चरण मंदिर के बाहर दीवार बनाने का प्रयास, शिकायत मिलने के बाद वन विभाग ने जांच के लिए भेजी टीम
धरम सैनी
जयपुर। ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ पर पूरे विश्व में मूक वन्यजीवों को बचाने के लिए बहुत से आयोजन हुए, लेकिन राजस्थान का वन विभाग इस दिन भी मौन बैठा रहा। हाल यह रहा कि मुख्यालय स्तर पर वन्यजीवों को बचाने के लिए कोई आयोजन नहीं किया गया, जिलों में जरूर छोटे-मोटे आयोजन किए गए। वन विभाग का यह मौन भविष्य में राजस्थान जैसे रेगिस्तानी प्रदेश में वन और वन्यजीवों के खात्मे का प्रमुख कारण बन जाएगा। इसकी बानगी राजधानी का नाहरगढ़ अभ्यारण है, जहां विश्व वन्यजीव दिवस पर वन भूमि पर अतिक्रमण का मामला सामने आया है।
सूत्रों के अनुसार गुरुवार को नाहरगढ़ फोर्ट पर जाने के रास्ते में स्थित चरण मंदिर के बाहर खाली पड़ी वन भूमि पर अतिक्रमण का प्रयास किया जा रहा था। यहां खाली पड़ी वन भूमि को दीवारें बनाकर कवर करने की कोशिश हो रही थी और कुछ लोग खुदाई के काम में लगे थे। नाहरगढ़ के रेंजर राजेंद्र जाखड़ का कहना है कि विभाग को इस अतिक्रमण की सूचना मिली थी। सूचना के बाद जांच के लिए वहां टीम भेज दी गई है। यदि वहां अतिक्रमण का प्रयास किया गया है तो अतिक्रमण को तोड़ दिया जाएगा। किसी को भी अभ्यारण्य में अतिक्रमण नहीं करने दिया जाएगा। उधर मंदिर के पुजारी परिवार का कहना है कि मंदिर के बाहर अक्सर असामाजिक तत्व उत्पात मचाए रहते हैं। इसकी शिकायतें वन विभाग को की जाती रही है। मंदिर के बाहर अतिक्रमण का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।
वन विभाग की कामचोरी और पर्यटन व पुरातत्व विभाग के लालच का नतीजा
उल्लेखनीय है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पिछले वर्ष नवम्बर में आदेश जारी कर नाहरगढ़ फोर्ट समेत पूरे अभ्यारण्य क्षेत्र में वाणिज्यिक गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। इससे अभ्यारण्य क्षेत्र में पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग की एजेंसी आरटीडीसी की कमाई रुक गई। दोनों विभाग चाहते हैं कि वन एवं वन्यजीव अधिनियमों को धता बताकर उनकी वाणिज्यिक गतिविधियां जारी रहे। ऐसे में दानों ने एनजीटी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौति दी थी, लेकिन यहां वन विभाग की कामचोरी आड़े आ गई और वन विभाग की ओर से न तो आईओसी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और न ही उनका कोई काउंसलर पहुंचा। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने वन विभाग का जवाब आने तक एनजीटी के आदेश को स्टे कर दिया।
अफवाहों के बाजार में अटकी वन्यजीवों की सांसें
वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी पुरातत्व विभाग की अपील पर कोई फैसला नहीं दिया है, लेकिन पुरातत्व विभाग से जुड़े लोगों द्वारा पूरे क्षेत्र में अफवाह उड़ाई गई कि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें बड़ी राहत मिली है। अब अभ्यारण्य में कभी वाणिज्यिक गतिविधियां बंद नहीं हो पाएंगी, क्योंकि यह केस अब कई दशकों तक लंबा खिंच सकता है। ऐसे में अब कहा जा रहा है कि अभ्यारण्य क्षेत्र में अब बड़ी संख्या में अतिक्रमण और वाणिज्यिक गतिविधियां शुरू हो सकती है, चरण मंदिर का मामला इसकी बानगी है, वन विभाग इन गतिविधियों को कितना रोक पाएगा, यह यक्ष प्रश्न है। चरण मंदिर का मामला भी कुछ ऐसा ही लगता है। रेंजर जाखड़ का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का स्टे पुरानी वाणिज्यिक गतिविधियों पर है। यदि अभ्यारण्य में कोई नया अतिक्रमण होगा या वाणिज्यिक गतिविधियां होगी तो हम उन्हें तत्काल रोकेंगे।