जयपुर

नगर निगम में फर्जी सफाईकर्मी घोटाला

फर्जी नियुक्ति पत्र लेकर ज्वाइनिंग के लिए पहुंचे तीन युवकों के पकड़े जाने से हुआ मामला उजागर

116 फर्जी कर्मचारी उठा रहे हैं वेतन

जयपुर। नगर निगम में सफाईकर्मियों को लेकर भ्रष्टाचार लंबे समय से चला आ रहा है। कई बार इन मामलों में कार्रवाई भी हुई, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला और फिर से भ्रष्टाचार का सिलसिला शुरू हो जाता है। एक बार फिर नगर निगम में फर्जी सफाईकर्मियों का मामला उजागर हुआ है। कहा जा रहा है कि जयपुर नगर निगम में करीब 116 फर्जी सफाईकर्मी वेतन उठा रहे हैं।

इसका खुलासा सोमवार नगर निगम के लालकोठी स्थित मुख्यालय में तीन फर्जी सफाईकर्मियों के पकड़ में आने के बाद हुआ। नगर निगम के कर्मचारियों का कहना है कि यह तीनों युवक ज्वाइनिंग लेटर लेकर मुख्यालय में घूम रहे थे और ज्वाइनिंग की प्रक्रिया पूछ रहे थे। कर्मचारियों को इनपर शक हुआ तो उन्होंने इसकी सूचना सफाई कर्मचारियों की यूनियन को दे दी।

कर्मचारी यूनियन इन तीनों को पकड़ कर उपायुक्त कार्मिक के पास ले गए, ताकि नियुक्ति पत्र की सच्चाई सामने आ सके, क्योंकि सफाईकर्मियों की नियुक्तियां वर्ष 2018 में हुई थी तो अब यह ज्वाइनिंग लेटर कहां से आ गए?

नगर निगम के निरीक्षक सतर्कता राकेश यादव का कहना है कि उपायुक्त कार्मिक ने ज्वाइनिंग लैटर की जांच की तो पाया कि न तो इनपर डिस्पेच नम्बर है और न ही जारी करने की तारीख है। ऐसे में इन्हें फर्जी पाया गया। अब उपायुक्त कार्मिक की ओर से इन तीनों युवकों के खिलाफ ज्योतिनगर थाने में मामला दर्ज कराया जा रहा है।

इस मामले के खुलासे के बाद सफाईकर्मी यूनियन भी एक्शन में आ गई और 2018 में हुई भर्तियों का रिकार्ड खंगाला गया। संयुक्त वाल्मिकी एवं सफाई श्रमिक संघ के अध्यक्ष नंद किशोर डंडोरिया का कहना है कि नगर निगम में फर्जी सफाईकर्मियों की भर्ती का कोई बड़ा खेल चल रहा लगता है।

वर्ष 2018 में 4959 सफाईकर्मियों की भर्तियां हुई थी। इनमें से 267 कर्मचारियों के नियुक्ति आदेश निरस्त कर दिए गए थे। वर्तमान में 4817 सफाईकर्मी वेतन उठा रहे हैं। ऐसे में साफ हो रहा है कि निगम में 119 फर्जी सफाईकर्मी पहले से ही काम कर रहे हैं और वेतन उठा रहे हैं।

ऐसे में कहा जा रहा है कि निगम में फर्जी सफाईकर्मियों का बड़ा घोटाला चल रहा है और प्रतिमाह 20 लाख से अधिक के सरकारी राजस्व को चूना लगाया जा रहा है।पकड़े गए युवकों ने निगम अधिकारियों को बताया कि उन्हें यह नियुक्ति पत्र निगम के एक पूर्व वाहन चालक द्वारा उपलब्ध कराए गए थे।

इतना बड़ा घोटाला दो सालों से चल रहा है तो कहा जा सकता है कि इसमें निगम अधिकारियों और स्वायत्त शासन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों की भी मिलीभगत हो सकती है। आखिर इतनी बड़ी चूक उनकी नजरों में क्यों नहीं आईï?

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