एनजीटी द्वारा आमेर की केसर क्यारी में लाइट एंड साउंड शो बंद किए जाने के बाद आमेर महल की बस पार्किंग पर खड़े हुए सवाल
लंबे समय तक वन विभाग ने नहीं बनने दी सड़क, बाद में ऊपरी दबाव के चलते अवैध रूप से किया गया सड़क का निर्माण, अब वन विभाग भूमि का सर्वे कराकर बंद करा सकता है बस पार्किंग
धरम सैनी
पुरातत्व विभाग (Archaeological Department) राजस्थान की मनमानी (arbitrariness) के कारण जयपुर के नाहरगढ़ (Nahargarh) अभ्यारण्य के बघेरे (bagheras) प्यासे (thirsty) घूम रहे हैं, क्योंकि विभाग ने आमेर महल स्थित मावठा झील की केसर क्यारी पर वन विभाग की आपत्तियों के बावजूद लाइट एंड साउंड शो का निर्माण करा दिया, जिससे मावठे में पानी पीने के लिए आने वाले बघेरों का रास्ता रुक गया। एनजीटी ने लाइट एंड साउंड शो को बंद करने के निर्देश दिए हैं, ऐसे में आमेर महल की बस पार्किंग पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि पार्किंग वाणिज्यिक गतिविधियों में शामिल है और एनजीटी ने पूरे अभ्यारण्य क्षेत्र में वाणिज्यिक गतिविधियों को बंद करने के निर्देश दिए हैं।
वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि 50 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले अभ्यारण्य में वन्यजीवों के पानी पीने के गिने-चुने जल स्त्रोत हैं। इनमें मावठा, सागर झील प्रमुख है, जहां वन्यजीवों को सालभर पानी उपलब्ध होता है। शेष सभी जल स्त्रोतों पर आबादी बस चुकी है। बघेरों समेत लगभग सभी वन्यजीव शाम के धुंधलके में ही पानी पीने के लिए जलस्त्रातों पर पहुंचते हैं, लेकिन लाइट एंड साउंड शो के निर्माण के बाद वन्यजीवों के लिए मावठे में पानी पीना दूभर हो गया। तेज साउंड, लाइटों और मानव व वाहनों की आमदरफ्त के कारण वन्यजीव मावठे पर आने में डरते हैं।
आमेर महल में नाइट टूरिज्म शुरू होने के बाद यह समस्या ज्यादा बढ़ गई है। पर्यटकों के बड़े वाहन मावठे की पार्किंग में खड़े कराए जाते हैं और यह पार्किंग झील के उस छिछले हिस्से में बनी है, जहां से वन्यजीव पानी पीने के लिए आते थे। मावठे और पार्किंग के बीच दीवार बना दी गई, जिससे वन्यजीव मावठे में पहुंचने से वंचित हो गए। नाइट टूरिज्म शुरू होने के बाद रात तक यहां वाहनों का जमावड़ा लगा रहता है। आमेर के निवासियों का कहना है कि बस पार्किंग के पास अभी भी बघेरों का मूवमेंट लगातार बना हुआ है। कोरोना लॉकडाउन के दौरान जब यह इलाका सुनसान हो गया, तब अक्सर बघेरे यहां देखे जा रहे थे।
बरसों तक नहीं बन पाई सड़क
केसर क्यारी पर लाइट एंड साउंड शो तक जाने के लिए मावठा की बस पार्किंग से केसर क्यारी तक करीब एक किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया जाना था, लेकिन वन विभाग ने इस जगह को अभ्यारण्य की बताते हुए लंबे समय तक सड़क का निर्माण नहीं होने दिया था। वन विभाग बस पार्किंग को अवैध मानता है और इस जगह को अभ्यारण्य की बताता आया है।
मनमानी से बनी सड़क
वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि ब्यूरोक्रेट्स के दबाव के बाद पुरातत्व विभाग बस पार्किंग से केसर क्यारी तक सड़क निर्माण में कामयाब हो गया। उस समय निहाल चंद गोयल वन विभाग के प्रमुख शासन सचिव थे और वही कला संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग को भी देख रहे थे। ऐसे में उस समय पर्यटन विकास के बहाने वन विभाग पर दबाव बनाकर यह सड़क बनवा दी गई, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस निर्माण में पर्यटन विकास तो देखा गया, लेकिन मूक वन्यजीवों की मूलभूत आवश्यकता ‘पानी’ से उनको दूर कर दिया गया।
वादे से मुकर गया पुरातत्व विभाग
सूत्रों का कहना है कि सड़क निर्माण से पूर्व तय हुआ था कि वन्यजीवों के मूवमेंट को देखते हुए बस पार्किंग से केसर क्यारी तक बनी सड़क पर वाहन नहीं जाएंगे, लोग पैदल ही लाइट एंड साउंड शो तक जाएंगे, लेकिन बाद में पुरातत्व विभाग इस वादे पर अमल नहीं कर पाया। अब केसर क्यारी तक वाहन जाते हैं। वहीं जिन पर्यटक वाहनों के साथ चालक होते हैं, वहं वाहन को शो तक लेकर जाते हैं और पर्यटकों को उतारकर वापस बस पार्किंग में आकर खड़े होते हैं। पर्यटन सीजन के दौरान जब मावठा पार्किंग फुल हो जाती है तो इस सड़क पर भी वाहन खड़े कराए जाते हैं।
बस पार्किंग अभ्यारण्य की भूमि में हुई, तो बंद कराएंगे
मावठे में वन्यजीवों को पानी पीने में हो रही परेशानी के सवाल पर नाहरगढ़ के एसीएफ हैदर अली जैदी का कहना है कि बस पार्किंग और केसर क्यारी तक जाने वाली सड़क का अधिकांश हिस्सा अभ्यारण्य की भूमि पर है। विवादों को दूर करने के लिए पिलर टू पिलर सर्वे कराया जाएगा और यदि बस पार्किंग वनभूमि पर निकली तो इसे बंद कराया जाएगा, क्योंकि एनजीटी ने पूरे अभ्यारण्य में वाणिज्यिक गतिविधियों को बंद करने का निर्देश दिया है। हमारा इरादा पर्यटकों को परेशान करने का नहीं है। हम खुद चाहते हैं कि इस क्षेत्र में ईको टूरिज्म का विकास हो, लेकिन हमें मूक वन्यजीवों की समस्याओं का भी ध्यान रखना है। नाहरगढ़ हो या झालाणा सभी जगहों पर जल स्त्रातों की कमी है, ऐसे में वन्यजीवों को जलस्त्रोत तक पहुंचने का रास्ता तो बनाना ही होगा।