जयपुर के परकोटा शहर के बाहर इंडो सारासेनिक स्टाइल में बनी प्राचीन इमारत किंग एडवर्ड मेमोरियल (यादगार) का रंग दो वर्ष पूर्व मनमाने तरीके से बदल दिया गया था। निर्माण के समय से ही इस इमारत की पहली मंजिल पीले रामरज रंग से रंगी थी लेकिन यहां चल रहे ट्रैफिक पुलिस कार्यालय के अधिकारियों ने इस पर गुलाबी रंग पुतवा दिया था। जयपुर को अब वर्ल्ड हैरिटेज सिटी का दर्जा मिल चुका है, ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार इस रियासतकालीन इमारत को उसके मूल स्वरूप में लाएगी?
इस इमारत में जयपुर स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से संरक्षण एवं जीर्णोद्धार का कार्य कराया जा रहा है। स्मार्ट सिटी के सूत्र बता रहे हैं कि कंपनी की ओर से इस इमारत पर परकोटा शहर की अन्य इमारतों की तरह गेरुआ रंग किए जाने की तैयारी है, जबकि जरूरी है कि इमारत को निर्माण के समय वाले मूल स्वरूप में लाया जाए क्योंकि यह इमारत वर्ल्ड हैरिटेज सिटी के बफर जोन में है और यूनेस्को को भेजी जाने वाली प्राचीन इमारतों की सूची में शामिल है।
यह इमारत ठेबेदार पत्थरों से बनी हुई है और मुख्य दरवाजे, खिड़कियों पर गढाई वाले पत्थर लगे हैं। छज्जों के नीचे गढ़ाई वाली टोडियां लगी है। इमारत के छज्जों और सबसे ऊपर पैराफिट पर पीला रामरज रंग निर्माण के समय से ही चला आ रहा था। ऐसे में जरूरी है कि जिन पत्थरों की दीवारों पर गुलाबी रंग पोता गया है, उसकी सफाई कर पत्थरों को फिर से निकाला जाए। खिड़कियों, रोशनदान, छज्जों और पैराफिट पर पीला रामरज रंग कराया जाए।
क्या है इंडो सारासेनिक स्टाइल?
अंग्रेजों के देश आने के बाद उत्तर भारत में इमारतों के निर्माण प्रचलित राजपूत शैली में ब्रिटिश स्थापत्य का भी समावेश हुआ था। राजपूत और ब्रिटिश स्थापत्य के समावेश से बनी इमारतों को ही इंडो सारासेनिक स्टाइल कहा जाता है। जयपुर में किंग एडवर्ड मेमोरियल के अलावा अल्बर्ट हॉल, राजस्थान विश्वविद्यालय की मुख्य इमारत, महाराजा कॉलेज समेत कई इमारतें इसी स्टाइल में बनी हुई है।
यूनेस्को उठा सकता है सख्त कदम
राजस्थान सरकार की उदासीनता के चलते राजधानी जयपुर को गौरवान्वित करने वाले वर्ल्ड हैरिटेज सिटी के तमगे पर संकट के बादल छाए हुए हैं। कहा जा रहा है कि यूनेस्को जयपुर को मिले तमगे पर सख्त कदम उठा सकता है क्योंकि अब लोग सीधे ही यूनेस्को तक शहर में बर्बाद की जा रही विरासतों की शिकायत पहुंचा रहे हैं। यूनेस्को राजस्थान सरकार को नोटिस जारी करके कोई कदम उठा सकता है। वर्ल्ड हैरिटेज सिटी पर निगरानी लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी बनी हुई है। देखने वाली बात यह है कि क्या यह कमेटी यादगार को मूल स्वरूप में लाने के लिए कोई कार्रवाई करेगी या फिर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी?
क्या है जयपुर में इमारतों के रंग का इतिहास
इतिहासकारों का कहना है कि 1876 से 78 के बीच जयपुर शहर की इमारतों का रंग एक साथ बदला गया। जयपुर के पूर्व महाराजा रामसिंह लखनऊ गए थे। उन्होंने शहर में पीले और गुलाबी रंग से रंगी इमारतें बहुतायत में मिली। रामसिंह को इमारतों को रंगने का यह पैटर्न काफी पसंद आया। उस समय जयपुर में सभी इमारतें सफेद रंग की हुआ करती थी। लखनऊ से लौटने के बाद रामसिंह ने जयपुर में रह रहे अंग्रेज हेल्थ ऑफिसर टीएच हैंडले से शहर की इमारतों को एक रंग में रंगने पर चर्चा की।
रामसिंह ने हैंडले को निर्देश दिए कि रंग ऐसा हो जो आंखों को नहीं चुभे। चांदपोल में कई इमारतों को हरे रंग से रंगा गया लेकिन वह उन्हें पसंद नहीं आया। कुछ इमारतों पर पीला रामरज रंग रंगा गया। कई अन्य रंग भी बदल कर देखे गए और अंत में सफेदी में हिरमिच मिलाकर बनाए गए गेरुए रंग को फाइनल किया गया। दीपावली से पहले शहर में ढोल बजाकर मुनादी कराई गई कि लोग अपने निजी भवनों को गेरुए रंग में रंग लें।
इसके बाद लोगों ने अपनी इमारतों को गेरुए रंग से रंगाई कराई। परकोटे को भी गेरुए रंग से रंगा गया लेकिन सिटी पैलेस, अन्य महलों और रियासत की मिल्कियत वाली इमारतों पर पीला रामरज रंग किया गया। यादगार भी रियासत की इमारत थी, इसलिए इस इमारत में भी चूने पर पीला रामरज रंग किया गया था, जिसे दो वर्ष पहले बदल दिया गया था।