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अफसरों का इशारा, बाबुओं का खेल, पुरातत्व विभाग राजस्व में लीकेज को रोकने में फेल

जयपुर। पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग राजस्थान में राजस्व को चूना लगाने का खेल दशकों से रुक नहीं पा रहा है। दशकों से एक ही सीट पर जमे अधिकारियों के इशारे पर विभाग के बाबू और चतुर्थश्रेणी कर्मचारी टिकटों में खेल कर सरकारी राजस्व को चूना लगा रहे हैं। विभाग के प्रदेशभर में ज्यादा कमाई वाले स्मारकों पर दशकों से अधिकारी और कर्मचारी एक ही जगह पर जमे बैठे हैं। इसकी बानगी जयपुर के प्रमुख स्मारकों पर साफ दिखाई देती है। अधिकारियों की तो राजनीति में ऊपर तक पहुंच बताई जाती है, लेकिन अब बाबुओं और कर्मचारियों ने भी अपनी पहुंच बना ली है, जिसके चलते उनका बाल भी बांका नहीं हो पा रहा है।

ताजा मामला विभाग में एक ही जगह पर जमे हुए बाबुओं के तबादले का है। पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि विभाग में नया निदेशक आने के बाद उन्होंने राजस्व में लीकेज रोकने की कोशिशें शुरू की। अधिकारियों की ऊपर तक राजनीतिक पहुंच के चलते उनका जोर अधिकारियों पर नहीं चल पाया। ऐसे में उन्होंने एक-डेढ़ महीने पूर्व बरसों से एक ही सीट पर जमे हुए कुछ बाबुओं के तबादले की लिस्ट निकाल दी, लेकिन सूत्र बताते हैं कि ऊपर के स्तर पर कुछ ही दिनों बाबुओं की इस लिस्ट को खारिज कर दिया गया, जो यह साबित कर रहा है कि टिकटों में खेल कर राजस्व को चूना लगाने का खेल ऊपर से चल रहा है। इसमें सबसे ज्यादा विवाद इंजीनियरिंग शाखा को लेकर चल रहा है।

तबादलें हो तो रुके राजस्व की लीकेज
विभाग में राजस्व लीकेज का जो खेल चल रहा है, उसके मुख्य कर्ताधर्ता ऊपर के लोग हैं। विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इस खेल को अंजाम तक पहुंचा रहे हैं। नए निदेशक ने इस खेल को भांपकर कार्रवाई करने की कोशिश की थी, लेकिन जल्द ही उन्हें साइडलाइन कर दिया गया। ऐसे में अब गहलोत सरकार विभाग की निष्पक्ष जांच कराकर रोटेशन के आधार पर अधिकारियों-कर्मचारियों का तबादला कराया जाए तो बड़े राजस्व लीकेज को रोका जा सकता है।

इन जगहों पर हो रहा ज्यादा विवाद
विभाग में कहा जा रहा है कि इंजीनियरिंग शाखा राजनीतिक रसूख का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कर अधिकारियों-कर्मचारियों को डराने का काम कर रही है। शाखा के दो बाबू एक दशक से अधिक समय से एक ही सीट पर जमे हुए हैं और विभाग के हर काम में टांग अड़ाते हैं। वहीं विभाग के अधिकारी जयपुर के दो सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले दो प्रमुख स्मारकों के अधीक्षकों पर भी लगातार अंगुली उठा रहे हैं कि यह दो अधिकारी पूरे विभाग की दशा और दिशा तय कर रहे हैं। यह दोनों अधिकारी भी ऊंचे राजनीतिक रसूख का दम भरते हैं। इनमें से एक राजधानी के सबसे प्रमुख स्मारक पर एक दशक से अधिक समय से जमे हुए हैं, वहीं दूसरे अधिकारी अपनी आधी से ज्यादा नौकरी राजधानी में ही पूरी कर चुके हैं। ऐसे में विभाग के अन्य अधिकारियों में गहरा असंतोष पनप रहा है कि आखिर राजधानी में जमे हुए अधिकारियों के तबादले क्यों नहीं हो रहे हैं।

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