जयपुर

संरक्षित परकोटे को तोड़ने के मामले में अधिकारियों की टांय-टांय फिस्स, पूरे परकोटे को गिराने का था स्मार्ट सिटी का इरादा, अब टूटे परकोटे और बुर्ज का होगा पुनर्निर्माण

जयपुर। आपने ‘लौट के बुद्धू घर को आए’ कहावत तो बहुत बार सुनी होगी, अब देख लीजिए यह कहावत जयपुर स्मार्ट सिटी कंपनी पर एकदम फिट बैठ रही है। राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश और पुरातत्व नियमों की धज्जियां उड़ाने वाली जयपुर स्मार्ट सिटी कंपनी ने दरबार स्कूल प्रोजेक्ट रोक दिया है। उच्च न्यायालय की अवमानना और पुरातत्व कानूनों के शिकंजे में फंसते देख अब कंपनी के अधिकारी और नगर निगम हैरिटेज तोड़े गए परकोटे के पुनर्निर्माण की तैयारियों में जुट गए हैं।

स्मार्ट सिटी कंपनी का अपने स्कूल प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए दरबार स्कूल के पूरे परकोटे को ध्वस्त करने का इरादा था लेकिन मामला उजागर होने, लगातार खबरें प्रकाशित होने, परकोटे के पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित होने व उसपर उच्च न्यायालय के निर्देशों को देखते हुए कंपनी के अधिकारियों की टांय-टांय फिस्स गई। कार्रवाई का डर दिखा तो नगर निगम के हैरिटेज सेल से मदद मांगी गई क्योंकि नगर निगम हैरिटेज आयुक्त और स्मार्ट सिटी कंपनी के सीईओ एक ही अधिकारी हैं।

निगम सूत्रों के अनुसार हैरिटेज सेल ने अपने अपनी कंसल्टेंट शिखा जैन से पूछा कि अधिकारियों को बचाने के लिए क्या किया जाए? जैन ने दरबार स्कूल का दौरा करके अधिकारियों को साफ कर दिया कि संरक्षित परकोटे को तोड़ने का मैटर बड़ा इश्यू बन गया है और मामला यूनेस्को तक पहुंचा हुआ है इसलिए अधिकारियों की भलाई इसी में है कि वह टूटे हुए परकोटे का पुनर्निर्माण कराएं और राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्देशों, यूनेस्को की गाइडलाइन और पुरातत्व विभाग के नियमों की पूरी तरह से पालना करें, अन्यथा शहर को मिला विश्व धरोहर का प्रतिष्ठित दर्जा कभी भी छिन जाएगा और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी ही होंगे।

जैन की सलाह के बाद नगर निगम की हैरिटेज सेल ने एक प्रस्ताव तैयार किया है। इसके तहत नवीन स्कूल के निर्माण से पहले चूने-पत्थर का प्रयोग करके परकोटे का पुनर्निमाण कराया जाएगा। शेष बचे परकोटे पर भी रंगाई-पुताई, लाइटें लगाकर सौंदर्यीकरण किया जाएगा। संरक्षित स्मारक का बोर्ड लगाया जाएगा और पर्यटकों के लिए के लिए एक रैंप बनाया जाएगा, ताकि पर्यटक आसानी से बुर्ज और परकोटे के खुर्रे पर घूम सकें।

सबसे बड़ी बात यह है कि स्मार्ट सिटी कंपनी के अधिकारियों को कहा गया है कि वह अपने नवीन स्कूल प्रोजेक्ट की डिजाइन में बदलाव करें और परकोटे और नवीन निर्माण के बीच उच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित दूरी खाली छोड़ें। स्कूल प्रोजेक्ट इस तरह से हो कि पर्यटकों को परकोटे तक पहुंचने में किसी प्रकार की समस्या नहीं हो। कंपनी अपने प्रोजेक्ट में बदलाव की तैयारियां कर रही है।

सूत्र बताते हैं कि कंसल्टेंट की इस विजिट के बाद निगम के उच्चाधिकारियों के सामने साफ हो गया कि न तो हैरिटेज सेल के अधिकारी काम कर रहे हैं और न ही निगम उनसे काम ले पा रहा है। ऐसे में अधिकारी एसी कमरों में ठाले बैठने का मोटा वेतन उठा रहे हैं।

संरक्षित परकोटे को ध्वस्त करना आपराधिक कृत्य है। इसमें जहां उच्च न्यायालय के निर्देशों की अवमानना हुई, वहीं पुरातत्व नियमों का भी उल्लंघन किया गया। इसमें सबसे ज्यादा दोषी नगर निगम हैरिटेज के आयुक्त और स्मार्ट सिटी के सीईओ लोकबंधु हैं क्योंकि परकोटे और उसके अंदर बनी प्राचीन इमारतों की सुरक्षा का जिम्मा इनके ही कंधों पर है। पुरातत्व विभाग के निदेशक पीसी शर्मा भी दोषी हैं क्योंकि उनके निर्देश पर संरक्षित स्मारक को तोड़ा गया और उन्होंने पुरातत्व नियमों के अनुरूप परकोटा तोड़ने वाले इंजीनियरों और ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं कराई।

स्मार्ट सिटी के इंजीनियर और नगर निगम हैरिटेज की हैरिटेज सेल के अधिकारी भी बराबर के जिम्मेदार है। अब इस मामले में लीपापोती की कोशिश हो रही है। देखने वाली बात यह है कि नियमानुसार दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है या फिर नियम-कानून सिर्फ आम आदमी के लिए ही बने हैं।

उल्लेखनीय है कि क्लियर न्यूज डॉट लाइव ने 24 दिसंबर को ‘एक विरासत है गुलाबी नगर का परकोटा, दरबार स्कूल की जगह नई इमारत बनाने के लिए इसी परकोटे को ही ध्वस्त करने की कोशिश्’, 25 दिसंबर को ‘कमीशन के फेर में धरोहरों को ढेर कर रहा जयपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट’, 30 दिसंबर को ‘जयपुर तैयार रहे बड़ी आपदा के लिए’, 5 जनवरी को ’30 करोड़ मिलने के बाद भी निगम पांच साल में परकोटा वॉल की मरम्मत नहीं करा पाया, पुरातत्व विभाग राजस्थान ने निगम से मांगी पैसों की जानकारी’ 7 जनवरी को ‘जयपुर शहर के विश्व धरोहर स्टेटस पर खतरा, कार्ययोजना बनाए सरकार’ खबरें प्रकाशित कर नगर निगम, स्मार्ट सिटी और पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की घोर आपराधिक लापरवाही को उजागर किया था। इसके बाद नगर निगम और स्मार्ट सिटी को यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

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