरी बार आवेदन करना पड़ा तो पहली बार का आवेदक का आधार काम नहीं आया क्योंकि उस कर एक बार स्वीकृति प्रदान की जा चुकी थी । दूसरी बार में मुख्य आवेदक का विवरण बदल कर आवेदन किया तो स्वीकृति प्रदान कर दी गयी व 4 दिन का पास बन गया ।
जिस तरह से कोरोना के बारे में रोज कुछ न कुछ पढ़ने में या सुनने में आ ही जाता है, तो अपनी गाड़ी में बैठने के बावजूत भी कुछ न कुछ शंका मन में थी । पहली शंका तो ड्राइवर ही था, क्योंकि वही एक शख्स था जिसके बारे में पहले से पता नहीं था, क्योंकि पहले बार का पास मेरे कारण ही उपयोग नहीं आ पाया था इसलिए ड्राइवर को मुख्य आवेदक बनाया गया । इसी सोच से गाड़ी में बैठ गया की यात्रा निर्विग्न संपन्न हो और हम कार्य पूर्ण कर जल्दी से जल्दी घर आ सकें ।
जयपुर से दिल्ली का ट्रैफिक सामान्य से चौथाई से ज्यादा नहीं कहा जा सकता, इसका अभिप्राय यह हुआ की लोग वाकई काम से ही घर से बाहर निकल रहे हैं । सड़क के दोनों तरफ होटलों व रेस्तौरां में से अधिकतर बंद थे, जो खुले भी थे वहाँ हरकत न के बराबर थी, क्योंकि ज्यादातर लोग प्राइवेट गाड़ियों से ही सफ़र कर रहे थे, व घर के खाने को बाहर से ज़्यादा महत्व दे रहे थे। जयपुर से गुडगाँव तक की दूरी 3 घंटो से पहले ही पूर्ण करने पर जैसे ही गाड़ी ईस्टर्न पेरिफिरल रोड पर पहुंची तो यातायात 15% से ज्यादा नहीं कहा जा सकता, इसमें ज्यादातर ट्रक ही थे व कुछ गाड़ियों देखने को मिलीं ।
कम ट्रैफिक के कारण ये सफर भी जल्दी ही तय हो गया व रामपुर पार करने पर पहला नाका पड़ा जहाँ उतर कर इ-पास की सभी जानकारी को बताना पड़ा जिसमें आवेदक, यात्रा का कारण, इत्यादि सम्बद्ध अधिकारी को नोट कराना पड़ा, इस सब प्रक्रिया में करीब आधा घंटा लग गया । दूसरा नाका रुद्रपुर पहुंचने पर था, इसमें वह पर्ची अधिकारी को दिखानी थी जो पहले नाके पर मिली थी, जिससे की अधिकारियों को पता चल सके की आवेदक नाके में पंजीकृत होकर आया है या नहीं । रुद्रपुर के बाद तीसरा नाका अल्मोड़ा पहुंचने से पहले था, वहां अधिकारियों ने टेम्परेचर स्कैन किया व निर्देश दिया कि आपको अपने पास की अवधि मैं कार्य पूरा कर के वापस लौटना है , व रहने के स्थान आदि का पता नोट किया, जो लोग अपने घर लोट रहे थे उनसे वह 15 दिनों का सेल्फ क्वारंटाइन का फार्म भरवा रहे थे। अल्मोड़ा में ज्यादातर होटल बंद थे या क्वारंटाइन सेंटर में तबदील कर दिये गए थे।
पहुंचने से पहले ही हमें कुछ कॉल व् व्हाट्सएप्प मैसेज आये जिसमें जयपुर प्रवेश की भ्रमित जानकारी दी गयी थी । अपना कार्य पूरा कर हमने जयपुर लौटने की यात्रा शुरू की लेकिन हमें कहीं कोई मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा । आने-जाने में खाने का सामान पास होने से कहीं कोई भी मुश्किल नहीं हुई।
जाने से पहले भी कई लोगो से बात हुई, लेकिन इस यात्रा के पूर्ण होंगे के बाद मैं यह कह सकता हूँ कि ज़्यादातर लोगों को पूर्ण जानकारी नहीं है, व अधिकतर सुनी सुनाई बातों को अपने ढंग से प्रस्तुत करते हैं।अंत में इस वृतांत को यह कहकर खत्म करूंगा कि बहुत आवश्यक होने पर ही यात्रा करें क्योंकि आप मन की उधेड़बुन के कारण यात्रा का पूर्ण आनंद नहीं ले पाएंगे
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Thanks for sharing the ground reality. Sitting at home, we really don’t get to know this. Much appreciated!
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