जयपुर

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रशासन शहरों के संग अभियान को पलीता लगा रहे जेडीए के अधिकारी

फर्जीवाड़ा कर वन भूमि पर चहेते को जारी कर दिया पटृा, इकोलॉजिकल जोन में बसी कॉलोनियों को पटृे देने में कर रहे आनाकानी, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में पहुंचा मामला

जयपुर। कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर अंगुली उठाई थी, लेकिन जेडीए के अधिकारियों पर मुख्यमंत्री की बातों का भी असर नहीं हो रहा है। अधिकारी मुख्यमंत्री के प्रशासन शहरों के संग अभियान को पलीता लगाने में जुटे हैं। जेडीए अधिकारियों ने फर्जीवाड़ा कर वन भूमि पर चहेते को पटृा जारी कर दिया, लेकिन इकोलॉजिकल जोन में बसी कॉलोनियों को पटृे देने में आनाकानी कर मुख्यमंत्री के अभियान की हवा निकालने में जुटे हैं। इन कॉलोनियों के निवासी पिछले करीब डेढ़ दशक से पटृों की बाट जोह रहे हैं।

वन प्रेमी राजेंद्र तिवाड़ी ने जेडीए अधिकारियों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय ग्रीन ट्रिब्यूनल में जनहित याचिका दायर की है। वन एवं पर्यावरण अधिवक्ता कृष्ण कुमार शर्मा बताया कि ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा इस संबंध में विस्तार से जांच के लिए कमेटी का गठन किया है, जिसमें अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन्य जीव प्रतिपालक राजस्थान, जिला कलेक्टर जयपुर, आयुक्त, जयपुर विकास प्राधिकरण और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड राजस्थान इस संबंध में विस्तार से जांच कर चार हफ्ते में रिपोर्ट प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया है

इस तरह चला भ्रष्टाचार का खेल
कृष्ण कुमार शर्मा ने बताया कि आमेर रोड पर एक कब्जेशुदा वन भूमि पर जेडीए अधिकारियों ने मिलीभगत कर आवासीय पटृा जारी कर दिया, जबकि वन भूमि होने के कारण यहां पटृटा नहीं दिया जा सकता था, ऐसे में जेडीए अधिकारियों ने यहां कागजों में एक फर्जी खसरा बनाया और इस कब्जेशुदा वन भूमि को जेडीए के नाम दर्ज कर ली। इसके बाद अधिकारियों ने इस वन भूमि का आवासीय पटृा कब्जेधारी को दे दिया। एक व्यवसायी ने कब्जेधारी से यह जमीन खरीदकर यहां होटल का निर्माण कर लिया।

होटल निर्माण के बाद व्यवसायी ने होटल चलाने के लिए पर्यटन विभाग में लाइसेंस के लिए आवेदन किया। लाइसेंस जारी करने के लिए पर्यटन विभाग ने इस जमीन पर वन विभाग की एनओसी की मांग की। व्यवसायी ने वन विभाग के अधिकारियों से भी मिलीभगत कर फर्जी एनओसी ले ली और पर्यटन विभाग से होटल का लाइसेंस ले लिया। वन विभाग के जिम्मेदार सक्षम अधिकारी ने बगैर जांच किए वन अभ्यारण्य क्षेत्र में होटल निर्माण कार्य हेतु अनुमति प्रदान कर दी। वन भूमि पर कॉमर्शियल निर्माण हुआ तो इसकी शिकायतें वन विभाग में हुई। वन विभाग ने इन शिकायतों की जांच कराई तो सामने आया कि यह जमीन रिजर्व फॉरेस्ट की है और यहां न तो जेडीए आवासीय पटृटा जारी कर सकता है और न ही कोई यहां कॉमर्शियल निर्माण कर सकता है।

ईडीसी नाहरगढ़ में वाइल्डलाइफ के एक्सपर्ट मेंबर वैभव पंचोली ने बताया कि एक ओर से जेडीए अधिकारी अपने चहेते को भ्रष्टाचार कर रिजर्व फॉरेस्ट में निय​मविरुद्ध आवासीय पटृा दिया, वहीं दूसरी ओर इस रिजर्व फॉरेस्ट के इकोलॉजिकल क्षेत्र में बसी सैंकड़ों कॉलोनियों के लाखों निवासियों को आवासीय पटृा देेने में आनाकानी की जा रही है।

इकोलॉजिकल जोन में कांग्रेस के प्रति बढ़ रहा विरोध
इस क्षेत्र में जेडीए द्वारा पटृे जारी करने में आनाकानी करने से आगामी चुनावों में तीन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि पटृे नहीं मिलने से क्षेत्र के लोगों में कांग्रेस के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है। इन कॉलोनियों के लोग पिछली गहलोत सरकार के समय से पटृों की बाट जोह रहे हैं। यदि इस बार भी उन्हें पटृा नहीं मिला तो क्षेत्र में कांग्रेस के नेताओं के घुसने में भी परेशानी हो सकती है।

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