खेल

मोटेराः असामान्य स्टेडियम का सामान्य पिच

अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम का पूरी तरह से कायापालट कर दिया हैं और भारतीय परंपरा अनुसार इसका नामांतरण न केवल गुजरात बल्कि देश के कद्दावर नेता के नाम पर भी किया। राष्ट्रपति महोदय के कर कमलों से उद्घाटन एवं सौ वां टेस्ट खेलने वाले ईशांत शर्मा का सत्कार भी हुआ परंतु जिस कार्यविशेष के लिये ये सब हुआ वह क्रिकेट मैच टायं टायं फिस्स हो गया। अखाड़े जैसे बने पिच पर गुलाबी गेंद का कहर ऐसा बरपा कि मैच पूरे दो दिन भी ना चल सका। खेलने वाली टीमें भारत और इंग्लैंड थीं कोई आपसी सहयोगी सदस्य टीम नहीं। स्पिन खेलने का हुनर जरुर कम हो गया हो परंतु ऐसी कमजोर बल्लेबाजी में खराब सतह का बड़ा हाथ रहा। यह बात सच्चे क्रिकेट प्रेमी को जरूर खली होगी।

टॉस जीतने के बावजूद मनोबल गिरा

मैच से पूर्व दोनों टीमों के कप्तान

इंग्लिश कप्तान जो रूट ने पहले मुकाबले कि तरह इस बार भी टॉस जीता। परंतु तब खुद दोहरा शतक और टीम के 500 से अधिक रन के चलते मेहमानों का मनोबल ऊंचा था। किंतु इस बार अक्षर पटेल की एक जैसी गेंदें कभी सीधी तो कभी घूम रही थीं। कम ज्यादा उछाल भी ले रही थी। आम तौर पर यह चौथे दिन देखने मिलता है परंतु यहां ये चौथे ओवर में ही दिख गया। अश्विन का साथ मिला और मेहमान 112 रनों पर ढेर हो गये।  रेकॉर्ड तो रेकॉर्ड होता है पर 400 विकेट लेने वाले अश्विन का मन भी कहता होगा कि ये विकेट बेहद सस्ती रही हैं।

जो रुट ने ढाया कहर बल्ले से नहीं गेंद से

रोटेशन पॉलिसी और तेज गेंदबाजी पर अटूट विश्वास के चलते अंग्रेजों के पसीने छूट गये। जैक लीच अकेले ही प्रभावी सिद्ध हो रहे थे पर भारतीय टीम बढत बना चुकी थी। ऐसे मे जो रुट ने गेंद हाथ में लेकरं पार्टटाइम गेंदबाजी से दोनों हाथों से विकेट की लुट की। केवल 8 रन देकर 5 विकेट तो जिमी डरसन भी कभी भारत के विरुद्ध ले नहीं पाये हैं। रूट ने मेहमान टीम की जोरदार वापसी करा दी थी!

दूसरी पारी मे पूर्ण पतन

जो रूट को देख भारतीय कप्तान ने सौ टेस्ट खेलने वाले ईशांत एवं स्थानीय खिलाड़ी बुमराह को छोड नयी गेंद अक्षर और अश्विन को थमायी और इस बार अंग्रेजी टिम 80 रनों पर ढेर हो गयी।

मैच का मजा पूरी तरह से किरकिरा हो गया था और 49 रनों का लक्ष्य बचा पाने की कोई उम्मीद मेहमान टीम करना बेमानी था। रोहित शर्मा ने चौके- छक्के लगाकर मैच की पूर्णाहुति कर दी।

क्या यह टेस्ट क्रिकेट के लिये सही है?

ऑस्ट्रेलिया मे भरपूर संघर्ष करके पीरे पांच दिन क्रिकेट के हर पहलू मे जीत प्राप्त करने वाले भारतीय क्रिकेट खिलाडी क्या इतने लाचार हैं कि  टेस्ट क्रिकेट विश्व कप फाइनल मे पहुंचने के लिये ऐसी सतह बनानी पड़ गयी ? क्या ऐसा करना सही है?

क्या एक घूमने वाली और संतुलित सतह पर्याप्त नहीं है?

जरुर है परंतु जीत ही अंतिम एवं एकमेव उद्देश्य रखने वाले सरकारी लोग जब क्रिकेट खिलाडीयों के कर्ता-धर्ता बन जाते हैं तब खेल नहीं जीत महत्वपूर्ण हो जाती है। परंतु ऐसी जीत भावना खेल की हार होती है। आशा करते हैं बड़ी प्रतिभावान ये दो टीमें जब जब फिर इसी मैदान पर कुछ दिनों में कदम रखेंगी तो भारत के साथ-साथ खेल की भी विजय होगी।

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