नगरीय विकास मंत्री ने किया किशन बाग परियोजना का दौरा
राजस्थान की राजधानी जयपुर (Jaipur) में राज्य सरकार ने रेतीले धोरों (sand dunes) पर हरे-भरे बागीचे को साकार (realized) कर दिखाया है। शहर में सौन्दर्यीकरण एवं हरियाली विकसित करने के विद्याधर नगर में नाहरगढ़ पहाड़ की तलहटी में किशनबाग गांव में विकसित किशन बाग परियोजना का स्वायत्त शासन मंत्री शांति कुमार धारीवाल ने अधिकारियों के साथ दौरा किया। विजय दशवाली, प्रतिनिधि राव जोधा पार्क ने मंत्री को किशन बाग परियोजना की सभी विशेषताओं से अवगत कराया।
बाग का दौरा करने के बाद धारीवाल ने कहा कि रेतीले टीलों पर रेत से चट्टानें बनाकर उनके अलग-अलग उपयोग यहां किए गए हैं। रेगिस्तान में विषम परिस्थितयों के बावजूद बाद भी वनस्पितयां उगाई गई है। सरकार की ओर से 250 बीघा में किशनबाग बनाया गया है, जिसे विकसित करने पर 12—13 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। रेतीले टीलों पर बना हुआ यह पूरे देश में पहला बाग होगा। इस बाग में लाखों प्रजातियों के पौंधे एवं वनस्पितयां लगाई गई है। जयपुर में आने वाला पर्यटक आमेर किला, हवामहल देखने के साथ—साथ किशनबाग को भी देखेगा।
विद्याधर नगर स्थित स्वर्ण जयंती गार्डन के समीप किशनबाग गांव में नाहरगढ़ की तलहटी में प्राकृृतिक रूप से बने रेत के टीबों के रूप में अनुपयोगी पड़ी जेडीए की भूमि, जो कि तीन तरफ से कच्ची बस्तियों से घिरे होने के कारण अतिक्रमण होती जा रही थी, पर 64.30 हैक्टर क्षेत्रफल में यहां की जलवायु और मिट््टी के अनुसार प्राकृतिक रेगिस्तानी थीम पर किशन बाग वानिकी परियोजना विकसित करने का निर्णय किया गया। परियोजना के कुल क्षेत्रफल 64.30 हैक्टेयर मे से 30 हैक्टेयर जेडीए की भूमि नाहरगढ़ अभयारण सीमा में आने के कारण परियोजना को विकसित करने हेतु वन विभाग से स्वीकृति प्राप्त की जा चुकी है।
इस बाग को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य नाहरगढ़ के मौजूद रेतीले टीलों को स्थाई कर वहां पर पाये जाने वाले जीव जन्तुओं के प्राकृतिक वास को सुरक्षित कर संधारित करना एवं रेगिस्थान में प्राकृृतिक रूप से पनपने वाली वनस्पती की प्रजातियों को विकसित कर जयपुर में एक सम्पूर्ण रेगिस्थान क्षेत्र का स्वरूप विकसित कर संधारित करना एवं राजस्थान में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के बलुआ चट््टानों के बनने के बारे में जानकारी तथा राजस्थान की विषम परिस्थितियों (जैसे बलुआ एवं ग्रेनाईट की चट्टानों व आद्र भूमि) में उगने वाले पौधो को मौके पर माईक्रो क्लस्टर के रूप में विकसित कर दर्शकों में वैज्ञानिक एवं शिक्षकीय अभिरूचि पैदा करना है। इस परियोजना पर कुल लगभग 1141.21 लाख रुपए व्यय किये गये है।
परियोजना में कराए गये मुख्य कार्य
परियोजना क्षेत्र की फेंसिंग, पार्किंग, नर्सरी, प्रवेशप्लाजा मय टिकिट घर, आगंतुक केन्द्र मय शौचालय, माईक्रो हेबीटेट्स 1 (ग्रेनाइट हैबिटेट्स), धोक हेबीटेट, रॉक एण्ड फोसिल्स कलस्टर, रोई हेबीटेट/एक्जिबिट, माईक्रो हेबीटेट्स 2 (आद्र्रभूमि वृक्षारोपण), व्यूइंगडैक, वॉटरबॉडी मय जेटी आदि।
हॉर्टीकल्चर कार्य
उपचारित/विकसित किये जाने वाले क्षेत्र में विभिन्न रेगिस्थानी प्रजातियों के लगभग 7 हजार पेड़ जिसमें मुख्यतया: खैर, रोंज, कुमठा, अकोल, धोंक, खेजडी, इंद्रोक, हिंगोट, ढाक, कैर, गूंदा, लसोडा, बर्ना, गूलर, फालसा, रोहिडा, दूधी, खेजडी, चूरैल, पीपल, जाल, अडूसा, बुई, वज्रदंती, आंवल, थोर, फोग, सिनाय, खींप, फ्रास आदि प्रजाति के पेड-पौधे और लापडा, लाम्प, धामण, चिंकी, मकडो, डाब, करड, सेवण आदि प्रजाति की घास का बीजारोपण किया गया है।
परियोजना की विशेषताएं
किशन बाग परियोजना पूरे भारत में अकेली ही रेतीले टीबो में विकसित विशिष्ट और अद्वितीय बाग है। यह बहुत संभव है कि रेतीले टीबों की विशेषता वाला कोई भी पार्क दुनिया में कहीं भी मौजूद नही हो क्योंकि ऐसे पार्क के बारे आज तक सुना नही गया है।
परियोजना के बारे में आगंतुकों को सहज एवं सरल भाषा में जानकारी देने एवं आकर्षित करने हेतु विशेष प्रकार के फोटो सहित साईनेज का प्रयोग किया है ताकि वे इस पार्क की विशेषताओं को समझ सकें तथा इसकी सराहना कर सकें।
किशन बाग की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि ज्यादातर सिलिका जो कि रेगिस्तानी रेत का प्रमुख घटक है, से बनी ऐतिहासिक चट्टानों और खनिजों का प्रदर्शन है। इस भाग में भी साइनेज के माध्यम से सभी प्रकार के आगंतुकों को आसानी से समझने वाली जानकारी प्रदान कराना है।
इसी प्रकार एक अन्य भाग प्रागैतिहासिक जीवों के जीवाश्मों से संबंधित है और इस क्षेत्र में लगे विशेष साईनेज जीवाश्मों के बारे में महत्वपूर्ण और सरल भाषा में जानकारी प्रदान करते है।
किशन बाग को स्थानीय ग्रामीण वास्तुकला और थार रेगिस्तान की निर्मित धरोहरों को मनाने और बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह संरचनाऐ अकेले किशन बाग को एक अनूठा रूप प्रदान करती है।
इन विशेषताओं में प्रमुख थार रेगिस्तान की विशेष पर्यावास है जिसे स्थानीय रूप से रूही के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे यह उद््देश्य है कि किशन बाग, थार के सबसे महत्वपूर्ण झाड़ीदार निवास स्थान का वर्णन करने के लिए इस शब्द के उपयोग को लोकप्रिय बना देगा। उम्मीद है। इससे रूही के बारे में विशेष रूप से जागरूकता और प्रशंसा होगी तथा इसके संरक्षण का मार्ग प्रशस्त होगा।
परियोजना के विशेष लाभ
इस परियोजना से जयपुर आने वाले वैज्ञानिक एवं शिक्षकीय अभिरूचि के दर्शकों/पर्यटकों को रेत से बनी राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाने वाली चट््टानों के बारे में जानकारी एवं इन चट््टानों, रेत के टीबो तथा आद्र भूमि की विषम परिस्थिति में उगने वाले पौधो के बारे में जानकारी एक ही स्थान पर प्राप्त हो सकेगी।