भरतपुर और जयपुर में आयोजित धार्मिक यात्राओं की दिल्ली तक पहुंचाई गई थी रिपोर्ट, मेवाड़ अंचल की यात्रा पर सभी मौन!
जयपुर। राजस्थान के सियासी हलकों में इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की(Raje’s) धार्मिक यात्रा (religious travel) के चर्चे हैं लेकिन इस यात्रा पर प्रदेश भाजपा के सियासी मौन पर भी बातें बनाई जा रही है। पूछा जा रहा है कि क्या राजे की धार्मिक यात्रा को केंद्र से (Centre’s) हरी झंडी (Green Signal) मिल गई है। प्रदेश भाजपा के दूसरे गुट मौन क्यों साधे हुए हैं? क्या राजे की यात्रा और भाजपा के चाण्क्य अमित शाह के राजस्थान दौरे में कोई कनेक्शन है?
सवाई कई खड़े हो रहे हैं और उनपर कयास भी अलग-अलग लगाए जा रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राजे की यात्रा को केंद्र से हरी झंड़ी मिल चुकी है और वह अगले विधानसभा चुनावों में पार्टी का चेहरा बनने वाली हैं। इस सवाल पर भाजपा में कहा जा रहा है कि राजे की यात्रा पर विभिन्न गुटों की ओर से इस बार कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है। इससे यही लगता है कि या तो अन्य गुटों को केंद्र की ओर से कोई इशारा मिला है, या फिर राजे को ही भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने हरी झंड़ी प्रदान कर दी है। यही कारण है कि राजे की यात्रा पर भाजपा मौन है। पूर्व में राजे ने भरतपुर और जयपुर में धार्मिक यात्रा की थी। दूसरे गुटों ने इन यात्राओं पर बयानबाजी भी की और इनकी पूरी रिपोर्ट केंद्र तक पहुंचाई भी थी।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि राजस्थान में गुटबाजी कई दशकों से चली आ रही है और इसका कोई इलाज नहीं मिल पा रहा। ऐसे में कें द्रीय नेतृत्व 2023 चुनावों के लिए राजस्थान में या तो गुजरात मॉडल अपनाएगा या फिर कर्नाटक मॉडल को भी अमल में ला सकता है, लेकिन यह तय है कि इस बार प्रदेश भाजपा की पूरी गुटबाजी का निराकरण कर दिया जाएगा। इसलिए अमित शाह के राजस्थान दौरे को बेहद अहम माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड़ चुनावों के बाद केंद्रीय नेतृत्व का सबसे ज्यादा ध्यान राजस्थान की ओर रहने वाला है।
क्या है गुजरात मॉडल
नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब गुजरात में भी बड़ी गुटबाजी थी। इस गुटबाजी को खत्म करने के लिए भाजपा ने 2002 के गुजरात चुनावों में भाजपा की जीत के बाद अचानक सभी दावेदारों को दरकिनार कर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया। केंद्रीय नेतृत्व व संघ की रजामंदी से मोदी ने गुजरात भाजपा की गुटबाजी को खत्म किया। यही फार्मूला हाल ही में उत्तराखंड में भी अपनाया गया और अचानक ऐसे विधायक को मुख्यमंत्री बनाया, जो इस पद की दौड़ में कहीं भी नहीं था। राजस्थान में भी पिछले दो वर्ष से यही कहा जा रहा है कि यहां एक बार भाजपा, एक बार कांग्रेस सरकार की परिपाटी को तोडऩे के लिए मुख्यमंत्री पद पर भाजपा कोई चेहरा आगे नहीं करेगी, बल्कि मोदी-शाह के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा और जीत के बाद केंद्र मुख्यमंत्री तय करेगा।
मौके की नजाकत के अनुसार कर्नाटक मॉडल भी
यह निर्विवाद सत्य है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे भाजपा का बड़ा चेहरा है और उनके बिना राजस्थान में चुनाव जीतना संभव नहीं। राजे को साइडलाइन करने से बगावत का भी खतरा हो सकता है। ऐसे में भाजपा सूत्र कह रहे हैं कि प्रदेश में गुटबाजी को समाप्त करने के लिए कर्नाटक मॉडल भी अपनाया जा सकता है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, लेकिन बाद में उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन कुछ समय बाद उनका इस्तीफा लेकर नया मुख्यमंत्री बनाया गया।
राजस्थान में पिछली राजे की दोनों सरकारों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। अब धार्मिक यात्राओं में उनके साथ वही भाजपा के नेता लगे हुए हैं, जो उस समय मलाईदार पदों पर जमे थे और उनके कारनामे जग जाहिर हैं। यह नेता राजे के सहारे फिर से सत्ता सुख भोगने की फिराक में हैं। ऐसे में भाजपा राजस्थान में भी राजे को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बता कर चुनाव लड़ सकती है। राजे की उम्र ज्यादा होने के कारण कुछ समय बाद उन्हें किसी अन्य पद पर बिठाकर गरिमा के साथ उनके राजनीतिक करियर को विराम दिया जा सकता है। उनके स्थान पर केंद्र अपनी आइडियोलॉजी के अनुसार नया मुख्यमंत्री बना सकते हैं। इसके कुछ सूत्र अमित शाह राजस्थान आकर दे सकते हैं कि भविष्य में राजस्थान में क्या होने जा रहा है?
यही कारण है कि राजे की इस यात्रा भाजपा के विभिन्न गुट एकदम मौन साधे बैठे हैं। मेवाड़ अंचल से भाजपा के कद्दावर नेता और अमित शाह के बेहद करीबी गुलाब चंद कटारिया भी शांत है। राजे के कट्टर विरोधी भी मुंह खोलने से बच रहे हैं।