जयपुर। नाहरगढ़ फोर्ट में अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई तक स्टे क्या दे दिया, वन विभाग ने पूरे अभ्यारण्य को पुरातत्व और आरटीडीसी के भरोसे छोड़ दिया है। फोर्ट देखने आने वाले पर्यटकों और आरटीडीसी के रेस्टोरेंट और बीयर बार में आने वाले ग्राहकों ने पूरे अभ्यारण्य को ही बीयर बार में तब्दील कर दिया है। वन विभाग की न यहां कोई निगरानी नजर आती है और न ही कोई कार्रवाई। विभाग के अधिकारी अपने कमरों में आराम फरमा रहे हैं और ए श्रेणी के वन्यजीवों की जान को खतरा बढ़ गया है।
यह बात हम यूं ही नहीं कह रहे, बल्कि गाहे—बगाहे इसके सबूत सामने आते रहते हैं। कुछ महीनों पूर्व होप एंड बियांड स्वयंसेवी संस्था की ओर से नाहरगढ़ अभ्यारण्य में सफाई अभियान चलाया गया था। इस दौरान टनों कांच व अन्य कचरा अभ्यारण्य से निकाला गया। अब दोबारा अभ्यारण्य का पहले जैसा हाल हो गया है।
रविवार को नाहरगढ़ वन्य जीव अभयारण्य क्षेत्र के नाहरगढ़ किले के पास एक अन्य एनजीओ द्वारा सफाई अभियान चलाया गया। अभ्यारण्य क्षेत्र से कचरा संग्रहण किया गया जिसमें स्थानीय पार्षद भूपेंद्र मीणा ने भी अपने साथियों के साथ सहयोग किया। खुद भूपेंद्र मीणा ने सोश्यल मीडिया के जरिए इस अभियान की जानकारी दी। कचरा संग्रहण में अभ्यारण्य क्षेत्र में बड़ी मात्रा में शराब की बोतलें मिली है, जो गंभीर विषय है और साबित कर रही है कि अभ्यारण्य में शराब पार्टियों पर वन विभाग की ओर से कोई रोक—टोक नहीं की जा रही है।
नाहरगढ़ वन एवं वन्य जीव सुरक्षा एवं विकास समिति EDC नाहरगढ़ के सचिव कमल तिवाड़ी ने बताया कि वन विभाग के जिम्मेदार सक्षम अधिकारी एयर कंडीशनर आफिस में बैठकर अभ्यारण्य क्षेत्र की मॉनिटरिंग करते हैं, जिसका खामियाजा वन्य जीवों को भुगतना पड़ता है। शराब की टूटी बोतलों से वन्य जीवों के घायल होने का खतरा बढ़ जाता है।
यदि वन विभाग नाहरगढ़ वन्य जीव अभयारण्य क्षेत्र में बैरीयर लगा कर नियमानुसार प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति कि मॉनिटरिंग करता तो वन अभ्यारण्य क्षेत्र शराबियों के अड्डे बंद हो जाते, लेकिन वन अधिकारी अब सुप्रीम कोर्ट के स्टे का बहाना करके अपनी जिम्मेदारियों से किनारा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नाहरगढ़ फोर्ट में वाणिज्यिक गतिविधियों को बंद करने के एनजीटी के आदेश के खिलाफ स्टे दिया है, सुप्रीम कोर्ट ने कहीं भी यह नहीं कहा कि वन अधिकारी नाकारा बन कर सिर्फ अपना वेतन उठाएं। उन्हें वन एवं वन्यजीव अधिनियमों के तहत वन और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कदम तो उठाने चाहिए।