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मुख्यमंत्री के आदेशों से बड़ा हुआ एडमा

निविदाओं से नहीं हटाई अंतर राशि की शर्त

जयपुर। आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आदेशों को मानने से इन्कार कर दिया है। मानवीयता को भूल एडमा के अधिकारी संवेदकों को कोरोना काल में परेशान करने में जुटे हैं और उनसे जबरन अंतर राशि वसूली जा रही है, जबकि मुख्यमंत्री ने करीब दो महीने पहले ही संवेदकों से अंतर राशि नहीं वसूलने के आदेश जारी कर दिए थे।

एडमा की ओर से 23 सितंबर को 14 कार्यों के लिए निविदा निकाली गई थी। अंतर राशि हटने के बावजूद इस निविदा में अंतर राशि जमा कराने की शर्त जोड़ी गई है। संवेदकों को बाध्य किया गया है कि वह कार्यआदेश जारी होने के बाद 14 दिनों में अंतर राशि एडमा में जमा कराएं। इस शर्त से एडमा अधिकारियों का अमानवीय चेहरा बेनकाब हो गया है।

जहां मुख्यमंत्री ने मानवीय आधार पर सरकारी कार्यों के ठेके लेने वाल संवेदकों को कई प्रकार से राहत प्रदान करने की कोशिश की है, लेकिन एडमा अधिकारी जबरन अंतर राशि वसूलने पर तुले हैं। संवेदकों का कहना है कि एडमा में अधिकांश छोटे स्तर के संवेदक काम करते हैं, जो अधिकतम 10-20 लाख रुपए तक के कार्य करते हैं। अधिकांश संवेदक बाजार से ब्याज पर पैसा उधार लेकर यह कार्य करते हैं। कोरोना के चलते पिछले छह-सात महीनों से संवेदक बेराजगार हैं, ऐसे में वह अंतर राशि कैसे जमा कराएं।

सवालों से घिरे तो लगे बहाने बनाने

इस संबंध में जब एडमा के कार्यकारी निदेशक (वित्त) नरेंद्र सिंह से जानकारी चाही गई तो वह पहले तो बरगलाने में लगे रहे, लेकिन जब सवालों में घिरे तो बहाने बनाने लगे। उन्होंने कहा कि एडमा की गवर्निंग काउंसिल में राजनैतिक नियुक्तियां होती है, जो मुख्यमंत्री करते हैं। सरकार बदलने के बाद गवर्निंग काउंसिल का अभी तक गठन नहीं हुआ है। काउंसिल बनने के बाद ही इस मसले पर कोई निर्णय लिया जाएगा। यह पॉलिसी मैटर है और पॉलिसी वहीं से तय होती है।

जब उनसे पूछा गया कि क्या गवर्निंग काउंसिल ने अंतर राशि लेने का निर्णय किया था और यह छोटा सा मसला पॉलिसी मैटर है? तो उन्होंने बात बदलते हुए कहा कि अब यह प्रकरण मेरी जानकारी में आया है, मैं इस मामले को सीईओ से कोई फैसला कराने की कोशिश करता हूं। अकाउंटेंट ने खोली पोल

एडमा के अकाउंटेंट सत्यनारायण ने ईडी फाइनेंस की पोल खोलकर रख दी। अकाउंटेंट ने अंतर राशि पर कहा कि जिस स्तर से फैसला लागू किया जाता है, उसी स्तर से हटाया जा सकता है। एडमा के कार्यकारी निदेशक (प्रशासन), कार्यकारी निदेशक (वित्त) और कार्यकारी निदेशक (कार्य) की कमेटी इसका प्रस्ताव बनाकर सीईओ के जरिए इस शर्त को हटवा सकते हैं।

सिक्योरिटी राशि पर साधी चुप्पी

टेंडर के समय संवेदक से अर्नेंस्ट मनी और सिक्योरिटी मनी भी जमा कराई जाती है। मुख्यमंत्री के आदेश के बाद सभी विभागों ने संवेदकों को मानवीय आधार पर राहत देने और लॉकडाउन के बाद जनहित कार्यों को रफ्तार देने के लिए अर्नेंस्ट मनी और सिक्योरिटी मनी को आधा कर दिया है। एडमा ने भी अर्नेंस्ट मनी और सिक्योरिटी मनी को आधा कर दिया, क्या तब उन्हें गवर्निंग काउंसिल या पॉलिसी मैटर की याद नहीं आई?

इस खुलासे के बाद साफ हो गया कि अधिकारी बेवजह कोरोना काल में संवेदकों को परेशान करने में लगे हैं। मुख्यमंत्री के आदेश हुए दो महीने का समय हो गया है, इन दो महीनों में इन अधिकारियों ने क्या किया? क्यों इन्होंने प्रस्ताव बनाकर इस शर्त को नहीं हटवाया? इससे साफ है कि इन्हें मुख्यमंत्री के आदेशों की परवाह ही नहीं है।

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