अखंड प्रताप सिंह मैनेजमेंट फील्ड के महारथी हैं। उद्यमी बनने के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़ दी। उनके द्वारा शुरू किए गए तीन वेंचर बहुत थोड़े समय में अच्छी लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं। उनसे विशेष बात की वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश मयंक ने। पेश है इस बातचीत के प्रमुख अंशः-
प्रश्न – सबसे पहले अपने बारे में थोड़ा-सा बताएं ?
उत्तर – मैं गोरखपुर जिले का निवासी हूं। मेरी शिक्षा-दीक्षा गोरखपुर में ही हुई। गोरखपुर विश्वविद्यालय से मैंने बॉटनी में एम.एससी. की डिग्री प्रथम श्रेणी में मेरिट के साथ हासिल की। मैं पढ़ाई-लिखाई में काफी अच्छा था और हमेशा स्कॉलरशिप मिलती रही। पिताजी पत्रकार थे तो मुझे भी पत्रकारिता अच्छी लगती थी। मेरा सपना था कि मैं या तो आईएएस अधिकारी बनूंगा या पत्रकार।
पर कुछ ऐसा संयोग रहा कि इन दोनों क्षेत्रों के बजाय मैं मैनेजमेंट के क्षेत्र में आ गया। एक ऐसे क्षेत्र में, जिसमें जाने की कोई योजना नहीं थी। मैनेजमेंट के क्षेत्र में जाने का संयोग कुछ यूं बना कि स्वभाव से खुद्दार किस्म का होने के कारण मेरी यह सोच थी कि पढ़ाई के साथ कुछ अर्निंग भी करता रहूं। इसी कारण मैंने एक पैरा-बैंकिंग कंपनी में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में ज्वाइन किया। इसके बाद मैंने अक्षर भारत अखबार ज्वाइन किया। यह ग्रामीण विकास पर केंद्रित अखबार था। फिर मैं इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के साथ जुड़ा। इसके बाद मैंने अमर उजाला अखबार ज्वाइन किया और लखनऊ, नोएडा, कानपुर, गोरखपुर, वाराणसी आदि स्थानों पर वरिष्ठ पदों पर रहा।
प्रश्न – अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए आपने लाखों की पैकेज वाली नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। ऐसा क्यों किया?
उत्तर– जैसा कि मैंने पहले बताया कि मैं एक खुद्दार व्यक्ति हूं। मेरे दिमाग में हमेशा यह बात रहती थी कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे समाज-निर्माण में हमारा भी योगदान हो, जिससे कुछ लोगों को रोजगार मिल सके। इसके लिए अपने उद्यम के अलावा कोई और तरीका नहीं हो सकता था। दूसरे, नौकरी करते समय यह बात भी दिमाग में थी कि सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन कैसे जियूंगा? सेवानिवृत्ति के बाद जो करने की सोच रहा हूं उसे अभी क्यों न शुरू करूं?
प्रश्न – त्यागपत्र के बाद सबसे पहले क्या शुरू किया? इस समय किन वेंचर्स पर काम कर रहे हैं?
उत्तर – पहले शुरू करने जैसा कुछ नहीं है, क्योंकि मैंने काम एक-एक करके नहीं शुरू किए बल्कि कई काम एक साथ शुरू किए। मीडिया मार्केटिंग के लिए “बेस्टसोल्व” नाम से एक कंपनी बनाई, जो लोगों को 360 डिग्री सॉल्यूशन दे सके। इसके साथ ही खाने-पीने की चीजों में मिलावट से बचने के लिए और आर्गेनिक खेती को प्रोत्साहित करने और प्रगतिशील किसानों को मंच देने के लिए “बेस्टऑर्ग” नामक कंपनी की स्थापना की। साथ ही एक न्यूजपोर्टल शुरू किया, “मीडियानाऊ डॉट इन”। मेरे ये तीनों वेंचर अच्छे चल रहे हैं। बहुत थोड़े समय में ही लोगों ने हमारे काम को सराहा।
प्रश्न – युवाओं को बिजनेस करने के लिए क्यों आगे आना चाहिए?
उत्तर – युवाओं को बिज़नेस में आगे आना चाहिए क्योंकि नौकरियां लगातार कम हो रही हैं। युवाओं को खुद में एंटरप्रेन्योरशिप स्किल डेवलप करनी होगी क्योंकि भविष्य एंटरप्रेन्योरशिप मॉडल का ही है। जापान ने इसी मॉडल पर चलकर तीव्र विकास किया है वरना द्वितीय विश्वयुद्ध में धूल-धूसरित हो चुके इस देश का फिर से विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा हो पाना संभव नहीं था। चीन की उद्यमशीलता का तो कोई जवाब ही नहीं है। तमाम देशों के बाजार उसके प्रोडक्ट्स से भरे पड़े हैं। इतना विकास उसने एंटरप्रेन्योरशिप मॉडल से ही किया है।
प्रश्न – अन्य बिज़नेस वेंचर्स के अलावा आप सगंध पौधों की खेती भी कर रहे हैं। खास करके खस की। इसके बारे में बताइये। कोई यह खेती क्यों करे?
उत्तर – बॉटनी का स्टूडेंट होने के नाते मन में शुरू से ही यह इच्छा थी कि मेरी पढ़ाई का लाभ समाज को मिलना चाहिए। खस की खेती का ख्याल इस तरह आया कि मैं देख रहा हूँ कि लोग ट्रेडिशनल खेती से केवल जीविका चला पा रहे हैं पर उन्नति नहीं कर पा रहे हैं। मेरी इच्छा थी कि लोगों को स्पेशलाइज एग्रीकल्चर में आगे लाऊं। मैंने इस पर काफी रिसर्च की। रिसर्च में पाया कि सगंध और औषधीय पौधों की खेती में अपार संभावनाएं हैं।
इनमें भी खस की खेती मुझे सबसे बेहतर और कारोबार के लिहाज से एकदम रिस्क-फ्री और काफी फायदेमंद लगी क्योंकि एक तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी जबरदस्त मांग है, दूसरे इसके तेल को कुछ महीनों तक स्टोर करके रखा जा सकता है। इससे यह उपज मार्केट के उतार-चढ़ाव से काफी हद तक अप्रभावित रहती है। हां, खसखस की खेती के लिए ध्यान रखने वाली बात यह होती है कि इसकी खेती सरकार से लाइसेंस लेकर ही किया जाता है।
प्रश्न – शुरुआत करने पर क्या सावधानियां बरतें तो विफल होने के चांसेज कम हो जाएं?
उत्तर – युवाओं को उद्यम शुरू करते समय शुरुआती दिनों में कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। पहली चीज, शुरुआत हमेशा छोटी करें। फालतू खर्चों और दिखावे से बचें। ऑपरेशनल कॉस्ट जितनी कम कर पाएं, उतनी ठीक। रातों-रात सफल होने के लिए शॉर्टकट्स की तरफ जाने के बजाय धीरे-धीरे चलिए, तभी लंबी रेस के घोड़े बन पाएंगे। रीयलिस्टिक असेसमेन्ट करके चलेंगे तो विफलता के चांसेज बहुत कम हो
जाएंगे।
(साक्षात्कारकर्ता आधुनिक लखनऊ पर आधारित उपन्यास “लखनऊ डोमेनियर्स” के लेखक हैं।)