राजनीति

माया मिली न राम ! पीएम के चक्कर में नीतीश ने एनडीए छोड़ा, अब नहीं मिल रहा ‘भाव’

नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की बुनियाद भले रखी हो, लेकिन उन्हें उसका कोई लाभ नहीं मिला। पहले तो अफवाहों में ही सही, नीतीश के नाम की चर्चा संयोजक बनाए जाने को लेकर होती थी, अब ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे कर संभावनाएं ही खत्म कर दी हैं। नतीजा यह रहा कि नीतीश कुमार बिना मीडिया से मुखातिब हुए इंडि अलायंस की मीटिंग से रुखसत हुए।
विपक्षी दलों के गठबंधन इंडी अलायंस की दिल्ली में तीन घंटे चली बैठक में बिहार के सीएम नीतीश कुमार के हाथ फिर खाली रह गए। सच कहें तो नीतीश के नाम पर बैठक में कोई चर्चा ही नहीं हुई। जेडीयू नेताओं की चाहतें धरी की धरी रह गईं। पोस्टर, नारेबाजी और बयानों के जरिए जेडीयू नेता नीतीश कुमार को विपक्ष का पीएम फेस बनाने और गठबंधन का नेतृत्व सौंपने की मांग करते रहे हैं।
यह अलग बात है कि नीतीश कुमार ने शुरू से अब तक अपनी इस तरह की किसी इच्छा-अपेक्षा से इनकार ही किया है। हालांकि, नीतीश ने जब एनडीए छोड़ महागठबंधन से हाथ मिलाया था, तब चर्चा थी कि नीतीश विपक्ष के पीएम फेस होंगे। नीतीश ने भी इशारों में ही सही, इसकी पुष्टि कर दी थी कि 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
मल्लिकार्जुन खरगे का नाम ममता ने पेश किया
बैठक से बाहर निकले नेताओं की चर्चा में एक बात आम रही कि गठबंधन के संयोजक या पीएम फेस के रूप में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सबसे उपयुक्त आदमी हैं। संयोजक कहें, पीएम फेस बताएं या गठबंधन के नेतृत्व की बात करें, इसके लिए खरगे सबसे योग्य आदमी हैं। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने ममता बनर्जी के प्रस्ताव का समर्थन किया। ममता और केजरीवाल के प्रस्ताव और समर्थन से दो लोगों को यकीनन जोर का धक्का लगा होगा। एक तो कांग्रेस के कद्दावर नेता और नेहरू खानदान की राजनीतिक विरासत के फिलवक्त एकमात्र दावेदार राहुल गांधी के मन को इससे भारी ठेस पहुंची होगी। दूसरे बिहार के सीएम नीतीश कुमार को आश्चर्य मिश्रित पीड़ा जरूर हुई होगी कि सबको एकजुट करने के बावजूद उनका कोई नामलेवा नहीं है।
नीतीश का पीएम बनने का सपना टूटता दिख रहा?
कुल मिलाकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनते देखने का सपना टूटता दिख रहा है। बैठक में इंडिया गठबंधन के को-आर्डिनेटर या पीएम पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम को आगे किया गया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे का नाम सामने आने के बाद गठबंधन में दरार भी पड़नी तय मानी जा रही है। बताया जा रहा है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले ही नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव होटल से बाहर निकल गए। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में जबरदस्त चर्चा शुरू हो गई है कि क्या नीतीश-लालू नाराज हैं? प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव, मनोज झा सहित बिहार के सभी नेता वहां से निकल गए। बिहार के इन नेताओं के इस तरह से बाहर जाने को लेकर माना जा रहा है कि गठबंधन में हुए फैसले बिहार को स्वीकार नहीं है।
खरगे के नाम पर आम सहमति बनने के कारण
मल्लिकार्जुन खरगे उम्र में सीनियर हैं। कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इससे बड़ी योग्यता उनका दलित होना है। खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद ही कांग्रेस ने कर्नाटक की सत्ता बीजेपी से झटकी। तेलंगाना में कांग्रेस की जीत का श्रेय भी अध्यक्ष होने के नाते खरगे को ही जाता है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार के बावजूद कांग्रेस ने वोट शेयर का खासा आंकड़ा अगर हासिल किया तो इसका श्रेय भी खरगे के खाते में ही जाता है। दक्षिण भारत कांग्रेस के लिए हमेशा ही अनुकूल रहा है। साल 1977 में जब उत्तर भारत में कांग्रेस का सफाया हो गया था, तब भी दक्षिण भारत ने कांग्रेस को कुछ सीटें देकर जिंदा रखा। उस वक्त माना जा रहा था कि कांग्रेस का पनपना अब असंभव है। दक्षिण का खाद-पानी लेकर जिंदा रही कांग्रेस अगर खरगे के नाम पर असहमति जताती है तो वो अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार लेगी। खरगे के पीएम फेस रहने पर संपूर्ण भारत के दलितों में विपक्ष ये संदेश देने में सफल होगा कि कैसे विपक्षी दल दलितों के हमदर्द हैं।
राहुल गांधी का नाम न लेने के पीछे वजह क्या
राहुल का नाम पीएम चेहरे या संयोजक के रूप में अगर किसी ने नहीं रखा तो इससे आम आदमी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसलिए कि 2014 और 2019 में कांग्रेस उन्हें आजमा चुकी है। उनके चेहरे पर लड़े चुनाव में कांग्रेस की बदहाली साफ दिखी। इस बार ज्यादातर विपक्षी दल एकजुट हुए हैं। भाजपा को मात देने के लिए ये अच्छा मौका है। इस बार राहुल के चेहरे पर चुनाव लड़ कर विपक्ष कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहता। ममता ने अगर राहुल के बजाय कांग्रेस से ही खरगे के नाम का प्रस्ताव किया तो इसकी सबसे बड़ी वजह यही हो सकती है। वैसे भी गांधी परिवार से नफरत के कारण ही ममता बनर्जी ने अलग तृणमूल पार्टी बनाई थी। यानी अपने एक प्रस्ताव के जरिए ममता ने खरगे की जहां सहानुभूति बटोरी है, वहीं नेहरू खानदान से अपना पुराना बदला भी साध लिया है।
खरगे के जवाब में छिपा है उनका असली इरादा
ममता बनर्जी ने जब मल्लिकार्जुन खरगे का नाम पीएम फेस के लिए प्रस्तावित किया तो उस पर खरगे की संतुलित प्रतिक्रिया सामने आई। उन्होंने कहा कि अभी हमारी प्राथमिकता पीएम के चयन की नहीं होनी चाहिए। ये तो चुनाव के बाद भी तय किया जा सकता है। अभी तो बीजेपी को शिकस्त देना पहला काम है। खरगे के जवाब में सामान्य भाव की झलक मिलती है, पर इसमें गूढ़ रहस्य छिपा है। कांग्रेस इतनी खराब हालत में भी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी है। खराब हालत के बावजूद कांग्रेस का कोई नेता नेहरू परिवार के खिलाफ कभी नहीं बोलता और न उसके खिलाफ कुछ सुनना पसंद करता है। ऐसे में खरगे उस परिवार की मर्जी के खिलाफ कोई फैसला लेंगे, ये असंभव है। ये भी अनुमान पक्के तौर पर लगाया जा सकता है कि कांग्रेस को ही विपक्षी दलों में अधिक सीटें आ सकती हैं। कांग्रेस कम से कम 300 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। अगर उसे सर्वाधिक सीटें आ जाती हैं और विपक्ष अपने साझा प्रयास से सरकार बनाने की स्थिति में आता है तो खरगे पीएम या राहुल, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। मनमोहन सिंह की सरकार हम देख चुके हैं। कैसे, गांधी परिवार रिमोट से सरकार चलाता था। मनमोहन सिंह सरकार की ओर से तैयार विधेयक की कॉपी कैसे राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर फाड़ दी थी।

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