भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर पीएम मोदी से और भारतीय जनता एस जयशंकर की कार्यशैली और त्रान से कापी प्रभावित है। पीएम मोदी भी जयशंकर की सकारात्मक सोच बड़े कायल हैं। पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में जयशंकर ने कहा कि जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो चीन से सटी सीमा पर बुनियादी ढांचे का बजट 3,500 करोड़ रुपये था लेकिन आज यह 14,500 करोड़ रुपये है। जयशंकर ने दावा किया कि भारत को 1962 के युद्ध से सबक लेना चाहिए था लेकिन 2014 तक सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास में कोई प्रगति नहीं हुई।
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— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) April 12, 2024
जयशंकर ने पुणे में ‘भारत क्यों मायने रखता है: युवाओं के लिए अवसर और वैश्विक परिदृश्य में भागीदारी’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में युवाओं के साथ बातचीत में कहा कि चीन के साथ भारत की ‘यथार्थवादी, जमीनी और व्यावहारिक नीति’ होनी चाहिए। एस जयशंकर ने कहा, ‘चीन हमारा पड़ोसी है और चाहे वह चीन हो या कोई अन्य पड़ोसी, सीमा समाधान एक तरह की चुनौती है। मैं यहां इतिहास पर ध्यान देना चाहूंगा क्योंकि अगर हमने इतिहास से सबक नहीं सीखा, तो बार-बार गलतियां करते रहेंगे।’
जयशंकर ने कहा कि चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था और तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर कहा था कि वह चीन के प्रति भारत की नीति से बहुत परेशान हैं। उन्होंने दावा किया कि पटेल ने आगाह किया कि भारत को चीन के आश्वासनों को बिना सोचे-समझे नहीं लेना चाहिए लेकिन नेहरू ने उनकी चिंताओं को खारिज कर दिया और कहा कि चीनी एशियाई लोग हैं और उनके मन में भारत के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है।
जयशंकर ने कहा, ‘उन्होंने (नेहरू) कहा कि चीनी वास्तव में भारत के साथ दोस्ती चाहते हैं और दावा किया कि यह असंभव है कि भारत पर हमला करने के लिए चीन हिमालय पार करेगा।’ उन्होंने कहा कि जहां पटेल एक व्यावहारिक, जमीन से जुड़े और यथार्थवादी व्यक्ति थे, वहीं नेहरू आदर्शवादी और वामपंथी विचारधारा के इंसान थे।
जयशंकर ने कहा, ‘मैं इतिहास के बारे में बात कर रहा हूं क्योंकि चीन के साथ हमें हर बार यथार्थवादी, जमीनी और व्यावहारिक नीति रखनी होगी। मैं इतिहास की घड़ी को थोड़ा आगे ले जा रहा हूं क्योंकि सात से आठ साल बाद चीन को अक्साई चीन के माध्यम से एक सड़क बनाते हुए पाया गया। जब भारत को एहसास हुआ कि वे हमारे क्षेत्र में सड़क बना रहे हैं तो भारत ने विरोध दर्ज कराया लेकिन बाद में उन्होंने दावा किया कि यह उनकी भूमि है।’
उन्होंने कहा कि 1957 से 1962 तक जब चीनी सड़क बना रहे थे, युद्ध की तैयारी कर रहे थे तो भारत सरकार यह सोचने में व्यस्त थी कि भारत गुटनिरपेक्ष देश है और चीन गैर-पश्चिमी देश है और दोनों देशों के बीच वैचारिक संबंध हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में चीन से सटी सीमा पर नई सुरंगें, सड़कें, पुल बनाए गए हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि सेला सुरंग वहां बनाई गई जहां 1962 में चीनी पहुंच गए थे।