दीपोत्सव का अर्थ है पांच दिनों तक हर दिन एक त्योहार को मनाना। शुरुआत धनतेरस से होती है और फिर रूपचौदस, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज मनाए जाते हैं। इन दिनों ग्रहों के ऐसे योग बनते हैं जिनमें विशेष सावधानी रखने और पारंपरिक उपचार अपनाने से जीवन में अशुभता को टालने और शुभता लाने मे सहायता मिलती है। इस लेख में हम कुछ ऐसी ही सावधानियां और उपचारों के बारे में चर्चा कर रहे हैं।
धनतेरस
धनतेरस के दिन बर्तन जरूर खरीदने चाहिए परंतु ध्यान रखना चाहिए कि बर्तन लोहे का ना हो। यद्यपि स्टील के बर्तन में लोहा होता है लेकिन मिश्रित धातु होने और चांदी की तरह चमकदार होने के कारण लोग क्षमतानुसार इसकी खरीद करते हैं। पीतल और चांदी की वस्तु को खरीदना सबसे शुभ माना जाता है। व्यापारियों को धनतेरस के दिन चांदी की अंगूठी पर “श्री ” या “श्री यंत्र ” अंकित करके पहननी चाहिए
दीपावली
- जिन लोगों की कुंडली में सूर्य और गुरु ग्रह शुभ ना हों तथा इनकी महादशा चल रही हो उनको दीपावली वाले दिन स्वर्ण के आभूषण नहीं पहनने चाहिए अपितु आभूषण को एक पीले वस्त्र में बांधकर 40 दिन के लिए अपनी तिजोरी में रख देना चाहिए। इससे हानि की आशंका से तो बचेंगे ही साथ ही घर में धन संपदा बढ़ेगी
- दीपोत्सव के दौरान झाड़ू खरीदी जा सकती है परन्तु पुरानी झाड़ू को दीपावली के अगले दिन यानी गोवर्धन पूजा वाले दिन सूर्योदय से पूर्व किसी चौराहे पर चढ़ा देना श्रेयस्कर रहता है। यही नहीं दीपावली के दिन उठते ही अपने माता पिता के चरण स्पर्श करें तथा पितरों को याद करें और बुरे दिनों के दूर होने की कामना करें। निश्चत ही लाभ होगा।
- अगर व्यापार में परेशानी आ रही तो कच्चा सूत लेकर उस पर केसर की सात या ग्यारह बिंदियां लगा लें और दीपावली के दिन मां लक्ष्मी के सामने उस सूत ले कर बंटना चाहिए। बाद में सूत को अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान पर बांध देना चाहिए
- अगर घर में कोई परेशानी रहती हो या कोई गंभीर रूप से बीमार हो तो सिंह लग्न में महामृत्युंजय मंत्र का 11 माला जाप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- “ ऊं त्र्यम्कं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् “
- अगर दुश्मन या कर्जदार परेशान करते हों, नौकरी में परेशानी हो तो दीपावली के दिन सूर्योदय के समय हनुमानजी महाराज के मंदिर नंगे पैर ही जाएं। साथ में सवा किलो भुने चने और सवा किलो गुड़ ले कर जाएं और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान को अर्पित करें। ध्यान रखें कि मंदिर जाते समय अपने मन की इच्छा मन ही मन बोलते जाएं तथा मौनव्रत रखें, घर आ कर ही किसी से बात करे।