पर्यटन भवन में मिल रहा था पुरातत्व विभाग को एक फ्लोर
धरम सैनी
जयपुर। हाथ आया मौका यदि गंवा दिया जाए, तो उसके दुष्परिणाम बहुत भयंकर होते हैं ऐसा ही कुछ हुआ है पुरातत्व विभाग के साथ। विभाग को नए बने पर्यटन भवन में एक फ्लोर मिल रहा था, लेकिन तत्कालीन अधिकारियों ने स्वतंत्रता खत्म होने के डर से यह जगह नहीं ली, जिसका खामियाजा अमूल्य पुरातात्विक सामग्रियों के बर्बाद होने और मुख्यालय में पूरे राजस्थान का रिकार्ड खराब होने के रूप में भुगतना पड़ा है।
जयपुर में हुई अतिवृष्टि के कारण अल्बर्ट हॉल में जल भराव से पुरातत्व विभाग को करोड़ों रुपयों का फटका लगा है। अब विभाग के अधिकारी दबी जुबान कह रहे हैं कि यदि हमने पहले उच्चाधिकारियों की कही मान ली होती, तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता।
विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि पूर्व मुख्य सचिव एनसी गोयल पर्यटन भवन के निर्माण के समय पर्यटन, कला एवं संस्कृति विभाग के एसीएस थे। गोयल ने पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशक ह्रदयेश कुमार शर्मा को प्रस्ताव दिया था कि यदि विभाग चाहे तो वह अपने पुराने कार्यालय को छोड़कर पर्यटन भवन में अपना एक फ्लोर ले सकते हैं, ताकि पर्यटन से जुड़े सभी विभाग एक छत के नीचे आ जाएं।
पुरातत्व विभाग के सूत्रों का कहना है कि ह्रदयेश कुमार आठ सालों तक विभाग के निदेशक बने रहे, इस दौरान उन्होंने कोई नवाचार नहीं किया। उनका खुद का कार्यालय शानदार था, लेकिन कभी उन्होंने अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के बैठने की स्थितियों पर ध्यान नहीं दिया। यहां तक की मुख्यालय के रिकार्ड की भी सुध नहीं ली।
रिकार्ड रद्दी की तरह कार्यालय में ही कपड़े की पोटलियों में बंधा पड़ा रहा। दूसरा कारण यह कि यदि पर्यटन भवन में फ्लोर लिया जाता तो अधिकारियों की स्वतंत्रता खत्म हो जाती, क्योंकि वहाँ उच्चाधिकारियों के साथ काम करना पड़ता।
जगह की नहीं पड़ती कमी
पुरातत्व विभाग में गिने-चुने चार अधिकारी हैं। इनमें एक निदेशक, एक उप निदेशक, एक मुख्य लेखाकार और एक अधिशाषी अभियंता। पर्यटन भवन में इन अधिकारियों के लिए चार केबिन बनने के बाद कर्मचारियों के बैठने और रिकार्ड रखने के लिए पर्याप्त जगह बचती।
पुराने पुलिस मुख्यालय का ऑफर भी ठुकराया
सूत्र बताते हैं कि हवामहल के सामने स्थित पुलिस मुख्यालय का भवन खाली होने के बाद पुरातत्व विभाग को पुराने पुलिस मुख्यालय में शिफ्ट होने का भी ऑफर मिला था, जिसे विभाग के अधिकारियों ने ठुकरा दिया था। यदि यहां विभाग का मुख्यालय बनता तो शहर के सभी मान्युमेंट्स इसके नजदीक हो जाते। अब यह जगह सरकार ने नगर निगम हैरिटेज को अलॉट कर दी है।
आठ साल के कार्यकाल पर यह उठ रहे सवाल
पुरातत्व विभाग के हालातों पर अब सवाल यह उठ रहे हैं कि जब विगत 15 वर्षों में पुलिस, इरिगेशन, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग, पर्यटन विभाग जैसे बड़े विभाग नए भवनों में शिफ्ट हो गए तो फिर जल भराव की परमानेंट समस्या की जानकारी होने के बावजूद पुरातत्व विभाग ने नए भवन में शिफ्ट होने की कोशिश क्यों नहीं की?
विभाग के अधिकारी यदि उच्चाधिकारियों से दूर बैठना चाहते थे, तो फिर अलग जगह मुख्यालय शिफ्ट करने की कोशिश क्यों नहीं की गई?
यदि विभाग अपना मुख्यालय किसी हेरिटेज बिल्डिंग में ही बनाना चाहता था तो फिर पुराने पुलिस मुख्यालय के ऑफर को क्यों रिजेक्ट किया गया?
विभाग के निदेशक पीसी शर्मा का कहना है कि जो मौका एक बार चला जाता है, वह दोबारा नहीं आता। किसी समय पर्यटन भवन पूरा खाली पड़ा था, विभाग चाहता तो वहां जगह मिल जाती। हेरिटेज नगर निगम बनने से पहले विभाग यदि चाहता तो पुलिस मुख्यालय हमें मिल जाती, लेकिन अब हमें यह जगह कोई नहीं देगा। अब तो उच्चाधिकारियों के पास ही मामला लेकर जाएंगे। वह चाहेंगे तो हमें मुख्यालय के लिए नई जगह मिल जाएगी।