जयपुर

बेशर्मी की इन्तेहां! एडमा की नाक के नीचे नगर निगम हैरिटेज खमीरे की जगह फिर पोत गया चूना, राजधानी में उड़ी पुरातत्व कानूनों की धज्जियां, अधिकारी कह रहे हमें पता ही नहीं, दिखवाते हैं

वर्ल्ड हैरिटेज सिटी जयपुर में प्राचीन विरासतों के संरक्षण-जीर्णोद्धार में लगे विभागों ने बेशर्मी की इन्तेहां कर दी है। राजधानी में पुरातत्व कानूनों की एक बार फिर धज्जियां उड़ाई गई। पुरातत्व विभाग के संरक्षित स्मारक सवाई मान सिंह टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) पर नगर निगम हैरिटेज की ओर से खमीरे के बजाए सफेदी में गेरुआ रंग मिलाकर पोत दिया गया और आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) अधिकारियों को इसकी भनक भी नहीं लगी।

टाउन हॉल पर नगर निगम की ओर से पहले स्वच्छता सर्वेक्षण के स्लोगन पेंट कराए गए थे। क्लियर न्यूज ने विरासत के साथ हुए खिलवाड़ का सबसे पहले खुलासा किया। तो नगर निगम अधिकारियों ने स्लोगन पर सफेदी में गेरुआ रंग मिलाकर पुतवा दिया, जो टाउन हॉल के मूल रंग से मेल नहीं खा रहा था।

क्लियर न्यूज की खबरों से एक बार फिर पुरातत्व विभाग और एडमा के लापरवाह अधिकारियों की नींद खुली और नगर निगम हैरिटेज को नोटिस दिए गए कि निगम की ओर से जो रंग कराया गया है वह इमारत के मूल रंग से मेल नहीं खा रहा है। नगर निगम की ओर से गुरुवार को एक बार फिर सफेदी में गेरुआ रंग मिलाकर पुतवा दिया, जो अभी भी नारंगी ही दिखाई दे रहा है और पूरी इमारत से मेल नहीं खा रहा।

इस संबंध में जब एडमा के अधिशाषी अभियंता रवि गुप्ता से सवाल किए गए तो उनका बयान सामने आया। खमीरे की जगह सफेदी पोतने के सवाल पर गुप्ता ने कहा कि हम पूरे समय इमारत की निगरानी नहीं करते रह सकते है। हमें अभी इसकी सूचना नहीं मिली है कि नगर निगम ने फिर से यहां रंग कराया है। निगम की ओर से जो रंग कराया गया है, वह खमीरा है या सफेदी, इसकी हम जांच करा लेंगे। उधर खमीरे के सवाल पर पुरातत्व अधिकारी भी बोलने से बचते रहे।

इस लिए उठ रहे सवाल
पुरातत्व नियम कहते हैं कि किसी भी प्राचीन इमारत में निर्माण के समय इस्तेमाल सामग्रियों से ही संरक्षण कार्य कराया जाना चाहिए। यदि वह सामग्रियां उपलब्ध नहीं हो तो उससे मिलती जुलती सामग्रियों का उपयोग होना चाहिए। राजस्थान में प्राचीन काल से ही इमारतों की बाहरी दीवारों पर खमीरा कराया जाता है, क्योंकि तेज धूप, बारिश के कारण खमीरे का रंग कई दशकों तक हल्का नहीं पड़ता है।

वहीं यदि साधारण सफेदी कराई जाती है तो धूप और बारिश में एक वर्ष में ही सफेदी का रंग उड़ जाता है। टाउन हॉल पर भी पूर्व में खमीरा किया गया था। इसे वल्र्ड क्लास म्यूजियम बनाने के दौरान कराए गए निर्माण के दौरान भी खमीरा ही कराया गया था।

खमीरा नहीं सफेदी पोती
पुरातत्व के जानकारों का कहना है कि नगर निगम के हाल किसी से छिपे नहीं है। नगर निगम खमीरे के नाम पर जो रंग पोतता है, उसमें सफेदी कम और पानी ज्यादा होता है। पानी में गेरुआ रंग और फेवीकोल मिलाकर दीवारों पर रंग कर दिया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि खमीरा बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल है।

खमीरा बनाने के लिए सफेदी में कई चीजें और रंग डाल कर एक से दो हफ्तों तक उसे सड़ाया जाता है। जब सफेदी सड़ने लगती है, तो जैसे बर्फी बनाते समय घुटाई की जाती है, उसी तरह खमीरे की घुटाई की जाती है। अच्छी तरह घुटाई होने के बाद उसे दीवारों पर किया जाता है, जिससे उसे सीमेंट से भी ज्यादा पकड़ मिलती है। ऐसे में नगर निगम हाथों-हाथ खमीरा तैयार कर टाउन हॉल पर कैसे कर सकता है।

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